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द ऋचा सत्यार्थीफिर चुपके-चुपके आई है, दीवाली की रात।सहमी-सहमी, सकुचाई है, दीवाली की रात।।हंसते-गाते, इठलाते, महके-महके जज्बात।क्यों दुल्हन सी शरमाई है, दीवाली की रात।।अनचाहे जी रहे थे, बस्ती के सारे लोग।सौ अरमान सजा लाई है, दीवाली की रात।।अब तो निगाहों में उजयारे ही उजयारे निखरे।हंसती जगमग आई है, दीवाली की रात।।प्रीत के रंगों, मीत के रंगों, और जीवन के रंग।हां, सब रंगों में नहाई है, दीवाली की रात।।मायूसी है, पर कहते हैं, फुटपाथों के लोग।भूखे-हाल बहुत भाई है, दीवाली की रात।।25
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