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मौन बाती

Archive Manager by
May 5, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 May 2002 00:00:00

द बसंत गुप्ताजल रही ढिबरी स्वयंहै मौन बातीफिर वो कैसे रोशनी केगीत गाती,स्याह अंधियारे दरकतेही रहेमंजिलों तक दृष्टि कैसेपहुंच पाती।आंधियों की कोख ने दीसनसनीसकपकाई,कांपती औरअनमनीबंद पलकों में समेटे आसकल कीदुधमुंहे को नेह कीलोरी सुनाती।शब्द गूंगे, भाव बहरेसे लगेआंसुओं में नैन ठहरेसे लगेदूर से आती हुईपदचाप कोईभोर की उस किरन कासंदेश लाती।मील के निस्पंद पत्थरहैं खड़ेप्रेरणाएं क्यूं गढ़ेंआगे बढ़ेंहैं ऋचाएं साथ अपनेवैदिकीऔर सम्बल के लिएपुरखों की थाती।31

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