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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के नाम खुला पत्र

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May 5, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 May 2002 00:00:00

कार्रवाई गुजरात में ही क्यों, जम्मू-कश्मीर में क्यों नहीं?महोदय,मैं उन लाखों अभागों में से एक हूं जिन्हें बिना किसी कारण के कश्मीर में अपना घर-द्वार छोड़कर वहां से निकल जाने को मजबूर किया गया। मेरा दोष सिर्फ इतना ही है कि मैं भारत का एक देशभक्त नागरिक हूं। मुझे किन्हीं विदेशी शक्तियों ने कश्मीर छोड़ने को मजबूर नहीं किया, बल्कि मुझे मजबूर करने वाले मेरे अपने ही थे, जिन्हें मैंने अपना प्यार और स्नेह दिया। मैं कुछ ऐसे व्यक्तियों के नाम बताना चाहता हूं, जिन्हें बिना किसी कारण के दिनदहाड़े निर्दयतापूर्वक मारा गया, ये हैं-श्री टीका लाल टपलू (जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता), पं. नीलकांत गंजू (सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश) और पं. प्रेमनाथ भट्ट (अनंतनाग के वरिष्ठ अधिवक्ता)।ये तीनों व्यक्ति शांति-प्रिय, पंथनिरपेक्ष और देशभक्त थे।स्वर्गीय टीका लाल टपलू को उनके घर के बाहर ही गोलियों से भून दिया गया, क्योंकि उन्होंने बार एसोसिएशन के सामने कह दिया था कि उन्हें जान से मारने वाला कोई पैदा नहीं हुआ।स्वर्गीय पं. नीलकांत गंजू को सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हरी सिंह स्ट्रीट पर गोलियों से बर्बरतापूर्वक भून दिया गया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख मकबूल बट्ट को सत्र न्यायाधीश की हैसियत से दोषी करार दिया था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसकी पुष्टि की। इस मामले में सभी चश्मदीद गवाह मुस्लिम थे। उनमें से कोई भी नहीं मारा गया।स्वर्गीय प्रेमनाथ भट्ट की दिनदहाड़े उनके घर के पास हत्या कर दी गई। वे राष्ट्रभक्त थे और उन्होंने विस्थापितों की सहायता के लिए धन एकत्र किया था। उन्होंने मुसलमानों की भी बेहिचक सहायता की थी।कश्मीर घाटी में इन्हीं लोगों की तरह अनेक कवि, पत्रकार, लोक हितैषी और शांतिप्रिय बेकसूर नागरिक मारे गए। और कई अपना घर-बार छोड़कर जम्मू और देश के अन्य भागों में खानाबदोशों की तरह तम्बुओं और छोटी-छोटी कोठरियों में जीवन काट रहे हैं। उनके घर नष्ट कर दिए गए, जला दिए गए, लूट लिए गए और बर्बाद होते घरों की इस दशा पर आंसू बहाने के लिए वहां कोई नहीं पहुंचा। यहां तक कि किसी राजनीतिक दल के नेता या बड़े अधिकारी भी महीनों-वर्षों तक उन विस्थापितों के आंसू पोंछने नहीं गए।मंजूर दर्जी नामक एक व्यक्ति ने स्वीकार किया कि उसने श्री प्रेमनाथ भट्ट सहित 36 लोगों को मौत के घाट उतारा। कई वर्षों से वह जेल में है। उसने जम्मू एण्ड कश्मीर बैंक की अनन्तनाग शाखा से से डेढ़ करोड़ रुपए लूटे, लेकिन उसके मामले की सुनवाई के लिए किसी भी विशेष अदालत का गठन नहीं किया गया।दु:ख है कि आज तक किसी भी मानवाधिकार संगठन ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि उन्हें क्यों मारा गया? क्यों प्रताड़ित किया गया? उनके घर क्यों जलाए गए? उन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन क्यों नहीं किया गया? किसी स्वतंत्र जांच संस्था या सी.बी.आई. द्वारा इन मामलों की जांच क्यों नहीं कराई गई?महोदय, क्या हम इंसान नहीं हैं! कार्रवाई सिर्फ गुजरात में ही क्यों, जम्मू-कश्मीर में क्यों नहीं? जम्मू-कश्मीर सरकार के खिलाफ कोई रपट क्यों नहीं उजागर हो रही? जबकि जम्मू में तम्बुओं में विस्थापितों की तरह रह रहे अधिकतर लोग अगर गोलियों से नहीं भूने जा रहे हैं तो गर्मी और सांप के काटने से मर रहे हैं।एच.एल. जाडमूल निवासी, नाजुक मोहल्ला, अनंतनाग, कश्मीरवर्तमान पता-2ए, पाकेट ए/9,कालकाजी एक्सटेंशन, नई दिल्ली-11001919

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