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बाल जगत

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May 8, 2001, 12:00 am IST
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दिंनाक: 08 May 2001 00:00:00

बलिदानी चिकित्सकयह बात है फ्रांस देश के एक शहर मार्सेल्स की। इस शहर में एक बार बड़ी भयंकर महामारी का प्रकोप हुआ तथा बहुत से लोग उस महामारी के शिकार होने लगे। चिकित्सक हैरान थे, क्योंकि इस महामारी के कारण की खोज करते-करते वे हार गए थे। अब सिर्फ एक उपाय बाकी था- उस रोग के शिकार होकर मरे किसी व्यक्ति की मृत देह की शल्यक्रिया (चीर-फाड़) तथा उसके अंग-प्रत्यंग की जांच करके यह देखना कि महामारी का उस रोगी के शरीर पर कैसा प्रभाव पड़ता है तथा रोग से प्रभावित व्यक्ति की इतनी शीघ्रता से मृत्यु क्यों हो जाती है। किन्तु प्रश्न यह था कि ऐसी जोखिम भरी परीक्षा करे कौन? किसे अपने प्राणों का भय न था। जो चिकित्सक शल्यक्रिया करता वह उस मृत रोगी की छूत से खुद भी उस रोग का शिकार होकर मौत के मुंह में जा पहुंचता। यह प्रश्न मुंह बांये खड़ा था। तभी एक युवा चिकित्सक, जिसका नाम डा. हेनरी गायन था, आगे आया और बोला- यह परीक्षण मैं करूंगा। आप लोग बिल्कुल चिन्ता न करें। मेरे कोई सगे-सम्बंधी नहीं हैं। मेरे मरने के बाद कोई रोने वाला भी नहीं है। बेहतर है कि मेरी जिन्दगी इस जन-सेवा के काम आ जाए। मरना तो एक दिन होगा ही-कुछ पहले सही। कुछ रुककर उसने फिर कहा, हां, मेरी एक इच्छा है, इस परीक्षण के दौरान मेरी मृत्यु हो जाने के बाद मेरी सम्पत्ति को मार्सेल्स के अस्पताल के कार्यों में व्यय किया जाए। दूसरों के भले के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाले उस उत्साही चिकित्सक के प्रस्ताव को सुनकर अन्य सब स्तब्ध रह गए। दूसरे दिन हेनरी ने एक कमरे में महामारी से मरे हुए एक रोगी की मृत देह रखी और उसकी शल्यक्रिया प्रारम्भ कर दी। उस शव की शल्यक्रिया तथा जांच करने के दौरान उसे जो जानकारी प्राप्त हुई, उसे वह अपने कागजों पर लिखता गया। साथ ही वह उन कागजों को कीटाणुओं से मुक्त करने के लिए उन्हें पास ही मेज पर रखे रसायन में डुबोकर अलग रखता जाता। इसी तरह वह अपने लिखे उस परीक्षण की सब टिप्पणियों को रसायन में भिगो-भिगोकर एक फाइल में सुरक्षित रख रहा था। अभी उसका यह शोध कार्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि तभी उसे घातक महामारी के ज्वर ने आ घेरा। 12 घंटे बीतते-बीतते वह महान त्यागी चिकित्सक संसार से चल बसा। बाद में अन्य चिकित्सकों ने उसके शोध (खोज कार्य) सम्बंधी कागजों को बहुत दिनों तक पढ़-समझकर उस महामारी के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त की। परिणामस्वरूप उस भयंकर प्राणघाती महामारी की दवा बनाना संभव हो सका। 275 वर्ष पहले की इस घटना को याद करके आज भी फ्रांसवासी उस बलिदानी चिकित्सक-हेनरी गायन का नाम बड़े गौरव से लेते हैं।।- मानस त्रिपाठीबूझो तो जानेंप्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं तो फिर देरी कैसी? झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह तुमसे ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-अंडमान की काल कोठरी को था धन्य बनाया, दो जन्मों की कारा पाकर-तनिक न मन घबराया।थे प्रसिद्ध लेखक-इतिहास विषय के अनुपम ज्ञाता, सुनकर उनके कष्ट-शीश श्रद्धा से खुद झुक जाता।।उत्तर :(वीर सावरकर)12

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