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थ्सैकड़ों संतों द्वारा रोष व्यक्तआस्ट्रेलिया सरकार माफी मांगेद प्रतिनिधिगत 24 नवम्बर को इन्द्रप्रस्थ वि·श्व हिन्दू परिषद्, दिल्ली के तत्वावधान में आस्ट्रेलिया उच्चायोग पर एक विशाल प्रदर्शन किया गया। यह प्रदर्शन आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में समलैंगिकों द्वारा आयोजित तथाकथित वार्षिकोत्सव समारोह के दौरान अनेक हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित करने की घटना के प्रति रोष व्यक्त करने के रूप में किया गया था। इस अवसर पर सैकड़ों सन्तों ने आस्ट्रेलिया उच्चायोग पर धरना दिया तथा आस्ट्रेलियाई राजदूत को एक ज्ञापन सौंपा।इस धरने में सम्मिलित होने वाले सन्त-महात्मा उस दिन दोपहर 1 बजे तीनमूर्ति चौक पर एकत्रित होकर आस्ट्रेलियाई दूतावास की ओर जुलूस के रूप में बढ़े। कुछ ही दूर जाकर पुलिस द्वारा रोके जाने पर सभी सन्त वहीं मुख्य मार्ग पर धरने पर बैठ गए। बाद में सन्तों का एक प्रतिनिधिमण्डल महंत नवलकिशोर दास जी के नेतृत्व में ज्ञापन देने आस्ट्रेलिया उच्चायोग गया। दिल्ली के प्रमुख सन्तों द्वारा हस्ताक्षरित उस ज्ञापन में मांग की गयी कि आस्ट्रेलिया सरकार इस घटना के लिए सम्पूर्ण वि·श्व के हिन्दुओं से सार्वजनिक रूप से माफी मांगे। इन्द्रप्रस्थ वि·श्व हिन्दू परिषद्,दिल्ली द्वाराआस्ट्रेलियाई राजदूत को दिए गए ज्ञापन के संपादित अंश-गत दिनों आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में समलैंगिकों द्वारा मनाए गए तथाकथित वार्षिकोत्सव समारोह के दौरान अनेक हिन्दू देवी-देवताओं को समलैंगिकता के प्रतीक तथा प्रतिमूर्ति के रूप में प्रदर्शित करने की घटना से सम्पूर्ण वि·श्व के हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आघात लगा है। यह हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को सर्वाधिक ठेस पहुंचाने की एक कुत्सित चाल है। अत: आस्ट्रेलिया सरकार सम्पूर्ण हिन्दू समाज से सार्वजनिक रूप से माफी मांगे। उक्त कार्यक्रम को प्रायोजित करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों (क्वांटाज, टेलेस्ट्रा, पाक्रोयल, ट्रेवेलाज, पेप्सी, सिटी सर्च, साउथ कार्पोरेशन तथा विन्स) को भी दण्डित किया जाए। आस्ट्रेलिया सरकार भविष्य में ऐसी व्यवस्था करे एवं यह सुनिश्चित करे कि अब इस प्रकार के कार्यक्रम नहीं होंगे तथा यह वचन भी दे कि अपने देश में कहीं भी हिन्दू देवी-देवताओं को अपवित्र एवं अपमानित नहीं होने देंगे।ज्ञापन सौंपने गए प्रतिनिधिमण्डल में महंत नवलकिशोर दास, महामण्डले·श्वर रामानंद रमते योगी, महामण्डले·श्वर देवेन्द्रानंद गिरि, महंत ताड़के·श्वर गिरि व महंत मंगलदास प्रमुख रूप से शामिल थे।35
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