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भाजपा वाले पहले हमसे बात करतेतो हम यहीं मदद कर सकते थे-मनोरंजन भक्तसांसद (अंदमान-निकोबार), कांग्रेसभाजपा सांसदों द्वारा सत्याग्रह और गिरफ्तारी देने के बाद सेल्युलर जेल से कुछ ही फर्लांग दूर रह रहे कांग्रेसी सांसद मनोरंजन भक्त ने समर्थकों के साथ एक दिन पहले ही भाजपा आंदोलन का विरोध जताते हुए भूख हड़ताल की थी और गिरफ्तारी दी थी। प्रस्तुत हैं 22 सितम्बर को पोर्ट ब्लेयर में उनसे हुई संक्षिप्त बातचीत का सार।प्रस्तुति : आलोक गोस्वामीमणिशंकर अय्यर ने 9 अगस्त को यहां सम्पन्न हुए स्वातंत्र्य ज्योत उद्घाटन समारोह में सावरकर पट्टिका हटाए जाने के संदर्भ में क्या कहा था?उस कार्यक्रम में सावरकर पट्टिका की कोई चर्चा तक नहीं हुई। वहां श्री राम नाईक भी मौजूद थे। हमें पता चला कि श्री राम नाईक ने स्वातंत्र्य ज्योत बनाने का निर्णय लिया था। सरकार बदलने के बाद मणिशंकर पेट्रोलियम मंत्री बने। तब तक ज्योत का कुछ काम पूरा हो गया था। लेकिन किसकी पट्टिका लगानी थी, वह अभी फाइल में ही था। फाइल में सावरकर की पट्टिका लगाने की बात थी परन्तु लगी नहीं थी। इसलिए उखाड़ने का मतलब ही नहीं था। हां, सावरकर की पट्टिका लगाने के निर्णय को बदला गया था।कहा जा रहा है कि आपने क्रांतिकारियों का अपमान किया है?अपमान तो भाजपा वालों ने किया है। जेल के सामने वाले पार्क का नाम शहीद पार्क कांग्रेस सरकार ने रखा था। जो क्रांतिकारी इस मिट्टी पर शहीद हुए उनकी 6 प्रतिमाएं वहां लगी हैं। सातवीं प्रतिमा सावरकर की है, जो बाद में रिहा हो गए थे। शहीद पार्क नाम रखने से सबके प्रति श्रद्धाञ्जलि व्यक्त होती है। पर भाजपा सत्ता में आई तो उसे वीर सावरकर पार्क नाम दे दिया।आपने सावरकर जी की प्रतिमा लगाई यानी आप उन्हें स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं। फिर आपके ही मंत्री सावरकर को क्रांतिकारी मानने से इनकार क्यों करते हैं?हमने जब वहां उनकी प्रतिमा लगाई थी तब कांग्रेस सरकार की वही नीति थी। लेकिन बाद में कुछ विपरीत तथ्य (माफीनामा) मालूम चले तो विचार बदल सकते हैं, ऐसा सोचा गया था। यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं था कि 150 सांसद, 50 विधायक यहां लाए जाते। यह विरोध प्रतीकात्मक हो सकता था। यहां समाज के सभी वर्ग मिल-जुलकर रहते हैं। कोई झगड़ा-फसाद नहीं है। ऐसी जगह पर अशांति फैलाने से क्या लाभ।इस मुद्दे पर भाजपा लंबी लड़ाई के लिए तैयार है। कैसे सुलझेगा मामला?यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं था। अगर वे (भाजपा) हमसे बात करते तो यहां अंदमान में ही हम इसको सुलझा लेते। जब हम (सावरकर) प्रतिमा लगा सकते हैं तो यह भी कर सकते थे। लेकिन इसे चुनावी मुद्दा बनाने में कोई समझदारी नहीं है। अगर वे हमसे बात करते तो हम भारत सरकार को कहते कि इस विषय में गौर करें और कुछ हो सकता है तो करें। एक पट्टिका और लग जाती तो क्या हो जाता। लेकिन यह आंदोलन खड़ा करके भाजपा ने हमारी एकता तोड़ने की कोशिश की, इसे हम किसी तरह बर्दाश्त नहीं कर सकते।11
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