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आतंकवादियों के हमदर्द<p style=font-weight:bold;text

by
Apr 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2004 00:00:00

आतंकवादियों के हमदर्द

मुंब्रा का सच!!

इशरत और जावेद को बचाने में जुटे सेकुलर पत्रकार

और मुस्लिम वोटों के लालची राजनीतिक दल

-मुम्बई से विशेष प्रतिनिधि

मुंब्रा में इशरत जहां के जनाजे में उमड़े स्थानीय मुस्लिम

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रचने वाले चार आतंकवादियों को गुजरात पुलिस द्वारा मार गिराने की घटना ने मुम्बई और महाराष्ट्र में छद्म सेकुलरवादियों और कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं में मातम का सा भाव उत्पन्न कर दिया। इस कांड में मारी गई इशरत जहां “देशभक्त युवती थी और राष्ट्रहित के लिए उसने अपने प्राण न्योछावर कर दिए, उसे मार गिराने वाली पुलिस बर्बरता का प्रतीक है” आदि बातें फैलायी गईं। ऐसा वातावरण तैयार करने में हमेशा की तरह छद्म बुद्धिजीवी, कांग्रेस, मुस्लिम और सेकुलर राजनेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। कौन है यह इशरत? क्या हुआ था उसके साथ? क्या वह सचमुच एक भोली-भाली मासूम लड़की थी या पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गिरोह की सदस्य थी? घटना के बाद अनेक माध्यमों से आ रही जानकारी इशरत का असली चेहरा सामने ला रही है।

दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन ने कहा-

इन नेताओं का काम राष्ट्रद्रोह का

अमदाबाद मुठभेड़ में मारी गई युवती इशरत जहां को निर्दोष बताने पर कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं समाजवादी पार्टी की तीखी आलोचना करते हुए भारतीय जनता पार्टी, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष डा. हर्षवर्धन ने कहा कि इन दलों के नेताओं ने राष्ट्रद्रोह का कार्य किया है। ये नेता पुलिस एवं जांच एजेंसियों का मनोबल भी गिरा रहे हैं। उन्होंने पूछा कि जिस घृणित षडन्त्र की इन दलों द्वारा निन्दा की जानी चाहिए थी उस षडन्त्र में शामिल युवती इशरत जहां के परिवारजनों को आर्थिक सहायता देकर ये नेता किस प्रकार की राष्ट्रसेवा कर रहे हैं? डा. हर्षवर्धन ने कहा कि बिना किसी जांच-पड़ताल के रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव, केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने आतंकवादियों को निर्दोष करार दे दिया। इन मंत्रियों का गैरजिम्मेदाराना बयान यह जताने के लिए पर्याप्त है कि भारत की बागडोर अब किन तत्वों के हाथों में है। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते ये लोग क्या कुछ नहीं कर सकते। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मांग की कि वे अपने मंत्रिमंडल के इन गैरजिम्मेदार लोगों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करें। प्रतिनिधि

यह वारदात हुई 15 जून की सुबह अमदाबाद में। दूसरे दिन घटना का ब्यौरा देशभर के समाचार पत्रों में छपा। अजीब बात थी कि घटना के 2 घंटे बाद भी इशरत की मां को अपनी बेटी के बारे में कुछ पता नहीं था। उसकी प्रतिक्रिया जानने के लिए उसके घर गए पत्रकारों ने उसे अमदाबाद कांड की जानकारी दी। मां को इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। क्योंकि इशरत ने उसे बताया था कि वह मुम्बई में घाटकोपर में रहने वाली मौसी के घर जा रही है। पत्रकारों को मां ने इशरत की मासूमियत के किस्से सुनाने शुरू किए। उसी के साथ शुरू हो गया इशरत के “भोलेपन” को उजागर करने का सिलसिला। तथ्य जाने बिना ही अखबारों तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने गुजरात पुलिस की जमकर खिंचाई की। “मोदी की कुर्सी को बचाने के लिए ही यह कांड रचा गया” ऐसा आरोप भी मीडिया ने उछाला। वामपंथी बुद्धिजीवी, मुस्लिम तथा कांग्रेसी नेताओं के लिए तो यह मानो मन की बात हो गई। इन सभी में इशरत की मां से मिलने की होड़ लग गई। समाजवादी पार्टी, मुम्बई के अध्यक्ष अबु आजमी इनमें प्रमुख थे। केन्द्रीय कृषिमंत्री शरद पवार के निकटस्थ तथा महाराष्ट्र विधान परिषद् के उपाध्यक्ष वसंत देवखरे ने इशरत की मां को एक लाख रुपए का धनादेश ही दे दिया। इशरत के जनाजे में मुंब्रा के हजारों मुसलमान शामिल हुए। उस समय वहां का माहौल काफी तनावपूर्ण था।

इशरत की “मासूमियत” की रट लगाने वाले इन नेताओं ने घटना की सत्यता परखने का थोड़ा भी कष्ट नहीं उठाया। फिर धीरे-धीरे इन सभी की पोल खुलनी शुरू हो गई। गुजरात पुलिस ने सबूत बताने शुरू कर दिए। इशरत के साथ मारा गया जावेद मुंब्रा में इशरत के पड़ोस में ही रहता था, यह भी स्पष्ट हो गया। अपनी मौसी के घर गयी इशरत अमदाबाद कैसे पहुंची, इस सवाल का जवाब देने में फिर उसकी मां और नेता कतराने लगे। एक मुस्लिम परिवार की लड़की, जिसके पिता का देहान्त हो चुका हो, सालभर में पांच-छह बार तीन-चार दिनों के लिए अकेले घर से बाहर जाती है और घरवालों को उसकी कोई खबर नहीं रहती, यह कैसे संभव है? यह सवाल भी जवाब मांगता है। फिर सामने आती है इशरत की डायरी। उसमें लाखों रुपये के लेन-देन का पता चलता है। इशरत के पास इतने पैसे कहां से आये, इसका भी कोई जवाब नहीं मिलता। पर पुलिस के पास इसका जवाब है। दिलचस्प बात यह है कि इस कांड की छानबीन के आदेश महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने राज्य पुलिस को दिये थे। अगले ही दिन महाराष्ट्र पुलिस ने जावेद का पूरा इतिहास मीडिया के सामने रखा। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इस कांड ने देश के तथाकथित सेकुलर मीडिया का असली चेहरा एक बार फिर बेनकाब कर दिया। सब कुछ स्पष्ट होने पर भी मुम्बई में हर रोज वामपंथी बुद्धिजीवी धरना, प्रदर्शन तथा विरोध सभाओं का आयोजन करते रहे।

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