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सुषमा पहुंचीं अंदमान-ताकि रहे देश की आनपोर्ट ब्लेयर यानी काला पानी। सामने थी सेल्युलर जेल। तीस हजार फीट से ही अंदमान का मणि द्वीप और सागर की लहरों के मध्य निखरा-निखरा सा यह क्रांति तीर्थ मन को रोमांचित करता है, जहां देश के सैकड़ों क्रांतिकारी अथाह कष्ट और संत्रास के मध्य बरसों रहे थे। उन सभी की याद इस स्थान को तीर्थ की महिमा प्रदान करती है। यही हैं, वह सेल्युलर जेल, जहां वीर सावरकर ने बंदी जीवन के कठिन ग्यारह साल बिताए थे। यहीं कांग्रेस ने उनका अपमान किया। स्वातंत्र्य ज्योत स्मारक से उनके उद्धरण वाली पट्टिका हटा दी। इस अपमान से क्षुब्ध भाजपा नेतृत्व की मानो समूची आकाश गंगा 150 सांसदों के साथ श्रीमती सुषमा स्वराज के नेतृत्व में पोर्ट ब्लेयर पहुंची। इससे पूर्व दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में श्रीमती सुषमा स्वराज को सत्याग्रह के लिए विदाई दी गई। इस सभा को श्री लालकृष्ण आडवाणी ने सम्बोधित किया था।पोर्ट ब्लेयर पहुंचने पर एक रोमांचक दृश्य प्रस्तुत हुआ, जब देश के 150 सांसद एक क्रांतिकारी की प्रतिष्ठा पर आई आंच के विरुद्ध सत्याग्रह में शामिल हुए। इस दिन पूरा पोर्ट ब्लेयर मानो पुलिस छावनी बन गया था। लेकिन जिस एक कार्यक्रम में देश के 150 संसद सदस्य पहली बार एकजुटता से पहुंचे, उसे सेकुलर मीडिया ने महत्वहीन मानकर उपेक्षित किया। यह है इस देश का आधुनिक नफरत भरा बौद्धिक वर्ग।श्रीमती सुषमा स्वराज के साथ डा. मुरली मनोहर जोशी, श्री यशवन्त सिन्हा, श्रीमती नजमा हेपतुल्ला, श्री विजय कुमार मल्होत्रा, श्री एस.एस. अहलूवालिया आदि नेता भी थे। श्रीमती सुषमा स्वराज ने धारा 144 लगे होने तथा पुलिस द्वारा रोके जाने पर सावरकर की पट्टिका स्थानीय उपायुक्त को इस आग्रह के साथ दी कि वे सत्याग्रह की भावना सरकार तक पहुंचाकर इस पट्टिका को दोबारा लगवायें।केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर द्वारा पैदा किया गया विवाद इतना बड़ा आकार ले लेगा, इसकी आशंका शायद मणिशंकर को भी नहीं थी। प्रधानमंत्री ने तो वीर सावरकर को एक देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्वीकारा था। लेकिन फिर भी स्वातंत्र्य ज्योत पर सावरकर पट्टिका फिर से लगाने का आदेश जारी नहीं हुआ। श्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसे एक वैचारिक संघर्ष की संज्ञा देते हुए कहा कि जिन लोगों के हाथ में कांग्रेस का नेतृत्व है उन्हें भारत की अस्मिता का ज्ञान नहीं है। प्रस्तुत हैं सेल्युलर जेल में सावरकर पट्टिका लगाने की मांग करते हुए 21 सितम्बर को सांसदों के सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व करने वाली श्रीमती सुषमा स्वराज के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश-केन्द्र सरकार ने एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिए हैं, जैसे राज्यपालों को हटाना, शिक्षा में बदलाव, पोटा हटाना, सावरकर पट्टिका हटाना, राष्ट्रगान से “गुजरात” हटाना आदि। इससे सरकार की क्या मानसिकता प्रकट होती है?इस सरकार ने अपना एक मतदाता वर्ग तैयार किया है, जिसके अंतर्गत हिन्दू-विरोधी राजनीति करके मुस्लिम समुदाय को संतुष्ट करना ही उनका एकमात्र काम है। मुस्लिमों को प्रसन्न रखने के लिए यह सरकार देशहित के खिलाफ जाकर हर तरह के प्रयास ढिठाई से कर रही है। आपने ऊपर जो बातें गिनाईं, ये सब इसी कारण हुईं। इशरत जहां मामले को फर्जी मुठभेड़ बताना और एक आतंकवादी के घर जाकर उसे आर्थिक सहायता देना, उसे महिमामंडित करना; जनगणना के विकट चिंताजनक आंकड़ों पर तर्क-वितर्क किया जाना, आंध्र प्रदेश में मुस्लिमों को आरक्षण ये सब इस सरकार की राजनीति की दिशा की ओर संकेत करते हैं। वे लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के खेमों में उनसे छिटक कर पहुंचे वोटों को मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करके वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं।वामपंथियों के प्रभाव सहित संयुक्त प्रगतिशील गठंबधन के अन्य घटकों को देखते हुए क्या इस तरह की राजनीति अपेक्षित थी?बिल्कुल। पहली बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मुस्लिम लीग से किसी को मंत्री बनाया गया है। केरल में तो पहले से सरकार में कांग्रेस ने लीग को शामिल किया हुआ था। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि लीग घोर साम्प्रदायिक दल है, उसके व्यक्ति को विदेश राज्यमंत्री बना दिया। वामपंथी दलों की भूमिका तो शुरू से ही हिन्दुत्व-विरोधी, भाजपा-विरोधी रही है। इसलिए जो कुछ यह सरकार कर रही है, वह स्वाभाविक ही है। कांग्रेस अपने इन घटकों का दुमछल्ला बन गई है। सरकार में कई बार लगता है, तीन पी.एम.काम कर रहे हैं। एक तो नामित पी.एम. हैं-डा. मनमोहन सिंह। इनके अलावा एक एस.पी.एम. (सोनिया गांधी) हैं और एक सी.पी.एम. (माकपा)।अंदमान सत्याग्रह का विचार कैसे आया?संसद के पिछले सत्र में हम लोगों ने सावरकर पट्टिका उखाड़ने का मुद्दा बढ़-चढ़कर उठाया। सुश्री उमा भारती की तिरंगा यात्रा शुरू हुई। उस यात्रा के तीन मुद्दों में एक प्रमुख मुद्दा यह भी रहा। सोचा गया कि जहां यह घटना घटी, वहां चूंकि तिरंगा यात्रा नहीं जा रही, अत: उस जगह पर भी तो कोई विरोध प्रदर्शन होना चाहिए। तब इस सत्याग्रह का विचार आया और चूंकि वहां बड़ी संख्या में पहुंचना संभव नहीं था, अत: कम संख्या में परन्तु एक स्तर के लोगों को वहां ले जाने का विचार हुआ। चूंकि वहां जाने-आने का साधन सीमित है, अत: विचार किया गया कि विधायक न जाएं और केवल सांसद ही जाएं। लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही गए। शुरू से हमारी यही मांग है कि उखाड़ी गई सावरकर पट्टिका पुन: लगाई जाए।शासन का एक उदाहरण आपकी सरकार (राजग) ने रखा और शासन का एक उदाहरण वर्तमान सरकार रख रही है। तुलना करें तो क्या पाती हैं?हमने शासन की एक शैली प्रस्तुत की थी, जिसमें दुर्भावनापूर्ण राजनीति के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। इस सरकार की अब तक जो शैली है उसे सब देख रहे हैं। तुलना जनता करेगी, मीडिया करेगा।केरल सरकार ने राष्ट्रगान में से “गुजरात” हटाया है। इस पर क्या किसी तरह के विरोध प्रदर्शन की योजना है?यह दुर्भावना की राजनीति का ही एक और कृत्य है। “गुजरात” तो उनकी आंख की किरकिरी बना हुआ है। यह कृत्य उनकी किसी भी हद तक जाकर दुर्भावना प्रकट करने की मानसिकता दर्शाता है। यह मुद्दा वर्तमान विरोध अभियानों में उठेगा ही और गुजरात सरकार ने भी विरोध प्रदर्शित किया है।अंग्रेजों की मिजाजपुर्सी करने वाले, पं. नेहरू और महात्मा गांधी के लिए अपशब्द बोलने वाले वामपंथियों को साथ मिलाकर सरकार चलाने वाली कांग्रेस में क्या किसी तरह का लज्जाभाव झलकता है?इनको क्या लज्जा आएगी। सुब्बुलक्ष्मी जगदीशन, जो राजीव गांधी हत्याकाण्ड में तीन साल जेल काटकर आई, इस सरकार में मंत्री है। द्रमुक, जिस पर इसी कांग्रेस ने राजीव गांधी हत्याकाण्ड का मुकदमा चलाया, के साथ समझौता किया।आरोप लगाए जा रहे हैं कि आप सावरकर पट्टिका का मुद्दा महाराष्ट्र में चुनावी फायदे के लिए उठा रही हैं?अगर चुनाव में इन मुद्दों का हम लाभ उठा सकते हैं तो इनको समाप्त कर देना कांग्रेस के हाथ में है। सावरकर पट्टिका लगवाकर वह इस मुद्दे को ही समाप्त कर दे। तब हम तो इस विवाद का समाधान करने पर उनका धन्यवाद भी करेंगे।प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी10
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