1857 से पहले के क्रांतिकारी भाई महाराज सिंह : जानिए मां भारती के गुमनाम उपासक की शौर्य गाथा...
July 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

1857 से पहले के क्रांतिकारी भाई महाराज सिंह : जानिए मां भारती के गुमनाम उपासक की शौर्य गाथा…

1857 से पहले अंग्रेजों के खिलाफ शंखनाद करने वाले संत-क्रांतिकारी भाई महाराज सिंह को आज श्रद्धांजलि, जिन्होंने सिंगापुर जेल में देश के लिए बलिदान दिया

by राकेश सैन
Jul 4, 2025, 10:32 pm IST
in भारत, पंजाब, आजादी का अमृत महोत्सव
जालंधर के करतारपुर स्थित जंग-ए-आजादी मेमोरियल में बाबा महाराज सिंह की गिरफ्तारी को दर्शाता चित्र

जालंधर के करतारपुर स्थित जंग-ए-आजादी मेमोरियल में बाबा महाराज सिंह की गिरफ्तारी को दर्शाता चित्र

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

देश के स्वतंत्रता संग्राम व आजादी के लिए बलिदान करने के नाम पर एकाधिकार के कई दावे अनेक परिवार व राजनीतिक दल करते हैं परन्तु वास्तविकता है कि देश को आजादी इतने सस्ते भाव में नहीं मिली। इस संघर्ष में देश के हर वर्ग के लाखों लोगों व परिवारों ने अपना योगदान दिया और रोचक बात है कि इन अज्ञात लोगों ने कभी स्वतंत्रता देवी के एकमात्र उपासक होने का दावा भी नहीं किया, बल्कि इसके विपरीत अनेकों क्रान्तिकारी तो ऐसे हैं जिनके बारे समाज जानता तक नहीं है। ऐसे ही अज्ञात नायक व महान क्रान्तिकारी थे पंजाब में जन्मे भाई महाराज सिंह जिन्होंने देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रान्ति से दस साल पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का शंखनाद कर दिया था।

संत बनकर जगाई क्रांति की अलख

भाई महाराज सिंह एक संत थे जो देश में पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए क्रान्तिकारी बन गए। उनका जन्म लुधियाना जिले के रब्बन गांव में निहाल सिंह के रूप में हुआ। वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और वे नौरंगाबाद (वर्तमान में जिला तरनतारन) के एक संत भाई बीर सिंह के प्रभाव में आ गए। वे वहां लंगर व आने वाली संगत की सेवा करने लगे। साल 1844 में भाई बीर सिंह के देहांत के बाद वे नौरंगाबाद डेरे के प्रमुख बने।

अंग्रेजों ने रखा इनाम

महाराज सिंह देश की परतंत्रता से व्यथित थे और वे गुलामी की जंजीरों को काटने के लिए बेताब रहने लगे। संदेह होने पर उनकी गतिविधियों को अंग्रेजों ने नौरंगाबाद तक सीमित कर दिया, पर वे भूमिगत हो गए। सरकार ने अमृतसर में उनकी संपत्ति जब्त कर ली और उनकी गिरफ्तारी के लिए इनाम की घोषणा की।

यह भी पढ़ें – 6 माह में 1555 महिलाएं हिंसा का शिकार, अधिकतर पीड़ित बच्चियां : बांग्लादेश महिला परिषद के चौंकाने वाले आंकड़े

भाई महाराज सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी गतिविधियां तेज कर दीं, जब उन्हें पता चला कि सिख जरनैल दीवान मूलराज ने अप्रैल 1848 में मुल्तान में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया तो वे उनका साथ देने के लिए 400 घुड़सवारों के साथ रवाना हुए। लेकिन जल्द ही इन दोनों नेताओं के बीच मतभेद पैदा हो गए। महाराज सिंह अंग्रेजों को भगाने की अपनी योजना में अन्य सिख जरनैल चतर सिंह अटारीवाला की सहायता लेने के लिए जून 1848 में मुल्तान से हजारा चले गए।

अकेले ही लड़ाई जारी रखने का लिया संकल्प

नवंबर 1848 में, वे रामनगर में राजा शेर सिंह की सेना में शामिल हुए और युद्ध के मैदान में अपनी घोड़ी पर सवार होकर सिख सैनिकों को अपने देश की खातिर अपनी जान कुर्बान करने के लिए प्रेरित करते रहे। इसके बाद उन्होंने चेलियांवाला और गुजरात की लड़ाइयों में हिस्सा लिया, लेकिन, जब राजा शेर सिंह ने 14 मार्च 1849 को रावलपिंडी में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, तो उन्होंने अकेले ही लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया।

यह भी पढ़ें – डरता पंजाब : बदमाशों ने मांगी फिरौती, ना देने पर अस्पताल में घुस डाक्टर को गोलियों से भूना

वे जम्मू चले आए और पंजाब में बटाला को अपना गुप्त मुख्यालय बना लिया। दिसंबर 1849 में, वह होशियारपुर आ गये और सिख रेजिमेंट से मिलकर उनका समर्थन प्राप्त किया।

चुम्ब घाटी के जंगलों में तैयार की योजना

वे सिख क्रांतिकारियों की उस पंक्ति से थे जो उन्हें गुरुओं के साथ जोड़े रखना चाहते थे। भाई महाराज सिंह ने शक्तिशाली अंग्रेजों के खिलाफ कार्रवाई की योजना चुम्ब घाटी के जंगलों में तैयार की थी। इनका उद्देश्य था –

  • 1. महाराजा दलीप सिंह (महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र) को लाहौर किले से छुड़ाना।
  • 2. सभी ब्रिटिश विरोधी ताकतों का संयुक्त मोर्चा संगठित करना।
  • 3. ब्रिटिश खजानों और छावनियों पर तोडफ़ोड़ और गोरिल्ला हमले।

भाई महाराज सिंह ने खुद ही आम विद्रोह की तैयारी शुरू कर दी। जुलाई से अक्टूबर 1849 तक वे साजूवाल (बटाला जिला) में रहे, जहाँ उन्होंने होशियारपुर और जालंधर की छावनियों पर हमला करने का फैसला किया। कुछ लोगों को काबुल और कंधार भेजा गया। योजना को लागू करने के लिए अफग़ान शासकों अमीर दोस्त मोहम्मद खान और सुल्तान मोहम्मद खान से संपर्क किया।

यह भी पढ़ें –राशन कार्ड को आधार से लिंक करना क्यों जरूरी है और इसे घर बैठे कैसे करें?

पंजाब की पहाडिय़ों में बेदी बिक्रम सिंह इस आंदोलन में शामिल हो गए। कांगड़ा शासकों ने कुछ अन्य परिवारों के साथ मिलकर इस आंदोलन के लिए 1000 माचिस (बारूद), 10000-20000 रुपये और करीब 10000 मन अनाज की आपूर्ति की।

सरकारी खजाना लूटने और छावनी पर हमले की योजना

इसके बाद भाई महाराज सिंह सजुवाल छोडक़र होशियारपुर जिले में चले गए, जहां उन्होंने प्रभावशाली लोगों से संपर्क किया। उन्होंने उन्हें बताया कि योजना के अनुसार, बजवाड़ा में सरकारी खजाने को लूटने और नई होशियारपुर छावनी पर हमला करने की योजना बनाई।

भाई महाराज सिंह ने व्यक्तिगत रूप से सिख लायंस (रेजिमेंट) का दौरा किया और रेजिमेंट के अधिकारी प्रेम सिंह, सुखा सिंह, फतेह सिंह, जय सिंह हवलदार आदि से सहायता का वादा प्राप्त किया। इस बीच, जानकारी मिली कि हाजीपुर के पास दातारपुर में लगभग 4,000 लोगों को इकठ्ठा करने की व्यवस्था पूरी हो गई थी और माझा, मालवा और हजारा में भी इसी तरह की तैयारियां पूरी हो गई थीं।

मुस्लिम मुखबिर की सूचना पर हुई गिरफ्तारी

इनके द्वारा होशियारपुर और जालंधर की छावनियों पर आक्रमण करने की तिथि 3 जनवरी, 1850 तय की गई। जैसे-जैसे आक्रमण का दिन नजदीक आता गया, महाराज सिंह ने जालंधर दोआब के कई केन्द्रों का शीघ्रतापूर्वक दौरा किया, जहां उनके एजेंट गुप्त रूप से काम कर रहे थे। सर्वेक्षण पूरा करने के बाद वे 28 दिसंबर 1849 को आदमपुर पहुंचे, जहां एक मुस्लिम मुखबिर की सूचना पर उन्हें अंग्रेज अधिकारी वैनसिटार्ट ने उन्हें अनुयायियों के साथ गन्ने के खेत में गिरफ्तार कर लिया। भाई महाराज सिंह, जिनके सिर पर 10,000 रुपये का इनाम था, को 28 दिसंबर 1849 को आदमपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।

सिंगापुर जेल जाने वाले पहले स्वतंत्रता सेनानी

उन्हें जालंधर जेल में रखा गया और फिर अनुयायियों के साथ इलाहाबाद भेज दिया गया। एक महीने के भीतर ही उन्हें कलकत्ता भेज दिया गया। वहाँ से गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने उन्हें सिंगापुर भेजने का आदेश जारी किया। 14 जून 1850 को उनका दल सिंगापुर पहुँचा। भाई महाराज सिंह को एक कमरे में रखा गया। उनकी कोठरी में दो खिड़कियाँ दीवार से बंद कर दी गईं और बरामदे में एक मजबूत लोहे का गेट लगा दिया गया। वे सिंगापुर जेल भेजे जाने वाले पहले भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे।

एकांत कारावास में हुए गठिया के शिकार

तीन साल तक एकांत कारावास में रहने के बाद, भाई महाराज सिंह न केवल अंधे हो गए, बल्कि उन्हें गठिया के दर्द भी होने लगे और वे कंकाल मात्र रह गए। उनके खराब स्वास्थ्य को देखते हुए, 1853 में सिविल सर्जन ने सिफारिश की कि उन्हें कभी-कभार खुले में टहलने की अनुमति दी जाए, लेकिन अंग्रेज नहीं माने। भाई महाराज सिंह का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया।

यह भी पढ़ें – RSS को लेकर मीडिया फैला रहा मनगढ़ंत खबरें, ‘धर्मनिरपेक्ष-सामाजवादी बहस’ पर चल रहीं फेक न्यूज, जानिये क्या है सच्चाई

इस दिव्य देशभक्त की आत्मा 5 जुलाई, 1856 को वे स्वर्ग सिधार गई। भाई महाराज सिंह देश एक अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद देश को आजाद कराने के प्रयास किए। आज 5 जुलाई को पूरा देश अपने इस महान क्रान्तिकारी को नमन कर रहा है।

Topics: Bhai Maharaj SinghEarly Indian Freedom FighterRevolutionary before 1857Singapore ImprisonmentForgotten Heroes of Independenceस्वतंत्रता संग्राम सेनानीपाञ्चजन्य विशेषभाई महाराज सिंह1857 से पहले क्रांतिकारीसिंगापुर जेल में बंदीभारतीय क्रांति के नायक
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: छात्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय यात्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

India democracy dtrong Pew research

राहुल, खरगे जैसे तमाम नेताओं को जवाब है ये ‘प्‍यू’ का शोध, भारत में मजबूत है “लोकतंत्र”

कृषि कार्य में ड्रोन का इस्तेमाल करता एक किसान

समर्थ किसान, सशक्त देश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

फोटो साभार: लाइव हिन्दुस्तान

क्या है IMO? जिससे दिल्ली में पकड़े गए बांग्लादेशी अपने लोगों से करते थे सम्पर्क

Donald Trump

ब्राजील पर ट्रंप का 50% टैरिफ का एक्शन: क्या है बोल्सोनारो मामला?

‘अचानक मौतों पर केंद्र सरकार का अध्ययन’ : The Print ने कोविड के नाम पर परोसा झूठ, PIB ने किया खंडन

UP ने रचा इतिहास : एक दिन में लगाए गए 37 करोड़ पौधे

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies