बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया और अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस से अर्थशास्त्र संभल नहीं रहा है। शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद सत्ता में काबिज होने के बाद अल्पसंख्यकों और खासकर हिन्दुओं पर मुस्लिम कट्टरपंथी सरकार अधिक ध्यान दे रही है। बनिस्पत इसके कि उसके लोगों की आर्थिक हालत लगातार खराब होती जा रही है। देश में महंगाई चरम पर है और कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि देखी जा रही है।
बीडी 24 की रिपोर्ट के अनुसार, महंगाई बढ़ने से बांग्लादेश में कुपोषण की स्थिति भयावह हो गई है। मध्यम और निम्न आय वाले लोगों को रोजमंर्रा की वस्तुओं की खरीद करने तक में दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है। वे लोग जो कि पहले या तो गरीबी रेखा से ऊपर था, या उसके करीब थे वो अब गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हैं। लोग ये कह रहे हैं कि उन्हें याद ही नहीं है कि इससे पहले इस तरह के हालात कब देखने पड़े थे।
संयुक्त राष्ट्र ने जुलाई 2024 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें दावा किया गया था कि बांग्लादेश में पौष्टिक आहार की कीमत 3.64 डॉलर यानि कि करीब 443.57 टका के आसपास हो गई है। इसी तरह से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भी भुखमरी की लिस्ट में बांग्लादेश के हालात अब और बुरे हो गए हैं। इसके अनुसार, तीन पायदान नीचे गिरकर 127 देशों में 84वें स्थान पर आ गया है। कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थंगरहिल्प की रिपोर्ट कहती है कि बांग्लादेश में 11.9 फीसदी लोग कुपोषण की शिकार है, साथ ही 23.6 फीसदी बच्चों का पोषण की कमी के कारण विकास भी नहीं हो पाता है।
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ढाका विश्वविद्यालय के पोषण और खाद्य विज्ञान विभाग की प्रोफेसर नजमा शाहीन का कहना है कि खाद्य महंगाई, नौकरियों का छूटना और वैश्विक मूल्यों में वृद्धि के कारण लोगों की खर्च करने की शक्ति खत्म हो गई है।
हसीना को कोसने में लगे मुहम्मद यूनुस
बांग्लादेश में भुखमरी के हालात होने के बाद भी अर्थशास्त्री सलाहकार मुहम्मद यूनुस लोगों के विकास पर ध्यान देने की जगह देश के लोगों का ध्यान कहीं औऱ ही ले जाना चाहते हैं। वो इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को कोसते हुए कहते हैं कि शेख हसीना के दौरान बांग्लादेश की हाई ग्रोथ सिर्फ एक छलावा था। जबकि, हसीना को सत्ता में अपने 15 वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था और देश के विशाल वस्त्र उद्योग को बदलने का श्रेय दिया जाता है।
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