50 वर्षीया भीमे मरकाम दंतेवाड़ा जिले के साकिन कोण्डापारा गांव की रहने वाली हैं। 9 नवबर, 2016 को वह अपने पशुओं को चराने ले गई थीं। वह शाम को पशुओं को लेकर घर पर लौट रही थीं।
इस दौरान उनकी एक गाय अलग दिशा में भागने लगी। वे गाय को पकड़ने के लिए उसके पीछे तेजी से दौड़ीं। इसी दौरान उनका पैर नक्सलियों द्वारा अर्धसैनिक बलों पर हमले के लिए जंगल में बिछाई गई आईईडी पर पड़ गया। तेज धमाके ने उन्हें उछाल दिया। उनके हाथों और पैरों दोनों में गहरे जख्म हो गए। इसके अलावा उनके पूरे सिर में बम के छोटे-छोटे छर्रे धंस गए। बाएं पैर को इस धमाके में ज्यादा क्षति पहुंची।
वे कई दिनों तक बेहोश रहीं। इस भयानक धमाके में वे बच तो गईं, लेकिन दिव्यांग हो गईं। उनके पति की मृत्यु हो चुकी है। इस घटना को आठ साल हो चुके हैं लेकिन शारीरिक तौर पर अक्षम होने से वे लाचार हो चुकी हैं। अब वे पशुओं को चराने के लिए भी नहीं जा पाती हैं। बस किसी तरह से जीवन चल रहा है।
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