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जनरल का कठपुतली नृत्यद दीनानाथ मिश्रबचपन में मेला घूमने का शौक था। इसका एक खास कारण था। कठपुतलियों का नाच देखना मुझे अच्छा लगता था। एक बड़ा सा कठपुतला होता था। उसकी वेशभूषा राजसी होती थी। छोटे-छोटे कठपुतले तलवार लेकर मार-काट करते थे। कठपुतलियां नाचती थीं। कहानी साथ-साथ चलती थी। कठपुतली का नाच दिखलाने वाला दोनों हाथों की उंगलियों में बंधे धागों से कठपुतलियों को नचाता था। मगर वह छिपा रहता था। छोटे से मंच पर दिखता तो सिर्फ कठपुतलियों का नाच और मार-काट वगैरह ही।कठपुतलियों का एक नाच मैं आज भी देख रहा हूं। चाहें तो आप भी देख सकते हैं। जनरल परवेज मुशर्रफ से बड़ा कोई और कठपुतला दुनिया में शायद ही पैदा हुआ होगा। कठपुतलियों का नया नाच 11 सितम्बर के बाद चालू हुआ है। जार्ज बुश ने अपनी तमाम उंगलियों में धागे बांध लिए हैं। अमरीकी राष्ट्रपति इस कठपुतली नृत्य के सूत्रधार हैं और बाकी कई देश नाच रहे हैं। सबसे ज्यादा नाचना पड़ रहा है परवेज मुशर्रफ को। अगर उन्हें मालूम होता कि ऐसा कठपुतली का नाच करना होगा तो वह नवाज शरीफ का तख्ता हरगिज नहीं पलटते। भला बताइए, यह भी कोई बात हुई कि जिस तालिबान को पाकिस्तान ने जन्म दिया, पाला-पोसा, बढ़ाया, राजकाज दिया अब यह सूत्रधार मुशर्रफ को कह रहा है कि इसकी गर्दन काट दो और परवेज साहब को काटना पड़ रहा है। जिन कमाण्डरों ने नवाज शरीफ का तख्ता पलटने में उनकी सबसे अधिक मदद की, सूत्रधार के आदेश से कठपुतले को उनका ही सफाया करना पड़ रहा है। कमाण्डरों की एक तिकड़ी में किसी ने हवाई जहाज को सुरक्षित उतरवा कर उनकी जान बचाई, किसी ने टी.वी.सेंटर पर कब्जा किया, किसी ने नवाज शरीफ को गिरफ्तार कर तख्ता पलट दिया। सूत्रधार ने आदेश दिया और मुशर्रफ ने इनकी ही छुट्टी कर दी।परवेज मुशर्रफ खुद सबसे बड़े जिहादी हैं। उनके मुकाबले ज्यादा कट्टर होने का दावा पाकिस्तान में शायद ही कोई कर सके। वह तो पाकिस्तान के सैनिक शासक के रूप में कहते रहे हैं कि कश्मीर में आतंकवाद नहीं, जिहाद चल रहा है। यह स्वतंत्रता संग्राम है। अब जब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में फिदायीन हमलावारों ने 38 लोगों की जान ले ली तब पहली बार किसी पाकिस्तानी शासक ने यह माना कि यह आतंकवाद है। 8 अक्तूबर की प्रेस कांफ्रेंस में परवेज मुशर्रफ को सूत्रधार के कहने पर यह कहना पड़ा। बड़ा दिलचस्प कठपुतली नृत्य चल रहा है। उस कठपुतले पर क्या गुजर रही होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।उसे अपने चहेते कट्टरपंथी नेताओं को गिरफ्तार करना पड़ रहा है। उनके और अमरीका के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन चालू हो गए हैं। वह अपने चहेते लोगों पर गोली चलवाने के लिए मजबूर हैं। वह जैसे कोई वफादार बेगम हों, साहब कहता जाता है और बेगम मानती जाती है। ऐसा ही हो रहा है। बुश ने फरमाया वाजपेयी से बात करो, उन्होंने झुककर बात कर ली। बुश ने कहा कि सैनिक हवाई अड्डे खोल दो, उन्होंने खोल दिया। बुश ने कहा यह करो, मुशर्रफ ने यह किया। बुश ने कहा वह करो, मुशर्रफ ने वह किया। उर्दू और अरबी के अखबार अमरीका को कह रहे हैं कि आतंकवाद को बोओगे तो आतंकवाद को ही काटोगे।यह बात तो ठीक ही है। तालिबानी आतंकवाद की मां का नाम अगर पाकिस्तान है तो उसके पिता का नाम अमरीका है। ओसामा बिन लादेन को भी सऊदी अरब से उठाकर सोवियत संहार के लिए अमरीका ही अफगानिस्तान लाया था। उसी ओसामा बिन लादेन ने अल-कायदा का जाल दुनिया के चार दर्जन देशों में फैलाया। नवाज शरीफ के जमाने में मुशर्रफ ने उसको बचाया था वरना सी.आई.ए. प्रशिक्षित कमाण्डो ने उसका काम तमाम कर दिया होता। कठपुतले की भूमिका में आने के बाद आज वही मुशर्रफ लादेन को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के फरमान का पालन कर रहे हैं। लोग कहते हैं कि 11 सितम्बर को दुनिया बदल गई, लोगों के दिमाग बदल गए। सही कहते हैं, परवेज मुशर्रफ भी जनरल मुशर्रफ से कठपुतले मुशर्रफ बन गए।7
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