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क्या आप सच में गो हत्या रोकने के प्रति गंभीर हैं?लेकिन वे सबसे अधिक हिन्दू ही हैंजो गो हत्या में सहायक होते हैंफिर क्या करेंगे आप? चुप रहेंगे? अगले सौ साल तक चिट्ठियांलिखते रहेंगे और छुटपुट संघर्ष कर खबरें बनाते रहेंगे?-जितेन्द्र तिवारीअल कबीर हो या देवनार इस देश में जहां कहीं भी गो हत्या होती है या उसे बंगलादेश में कटने के लिए भेजने की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं ऐसी हर हरकत के पीछे एक हिन्दू नेता, एक हिन्दू अफसर, एक हिन्दू लापरवाह और संवेदनहीन नागरिक खड़ा दिखता है। यह स्थिति कैसे बदलेगी? लालू यादव जिस प्रकार से रेलगाड़ी को गाय कटने के सुविधाजनक तंत्र के रूप में इस्तेमाल की अनुमति दे रहे हैं उसके खिलाफ जब एक मेनका गांधी खड़ी होती हैं तो आप क्या कर रहे हैं या क्या कर सकते हैं यह अपने आप से पूछें। कम से कम भाजपा अध्यक्ष को, जिन्होंने गो रक्षा को एक मुद्दा माना, इस बारे में कुछ करने के लिए चिट्ठियां तो लिख ही सकते हैं। यहां हम आपको याद दिलाने के लिए गाय के प्रति हमारे पूर्वजों ने क्या माना और हम क्या कर रहे हैं इस बारे में संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं। -सं.गाय के बारे में कहा गया है-धृतं दुहानामदितिं… मा हिंसी:गो अवध्य है और वह जनों के लिए दूध देती है, इसलिए गो की हिंसा न कर। (यजुर्वेद, 13/49)यो अध्नाया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च।जो गोहत्या करके उनके दूध से अन्यों को वंचित करता है तो अपने तेज से उसके सर को काट डाल।(ऋग्वेद, 10/87/16)अधन्या इति गवां क एता हन्तुमर्हति।महच्चकारा कुशलं वृषं गां वाऽलभेत् तु य:।।गो का नाम ही अध्न्या (अवध्य) है, फिर इन गऊओं को कौन काट सकता है? जो लोग गो को या बैल को मारते हैं, वे बड़ा अयोग्य कर्म करते हैं।-वेद व्यास (महाभारत शांति पर्व, 262/47)दातों तले तृण दाबकर हैं दीन गाएं कह रहीं,हम पशु तथा तुम हो मनुज पर योग्य क्या तुमको यही!हमने तुम्हें मां की तरह है दूध पीने को दिया,देकर कसाई को हमें तुमने हमारा वध किया।।जारी रहा क्रम यदि यहां यों ही हमारे ह्यास का,तो अस्त समझो सूर्य भारत-भाग्य के आकाश का।जो तनिक हरियाली रही वह भी न रहने पाएगी,यह स्वर्ण-भारत-भूमि, बस, मरघट-मही बन जाएगी।।-मैथिली शरण गुप्त (भारत भारती)गाय के बारे में अपने दिल की बात कहूं तो आप रोने लग जाएं और मैं रोने लग जाऊं-इतना दर्द मेरे दिल में भरा हुआ है।-महात्मा गांधी (गांधी वाणी)… महात्मा गांधी ने अपने दिल की बात कही थी। भारत में गोवंश की स्थिति देखकर बस रोया ही जा सकता है। जहां दूध-घी की नदियां बहने की कहावत प्रचलित थी, वह भारत भूमि अब मांस और चमड़ा निर्यात का एक बड़ा केन्द्र बन गया है।बढ़ते यांत्रिक बूचड़खानेस्वतंत्रता से पूर्व जहां इस देश में 300 पशु कत्लखाने थे, वहीं आज लगभग 3600 पंजीकृत और 32000 गैरपंजीकृत कत्लखाने हैं। इनमें से भी 18 यांत्रिक कत्लखाने हैं और 30 नए यांत्रिक कत्लखानों की अनुमति दी गई है। अभी पिछले ही दिनों सहारनपुर के देवबंद में नए यांत्रिक कत्लखाने के विरोध में आंदोलन चला, जबकि सहारनपुर जिले के ही गागलहेड़ी में एक यांत्रिक कत्लखाना 2 वर्ष पूर्व ही बनकर तैयार हुआ है। मुम्बई के देवनार में पहले यांत्रिक कत्लखाने के बाद आन्ध्र प्रदेश के अलकबीर कत्लखाने को लेकर बहुत विवाद चला। वह तो चल ही रहे हैं अब तो देशभर में यांत्रिक कत्लखाने खुल रहे हैं। दिल्ली के बीचों-बीच बसा बूचड़खाना और न्यायालय द्वारा स्नानांतरण आदेश के बाद अत्याधुनिक होकर दिल्ली की सीमा पर बनाए जाने की योजना है। इन यांत्रिक कत्लखानों में प्रतिदिन हजारों पशुधन को काटा जाता है। अकेले अलकबीर में प्रतिवर्ष 1,82,400 पशुओं को काटा जाता है।मांस व चमड़ा निर्यात को प्रमुखताआंकड़ों के अनुसार देशभर के कत्लखानों में प्रतिदिन 3 लाख 50 हजार पशुधन काटा जाता है। इनमें से 30 हजार से अधिक स्वस्थ गोवंश होता है। ये आंकड़े 1992 के हैं, उसके बाद इसमें तेजी आयी है। पशु जनगणना के नए आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं पर पशुधन की संख्या में भारी कमी हुई है। पशुधन की बजाय सरकार का मांस और चमड़े के निर्यात से धन कमाने पर ज्यादा जोर रहा है। 1961 में जहां भारत 1 करोड़ रुपए का मांस निर्यात करता था वहीं 1992 में यह बढ़कर 231 करोड़ रुपए का हो गया। इस समय प्रतिवर्ष 2 लाख टन मांस निर्यात किया जा रहा है। वहीं 1961 में 28 करोड़ रुपए के चमड़ा निर्यात की तुलना में 1992 में 3,128 करोड़ रुपए का चमड़ा निर्यात किया गया।बंगलादेशी तस्करऔर अब तो मांस और चमड़े के निर्यात से स्वयं धन कमाने ही नहीं बल्कि अपने पड़ोसी बंगलादेश को भी इससे लाभ पहुंचने देने पर भी कुछ लोगों को बुराई नहीं दिखती। बंगलादेश के लिए बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर पशुओं की, विशेषकर गोवंश की तस्करी बंद आंखों से भी दिखने वाला सच है। हालांकि पश्चिम बंगाल और केरल को छोड़कर अधिकांश राज्यों में गोवंश संरक्षण सम्बंधी अधिनियम हैं, पर उन्हें प्रभावी करने की इच्छाशक्ति दिखाई नहीं देती। यही कारण है कि व्यापार के नाम पर फर्जी नाम से घूम रहे बंगलादेशी पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पशु बाजारों से पशुधन खरीदकर चोरी-छिपे पश्चिम बंगाल ले जा रहे हैं। कहीं-कहीं पर जब ये पकड़े जाते हैं तब कुछ दिन हंगामा होता है और फिर वही चाल।पशु संरक्षण अधिनियमपशु संरक्षण अधिनियम के अनुसार पशु का राज्य की सीमा से बाहर वध के लिए परिवहन गैरकानूनी है, यह केवल खेती तथा दूध के लिए किया जा सकता है। हालांकि केवल पश्चिम बंगाल और केरल में ही पशु वध की अनुमति है, परन्तु इसमें भी नियम है कि उसकी आयु कम से कम 16 वर्ष हो अथवा पशु चिकित्सक द्वारा उसे पूरी तरह अनुपयोगी अथवा वध के योग्य मान लिया गया हो। पर यह सब कानूनी और कागजी बातें हैं। जिस देश में जाली पासपोर्ट और जाली वीजा बनवाना बहुत कठिन न हो वहां पशु चिकित्सक से पशु का प्रमाणपत्र लेना कौन-सी बड़ी बात होगी। इसी की आड़ में पशु तस्करी का धंधा जोरों पर चल रहा था। 1991-92 के बाद जब पशु प्रेमी संघों ने पाया कि पशुओं के तस्करों को रेल के द्वारा मदद मिल रही है और पशुओं से भरी सभी रेलगाड़ियां हावड़ा ही जाती हैं तो उन्होंने इसका विरोध किया। अनेक बार छापे मारे, सच्चाई सामने लाए। पर केन्द्र में बैठी कांग्रेस व जनता दल की सरकारों ने कुछ नहीं किया।बेचैन बंगलादेशी तस्करगऊ संरक्षण समिति सहित अनेक गोवंश संरक्षण समितियों ने जब भारी दबाव बनाया तब 28 मई, 1992 को उत्तर रेलवे ने हावड़ा के लिए पशुधन के परिवहन पर प्रतिबंध लगा दिया, पर शीघ्र ही (21 दिसम्बर, 1994) यह प्रतिबंध हटा भी लिया। पशु तस्करी फिर जोर-शोर से शुरू हो गई। उसके बाद बिहार के अनेक स्थानों, उत्तर प्रदेश के आगरा, गाजियाबाद, हरियाणा के फरीदाबाद और पंजाब के किला रायपुर तथा भठिंडा में पशुओं से लदी मालगाड़ी पकड़ी भी गई। 17 अगस्त, 1999 को पूर्वी रेलवे के पुलिस महानिरीक्षक ने तो लुधियाना के जिलाधिकारी को गोपनीय पत्र लिखकर बहुत स्पष्ट कर दिया कि आपके यहां (पंजाब) से भेजा गया पशुधन बंगलादेश ही जाता है। भाजपानीत राजग सरकार बनने के बाद वर्ष 2001 में रेल मंत्रालय ने निर्णय लिया कि वह रेलवे द्वारा पशुओं की ढुलाई को प्रतिबंधित कर रहा है। इससे यह लाभ हुआ कि बड़ी संख्या में पशुओं की तस्करी पर रोक लगी। हालांकि सड़क मार्ग से यह तस्करी जारी है। पर इसमें खतरा अधिक रहता है और जगह-जगह पकड़े जाने का भय रहता है। इसलिए बंगलादेशी पशु तस्कर भारतीय रेल के बंद हो जाने से बहुत बेचैन थे। सूत्रों के अनुसार प्रति सप्ताह 5 हजार पशु अर्थात् प्रतिवर्ष 2 लाख 60 हजार पशु बंगलादेश ले जाए जाते हैं। पशुओं का व्यापार इन लोगों के लिए इतना फायदे का सौदा है कि इसके लिए ये पशुओं की चोरियां तक करते हैं। उत्तर प्रदेश के बिहार से लगे बलिया जिले में तो हथियारों के बल पर जबरन पशुओं को छीनने की घटनाएं भी सामने आयी हैं। जो किसान अपने एक पशु को छुड़ाने के बदले 2500 से 5000 रुपए तक फिरौती दे देता है उसका पशु छोड़ दिया जाता है और जो रुपया नहीं देता उसका पशु बिहार के रास्ते पश्चिम बंगाल भेज दिया जाता है।किनकी-किनकी साठगांठअब रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने पशु तस्करों की बेचैनी दूर कर दी है। मंत्री जी के आदेश पर 14 जुलाई, 2004 को रेलवे बोर्ड ने सभी रेल मण्डलों के महाप्रबंधकों को पत्र लिख दिया कि रेलगाड़ी द्वारा पशुओं का परिवहन पुन: प्रारंभ किया जाए। साथ ही यह भी कहा कि पशु परिवहन के लिए 1978 में बनाए गए अधिनियम एवं वर्ष 2001 में किए गए परिवर्तन को ध्यान में रखा जाए। पर प्रतिबंध खुलते ही सभी नियमों की धज्जियां भी उड़ गईं। गत जन्माष्टमी (7 सितम्बर) के दिन पंजाब के डेरा बस्सी (पटियाला) के मुबारिक पुर रेलवे स्टेशन (घग्गर) में विश्व हिन्दू परिषद्, पीपुल फार एनीमल्स सहित अनेक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने छापा मारकर 300 से अधिक बैलों को बरामद कर लिया। शेर खान नामक एक आदमी इन्हें सांडों के नाम पर हावड़ा ले जा रहा था। हालांकि शेर खान फरार हो गया। कांग्रेस के विधायक डा. हरबंश लाल, जो वन, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री रहते रिश्वत लेने के दोषी पाए गए थे, ने खान को जानने सम्बंधी पत्र भी लिखा था। शेर खान योजनाबद्ध ढंग से महाराष्ट्र के जलगांव की मण्डी समिति, औरंगाबाद की कांग्रेस कमेटी तथा औरंगाबाद के अनेक व्यापार संघों से अपने समर्थन में पत्र भी लेकर घूम रहा था। पर पंजाब पुलिस ने जनता के आक्रोश को देखते हुए बैलों को बाहर भेजने से रोक लिया है, इन सबको स्थानीय गोशालाओं में भेजा गया है और शेर खान के विरुद्ध मामला दर्ज हो गया है। पर आखिर कब तक? अगर सीमावर्ती राज्य पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार पशुओं की तस्करी में मददगार बनेगी और अवैध बंगलादेशी नागरिकों को वापस भेजने का विरोध करेगी, जंगलराज वाले बिहार के रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव पशु तस्करों की मदद के लिए रेल चलाएंगे तो मैथिलीशरण गुप्त का कहा तो सच ही होगा एक दिन।14
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