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सिंधु-एक परिचय

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Feb 6, 2002, 12:00 am IST
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दिंनाक: 06 Feb 2002 00:00:00

गंगे च, यमुने चैव, गोदावरि, सरस्वती, नर्मदे,सिंधु, कावेरि! जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु!इस तथ्य से नई पीढ़ी के कम भारतीय ही अवगत होंगे कि देश में और बाकी सब तो नदियां हैं पर सिंधु और ब्राह्मपुत्र ये दो नद हैं। विशालकाय और दीर्घवाही जलप्रवाह, जो कैलास मान-सरोवर के एक ही प्रदेश से जन्म लेकर परस्पर भिन्न दिशा में बहते हुए नगाधिराज हिमालय की प्रदक्षिणा करके पश्चिम और पूर्व भारत की सेवा करते-करते हिंद महासागर के दो विभागों को अपना विशाल जल का अघ्र्य अर्पण करते हैं। सिंधु को तो पंजाब की सब नदियां अपना जल अर्पण करती ही हैं, उसके बाद सिंधु ने पंजाब के दक्षिणवर्ती प्रदेश को अपना ही नाम अर्पित किया है।सिंधु नदी 550 किलोमीटर की दूरी तक लद्दाख को विकर्णत: काटती हुई बहती है और इस पूरे क्षेत्र में वह एक संकरे गर्त में सीमित रहती हैं जिसकी चौड़ाई औसतन कुल दस किलोमीटर है।मानसरोवर के लगभग 100 किलोमीटर उत्तर में सेंगे खबाब (सिन्धु का तिब्बती नाम जिसका अर्थ है सिंह मुखी) के स्रोतों से निकलकर यह महानदी पहले 250 किलोमीटर उत्तर पश्चिम की ओर बहती है और एक बहुत बड़े वक्र में ताप्ती को पार करती हुई देमचोक के दक्षिण-पूर्व में लद्दाख में प्रवेश करती है। फिर यह नदी हरमोश चोटी (7,397 मीटर) के आधार पर 560 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर एक असममित घाटी में बहती रहती है और थांगड़ा और खटराक्ष पर दो बार लद्दाख श्रेणी को काटती है। ये दोनों स्थान क्रमश: लेह से 160 किलोमीटर उत्तर में हैं। हरामोश को अपने दाई ओर छोड़ती हुई सिंधु नदी दक्षिण की ओर बड़ा तेज मोड़ काटती है और यहां एक भीषण महाखड्ड में होकर दूसरी बार लद्दाख श्रेणी को काटती है। यह महाखड्ड बुंजी के निकट है और 5,200 मीटर गहरा है। नंगा पर्वत के पार 90 किलोमीटर और पश्चिम की ओर बहने के बाद वह नदी लद्दाख की सीमा लांघकर पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है।बाएं किनारे पर तीन महत्वपूर्ण नदियां सिंधु नदी में मिलती हैं, इनके नाम हैं-जांसकार, द्रास और ऐस्टर। इन नदियों को वृहत् भारत का सिंधु प्रकोष्ठभारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय का यह प्रकोष्ठ मुख्य रूप से वर्ष 1960 में पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि के क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी है। इसके अतिरिक्त, इस स्कन्ध द्वारा रावी-व्यास जल अधिकरण, सतलुज-यमुना संपर्क नहर, ओखला तक यमुना जल और हरिद्वार तक गंगा जल का बंटवारा, ऊपरी यमुना नदी बोर्ड और ऊपरी यमुना समीक्षा समिति, दिल्ली जल आपूर्ति और बाढ़ नियंत्रण तथा सूखा प्रबंध से सम्बंधित कार्य किए जाते हैं। इन सबसे अलग, अनुच्छेद पांच, जो कि पूर्वी नदियों से 15 अगस्त, 1947 तक सिंचाई नहरों को होने वाली जलापूर्ति की एवज में भारत के पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों से जलापूर्ति के लिए करवाए गए पुनर्वास कार्यों की लागत के भुगतान से सम्बंधित है, अब बेमानी हो चुका है, क्योंकि भारत पहले ही वि·श्व बैंक को 62,060,00 पाउंड स्टर्लिंग का भुगतान कर चुका है। इसी तरह, परिवर्ती समय से सम्बंधित अनुलग्नक, उस समय से सम्बंधित है जिसमें पाकिस्तान को अपना पुनर्वास कार्य पूरा करने के साथ अनुलग्नक के प्रावधानों के अनुसार, पूर्वी नदियों से जल प्राप्त करना था। अब यह अनुलग्नक भी बेमानी हो गया है, क्योंकि यह कालखंड केवल 31 मार्च, 1970 तक था और यदि बढ़ाया गया था तो केवल 31 मार्च, 1973 तक।हिमालय के हिमनदों से पानी मिलता रहता है। बाएं तट पर दो अन्य नदियां सिंधु में मिलती हैं-खपालू के निकट श्योक नदी और स्कार्दु के निकट शिगार। इन दोनों का पोषण काराकोरम हिमनदों के पिघले हुए पानी से होता है। स्कार्दु में जहां सिंधु का शिगार नदी से संगम होता है, वहां शिगार के ऊपर की ओर 50 किलोमीटर रेतीले अर्धशुष्क मैदान फैले हुए हैं। इस संगम के 30 किलोमीटर ऊपर और नीचे सिंधु नदी उसी प्रकार के स्टेपी प्रदेशों में से प्रवाहित होती है।सिंधु आयोगसिंधु जल संधि के अनुच्छेद आठ में स्थायी सिंधु आयोग के गठन का प्रावधान है। इस संधि के अनुरूप भारत और पाकिस्तान दोनों ने सिंधु नदी के लिए एक-एक आयुक्त के पद का सृजन किया। ये दो आयुक्त संयुक्त रूप से स्थायी सिंधु आयोग का गठन करते हैं, जिसका उद्देश्य संधि के क्रियान्वयन के लिए सहयोगात्मक व्यवस्था कायम करना और उसे बनाए रखना है। इस आयोग की नियमित रूप से हर साल जून से पहले एक बार बैठक होती है। हर वर्ष बैठक के स्थान में परिवर्तन होता है, यह बैठक एक बार भारत में और एक बार पाकिस्तान में होती है। पिछली बैठक मई/जून, 2001 में पाकिस्तान में हुई थी। हिमालय के दोनों छोरों से घूमकर उन्हें हिंद महासागर तक पहुंचाने का काम सिंधु और ब्राह्मपुत्र, दोनों नद अखंड रूप से करते हैं। ये दो नद ऐसे लगते हैं मानो श्री कैलासनाथजी ने भारतवर्ष को अपनी भुजाओं में लेने के लिए दो बाहु फैलाये हों। पश्चिम तिब्बत में कैलास क्षेत्र में सिंधु का उद्गम है। वहां से सीधी रेखा में वायव्य की ओर वह दौड़ती है, क्योंकि अंत में उसे नैऋत्य की ओर जाना है।लद्दाख में आकर लेह की फौजी छावनी से सिंधु कराकोरम पहाड़ की ओर सीधी बढ़ती है। गिलगित के किले से दूर वह दक्षिण की ओर मुड़ती है। चित्राल की ओर स्वाल नदी उसके पास आती है। सफेद कोह का पानी लाने वाली काबुल से मिलकर वह अटक के पास सिंधु से आ मिलती है। अब सिंधु पूरी की पूरी भारतीय बन जाती है। क्रुमू या कुरम नदी सिंधु से मिलती है, तब उसका प्रवाह बिगड़ता है। पहाड़ के अभाव में वह मर्यादा में नहीं रह पाता। छोटे-छोटे टापू बनाती सिंधु डेरा इस्माइल खां से लेकर डेरा गाजी खान तक जाती है। द30

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