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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

Archive Manager by
May 8, 2001, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 May 2001 00:00:00

थ् वर्ष 7, अंक 6 थ् भाद्रपद कृष्ण 8, सं. 2009 वि., 31 अगस्त,1953 थ् मूल्य 3 आनेथ् सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रथ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ——————————————————————————–जनमत संग्रह की भूलदिल्ली की चिट्ठी(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)राजनीतिक क्षेत्रों का कहना है कि जब भारत के विभाजन के लिए जनमत आवश्यक नहीं समझा गया और भारत की अन्य रियासतों के विलय के निमित्त उसकी आवश्यकता नहीं मानी गई तो साधारण रूप से कश्मीर के विलय के लिए भी जनमत की आवश्यकता नहीं थी, महाराजा द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर पर्याप्त थे। कश्मीरी जनता की ओर से उस समय उस प्रकार की कोई मांग भी नहीं थी। पर अब तक के जनमत संग्रह के निमित्त भारत सरकार के आ·श्वासन में और संयुक्त विज्ञप्ति से जो बात प्रकट होती है, उसमें वैधानिक दृष्टि से बहुत बड़ा अंतर है। प्रधानमंत्री पं. नेहरू का जनमत लेने का आ·श्वासन कश्मीरियों के लिए था, उसका पाकिस्तान से कोई सम्बंध नहीं था।क्या पाकिस्तान में विद्रोह होगा?यह पाकिस्तान है-अलीप्रधानमंत्री श्री मुहम्मद अली बकरीद के दिन दिल्ली से लौटकर कराची आ गए। वे पांच दिन दिल्ली में रहे। साधारणतया इतने दिन कोई प्रधानमंत्री दूसरे के यहां नहीं रहता। लेकिन इस बीच भारत और पाकिस्तान के मध्य जो मैत्री बढ़ रही है(?) उसके कारण ही यह संभव हुआ। आशा थी कि कराची लौटने पर श्री अली कोई वक्तव्य देंगे लेकिन उन्होंने कोई विशेष बात नहीं कही। कुछ कहने से पूर्व वे अपनी बातचीत और समझौते को मंत्रिमण्डल के समक्ष रखना चाहते थे। उन्हें संदेह था कि मंत्रिमण्डल समझौते का अधिक स्वागत नहीं करेगा।मंत्रिमण्डल की बैठक में यह स्पष्ट भी हो गया। अनेक सदस्यों ने समझौते की आलोचना की और कहा कि प्रधानमंत्री दिल्ली में हुए स्वागत के प्रभाव में बहकर भारत की बात मान आए हैं।नेपाली राजनीति में क्षणिक शांतिनेपाल की चिट्ठी(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)नेपाल की राजनीति में इस समय विशेष गति नहीं है। मंत्रिमण्डल में नए लोगों के लिए जाने की चर्चा बीच-बीच में खड़ी होती है। कभी नेपाली कांग्रेस की बात होती है तो कभी प्रजा परिषद् की ओर नेपाली राष्ट्रीय कांग्रेस की। परन्तु इतना निश्चित मालूम होता है कि बिना पुनर्संगठन हुए इस सरकार का सफलतापूर्वक चलना सम्भव नहीं होगा।मंत्रिमण्डल को बने हुए दो महीने से अधिक हो गए परन्तु अभी तक उसके पांचवें मंत्री श्री महावीर शमशेर ने शपथ ग्रहण नहीं की है। वे विदेश यात्रा से घूमकर वापस लौट आए हैं तो भी कलकत्ते में ही सैर-सपाटे कर रहे हैं। काठमाण्डू जाकर अपना उत्तरदायित्व ग्रहण करना उन्होंने आवश्यक नहीं समझा है। प्रधानमंत्री को छोड़कर शेष मंत्री अनुभवहीन हैं एवं उनसे सरकार चलाना सम्भव नहीं है। देश के हित में यह आवश्यक है कि सरकार ठीक प्रकार से संगठित होकर जनता की सेवा के लिए ठोस कदम उठाए।मैसूर मंत्रिमण्डल में संकटदक्षिण की चिट्ठी(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)पिछली चिट्ठी में मैंने इस बात का संकेत दिया था कि मैसूर कांग्रेस सब प्रकार के आंतरिक झगड़ों का केन्द्र बन रही है और दोनों विरोधी दल एक दूसरे को मटियामेट करने के लिए जी-तोड़ कोशिशें कर रहे हैं। मुख्यमंत्री तथा राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष की गद्दियां हिल उठी हैं। अभी यह कहना कठिन है कि दोनों में से कौन सी गद्दी बनी रहेगी। मुख्यमंत्री विरोधी दल के नेता श्री के.सी. रेड्डी ने, जो आजकल केन्द्र में उत्पादन मंत्री हैं, अपने चेलों की सफलता का मार्ग साफ कर दिया है-यह बताया जाता है। ज्ञात हुआ है कि उप-खाद्यमंत्री श्री कृष्णप्पा की सहायता से, जो श्री रेड्डी के ही क्षेत्र से निर्वाचित हैं, उन्होंने कांग्रेस के प्रधान पं. नेहरू के सामने मैसूर राज्य कांग्रेस का सब कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है।9

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