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किसने ली जम्मू-कश्मीर की जान?जम्मू-कश्मीर पर हमेशा मुस्लिम मुख्यमंत्री ने राज किया। हर विभाग और नौकरियों में मुस्लिमों का बोलबाला रहा। उन्हीं के आतंक के साए में घाटी से हिन्दुओं का पलायन हुआ लेकिन केन्द्र से फिर भी हर साल उन्हें पहले से ज्यादा आर्थिक सहायता मिलती रही। भारत के गरीबों के हिस्से का पैसा कौन खा गया? जवाब मिलेगा जम्मू-कश्मीर के नेता और आतंकवादी। पैसे खाने के मामले में दोनों में बड़ा एका है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिसमें केन्द्र सरकार ने राष्ट्र के सामरिक और आर्थिक विकास को सामने रखते हुए पैसे दिए पर वे सब के सब नाली में बह गए। एक उदाहरण है जम्मू से उधमपुर के बीच 53.2 किलोमीटर लम्बी रेल पटरी बिछाने का। इस काम का शिलान्यास 14 अप्रैल, 1983 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। तब राज्य के विधानसभा चुनाव सिर्फ दो महीने बाद होने वाले थे। उन्होंने वहां घोषणा की थी कि यह काम पांच साल में पूरा हो जाएगा। 1987 में फिर विधानसभा चुनाव आए, तब प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी। उन्होंने इस काम में देरी के लिए खेद व्यक्त किया और कहा अगले चुनाव से पहले यह काम पूरा कर देंगे। पर अभी तक यह काम पूरा नहीं हुआ है। इस बीच इस 53 किलोमीटर लम्बी रेल पटरी बिछाने की लागत 55 करोड़ से 500 करोड़ रु. पहुंच चुकी है। हालांकि पटरी बिछाने के बाद होने वाली पूर्वाभ्यास वाली कसरत भी पूरी की जा चुकी है। पर जनता के लिए अभी तक पटरी खोली नहीं गई है। घाटी में रेल पटरी बिछाने का सपना कइयों ने देखा पर पूरा नहीं हुआ। जनता दल सरकार के समय प्रधानमंत्री श्री देवगौड़ा ने 198 किलोमीटर लम्बी, उधमपुर-बारामूला रेल पटरी का शिलान्यास किया था। इस पर कुल लागत 2500 करोड़ रुपए आने वाली थी। हमेशा की तरह उस पर भी कुछ नहीं हुआ। अब इस काम की लागत 6000 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है।वाजपेयी सरकार के समय उदारता से धन भी आवंटित किया गया और उधमपुर-कटरा-काजीगुंड-बारामूला रेल पटरी का काम कोंकण रेल बनाने वाली रेलवे की एजेंसी इरकॉन को दे दिया गया। परन्तु अभी 600 करोड़ रुपए का ही काम हुआ था कि जिहादियों ने लगभग तीन महीने पहले इरकॉन के इंजीनियर श्री सुधीर और उनके भाई का अपहरण कर हत्या कर दी।इसी तरह कश्मीर की एक दूसरी बड़ी योजना 390 मेगावाट बिजली पैदा करने वाली दुलहस्ती पनबिजली परियोजना है, जो चिनाब नदी के पानी का इस्तेमाल करने के लिए बनाई गई थी। इसका शिलान्यास भी श्रीमती गांधी ने 14 अप्रैल, 1983 को किया था। 1989 में यह काम एक फ्रांसिसी कम्पनी को 1200 करोड़ में दिया गया। काम पूरा करने की अवधि रखी गई 4 साल। लेकिन आतंकवाद के कारण वह कम्पनी भी आधा काम छोड़कर चली गई, इसके बावजूद इस कम्पनी को 1200 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया। अभी तक दुलहस्ती पनबिजली परियोजना पर 4000 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, पर मंजिल बहुत दूर है।36
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