|
रविन्द्र अग्रवालबदहाली वनीता कीमहानदी में 1986 से अब तक 18 वर्षों में अथाह पानी बह गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी तक राजनीति में भारी फेरबदल हो गया। परन्तु यदि कुछ नहीं बदला तो वह है उड़ीसा के कालाहांडी जिले के अमलापली गांव की वनीता के जीवन का ढर्रा। गरीबी की मार के चलते 18 साल पहले वह स्वयं बिकी थी और अब उसने अपनी बेटी को बेच दिया।भुखमरी और गरीबी का पर्याय बन चुके कालाहांडी में 1986 में वनीता को बेचा था उसकी ननद ने, मात्र 40 रुपए में और 21वीं शताब्दी की शुरुआत में यानी 2004 में उसने 12 साल की अपनी लड़की को बेच दिया, मात्र 250 रुपए में। राजीव गांधी ने आम आदमी को सपना दिखाया था देश को 21वीं शताब्दी में ले जाने का। 1986 में वनीता को बेचे जाने की खबर जब अखबारों में छपी थी तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्षा सोनिया गांधी वनीता से मिले थे। इस घटना से दोनों तब बहुत दु:खी दिखे थे। उन्होंने उस महिला के दु:ख-दर्द को दूर करने का वायदा किया था। प्रधानमंत्री के सुर में सुर मिलाते हुए और भी कई नेताओं ने वनीता को गरीबी के दुष्चक्र से उबारने का आश्वासन दिए थे। 21वीं शताब्दी तक आते-आते यह आश्वासन कितने फलीभूत हुए यह अकेले इस एक तथ्य से स्पष्ट है कि गरीबी की मार झेल रही वनीता को अपनी 12 साल की लड़की को 250 रुपए में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि अखबारों में खबरें छपने के बाद वह कह रही है कि उसने अपनी लड़की को रायपुर में अपने सम्बन्धियों के यहां भेजा है। ऐसा नहीं कि वनीता निट्ठली हो और वह कुछ नहीं करती हो। वह समेकित बाल विकास योजना से जुड़ी है और वेतन के रूप में 260 रुपए प्रतिमाह पाती है। वेतन के नाम पर 260 रुपए की राशि का मिलना भारी-भरकम नाम वाली योजनाओं की असलियत को उजागर करता है। कहने के लिए तो समाज बदलने के नाम पर, केन्द्र और राज्य सरकारें ढेर सारी योजनाएं चलाती हैं। परन्तु उससे समाज में कितना बदलाव आता है यह स्पष्ट है अमलापली गांव की वनीता के हालात से। देश में ऐसी लाखों वनीताएं हैं। भविष्य में एक और वनीता न बिके इसके लिए जरूरी है जल, जंगल और जमीन से जुड़ी विकास योजनाएं बनाना और उनको प्रभावी ढंग से लागू करना।11
टिप्पणियाँ