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सुनो कहानीअमरीकी मोचीवे पढ़ने के लिए कुछ दिन पहले ही भारत से अमरीका गए थे। इस कारण अभी वे अमरीकी लोगों के रहन-सहन, नियम, आचार और जीवन के सिद्धान्तों से परिचित नहीं थे। नाम था उनका सत्यदेव, जो बाद में जाने-माने विद्वान “स्वामी सत्यदेव” के नाम से विख्यात हुए। जब वह अमरीका गए थे तब युवक ही थे। शिकागो मेंे रह रहे थे। एक दिन वे अपना पुराना जूता मरम्मत कराने के लिए एक मोची की दुकान पर गए। उन्होंने अपना जूता उतारकर वहां रखा और मोची से कहा, “मुझे जल्दी जाना है, जरा तुम इसे सिल दो।” पर वह अमरीकी मोची वहां रखे दूसरे जूतों को ठीक करने में बहुत व्यस्त था। उसे सत्यदेव का जूता ठीक करने की फुर्सत नहीं थी। इसलिए उसने एक सुआ और धागा उठाकर सत्यदेव की ओर बढ़ाते हुए कहा, “अगर आपको बहुत जल्दी है तो आप खुद ही इसे सिल लें।” यह सुनकर सत्यदेव को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने उसे फटकारते हुए कहा, ” क्या तुम्हारा दिमाग खराब है? इतना पढ़-लिखकर मैं यह काम करूंगा?” वह अमरीकी समझ गया कि यह भारतीय शायद नया-नया यहां आया है। हमारे देश के चाल-चलन से अनजान रहने के कारण ऐसा कह रहा है। उसको हंसी आ रही थी, पर हंसी रोककर उसने कहा- “आश्चर्य है, आप शिक्षित होकर खुद अपना जूता नहीं सिल रहे, शायद इस काम को आप बहुत खराब समझते हैं? पर शायद आप नहीं जानते कि मैं भी शिकागो विश्वविद्यालय में एम.ए. कर रहा हूं।” अब तो सत्यदेव दंग रह गए। नम्र होकर वे पूछ बैठे, “फिर तुम यह मोची का काम क्यों कर रहे हो?” तो उसने सहज भाव से बताया “हालांकि मेरे पिताजी धनवान हैं, पर मैं अपनी पढ़ाई और खाने आदि का खर्चा उनसे नहीं लेता। बल्कि पढ़ने से जो समय बचता है, खुद परिश्रम करके वह खर्च जुटाता हूं। और सत्य तो यह है कि हमने अपने विद्यालय में शुरू से ही यह बात सीखी है कि हम इसी उम्र में अपने खुद के पैरों पर खड़े हों, अपने परिवार या अन्य किसी के बंधन का सहारा न लें।” यह सुनकर सत्यदेव अवाक् होकर उसे निहारते रहे। कुछ कह नहीं सके। दुर्भाग्य से अपने भारत में आज भी छात्रों को जो शिक्षा दी जाती है, उसमें ऐसे संस्कार प्राप्त नहीं होते कि वे समाज में अपने पैरों पर खड़े होने में स्वाभिमान का अनुभव करें।मानस त्रिपाठीबूझो तो जानेंप्यारे बच्चों! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहली है-दुनिया का सबसे बड़ा, उनको मिला इनाम।गीतांजलि के अमर कवि का, बताओ तुम नाम।।उत्तर-(रवीन्द्रनाथ ठाकुर)25
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