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बगुला भगत और केकड़ानीचे पहाड़ी के नीली झील में, ढेर सारे जीव-जंतु रहते थेतट पर रहता था चालाक बगुला, जो था बूढ़ा, पर चतुर बड़ामछली पकड़ सकूं ना, ना ही उड़ पाऊं मैंतो झूठ-मूठ का राम भगत ही बन जाऊं मैं।अंकल पै, यह कैसा गाना है?ये है अक्कड़-बक्कड़, उक्का-बुक्का, पक्का दाना, अच्छा गानाये गुड़धानी, नयी कहानी, भाये जो हमेंएक दो, तीन, चार, पांच व छह, चाचा पै, आगे कहिएएक टांग पर बगुला खड़ा हो गयाझूठ-मूठ के आंसू बहाने लगाकेकड़े ने पूछा-भाई रोते हो क्यों?सुनकर दुष्ट बगुला कहने लगा यों-अब बारह साल पानी न बरसेगा,जल्दी ही हर प्राणी मर जाएगा।लेकिन किस्मत से पास ही जरा,एक है तालाब जल से पूरा भरा।जो वहां जाएंगे, वो सुख पाएंगे,पीछे रहने वाले दु:ख से पछतायेंगे।मछलियां बोलीं, वो चली जाएंगी,एक-एक कर नये ताल में जाएंगी।एक-एक कर मछलियां बगुले ने मारीं,खाकर उन्हें डकार जोर की मारी।जल्दी ही केकड़े की आई फिर बारी,उड़ चला वह बगुले पे किए सवारी।मछलियों की हड्डियों का ढेर जो देखाचालाक केकड़े ने बगुले से पूछा।बगुले जी, और कितनी दूर है तालाबहा, हा, हा, हा- आप बुद्धू हैं जनाब।।खा जाऊंगा आपको मैंने है सोचातो पंजों में केकड़े ने उसको दबोचा।तड़फ कर बगुला नीचे आ गिरा,केकड़ा फिर धीरे-धीरे घर आ गयाकपटी बगुले का सबको किस्सा सुनाया,मरने वालों का सबने मातम मनाया।13
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