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–रामेश्वर हरिदमाटी को ढंकने लगे सीमेंट, पत्थर, रेत।अन्न कहां उपजाओगे जब न बचेंगे खेत।।सागर वालों को यहां लगती ज्यादा प्यास।झरने से संतुष्ट जो सुख है उसके पास।।मैना, सुआ, कपोत सब सहमे-सहमे आज।दीवारों पर गिद्ध हैं और गगन में बाज।।सभी भिखारी हैं यहां दाता ह
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