आपरेशन सिंदूर : बाहर से ज्यादा अंदर खतरा
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बाहर से ज्यादा अंदर खतरा

भारत के लिए केवल पाकिस्तान और चीन नहीं, बल्कि आंतरिक ‘फॉल्ट लाइन’ भी चुनौती पेश करती है। इसमें विपक्षी दलों की नकारात्मकता और सोशल मीडिया का घातक प्रयोग चिंताजनक है

by कर्नल जयबंस सिंह
Jun 11, 2025, 01:00 pm IST
in मत अभिमत
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कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में भारत की प्रतिक्रिया ने दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप में एक नई रणनीतिक लाल रेखा खींच दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्पष्ट कर चुके हैं कि ‘आतंकवाद के हर कृत्य को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा’ और ‘आतंकियों व उनके प्रायोजकों को समान सजा दी जाएगी।’ भारत का यह रुख शक्ति और संयम का मिश्रण है।

प्रधानमंत्री मोदी के उक्त कथन का तात्पर्य यह है कि भारत की धरती पर आतंकी हमले की स्थिति में भारत पूर्ण सुरक्षा आकलन करेगा तथा पाकिस्तानी क्षेत्र में गहरे हमले सहित जवाबी कार्रवाई के सभी विकल्प खुले रखेगा। इसके अलावा, भारत ने पाकिस्तान पर कड़े आर्थिक और कूटनीतिक प्रतिबंध भी लगाए हैं।

जयबंस सिंह रक्षा विशेषज्ञ
जयबंस सिंह रक्षा विशेषज्ञ

यह भी कहा है कि यदि पाकिस्तान से आतंकवाद का प्रसार जारी रहा तो भारत उसके साथ व्यापार, वार्ता और जल बंटवारा समझौता भी नहीं करेगा। मौजूदा स्थिति में पाकिस्तान के लिए सबसे अच्छा विकल्प यही होगा कि वह इस बात को समझे कि ‘भारत को हजार घाव’ देने की उसकी नीति उसे विनाश के कगार पर ले आई है। बेहतर यही होगा कि वह इस नीति को त्याग कर आगे बढ़े।

दुर्भाग्य से देश में ही ऐसे कट्टरपंथी और कुख्यात तत्व मौजूद हैं, जो भारत विरोधी नीति को त्यागने का पुरजोर विरोध करते हैं। इसलिए भारत को हर समय सतर्क और तैयार रहने की जरूरत है। हालिया संघर्ष मुख्यत: ड्रोन, मिसाइलों और तोपखाने के उपयोग के साथ ही एक नए प्रकार के गतिरोधक युद्ध का प्रतिमान था। इसने स्पष्ट रूप से पाकिस्तानी रक्षा की कमजोरियों को उजागर किया, जो चयनित लक्ष्यों पर भारत द्वारा किए गए सटीक मिसाइल हमलों को रोकने में विफल रही। दूसरी ओर, भारतीय रक्षा प्रणाली ने पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइल हमलों को सफलतापूर्वक न केवल नाकाम कर नष्ट किया, बल्कि अपनी बढ़ती रक्षा क्षमताओं और रक्षा प्रौद्योगिकी की प्रगति का प्रदर्शन भी किया।

भारत ने मुख्य रूप से स्वदेशी तकनीक जैसे- आकाशतीर वायु रक्षा प्रणाली, ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल और कामिकेज ड्रोन का उपयोग किया, जबकि पाकिस्तान केवल विदेशी उपकरणों, मुख्य रूप से तुर्किये और चीन पर निर्भर रहा। यह बात भी सामने आई कि दोनों आपूर्तिकर्ता देश वैश्विक मान्यताओं व संप्रभुता, न्याय व कर्तव्यनिष्ठा के सिद्धांतों के बारे में बिना सोचे-समझे पाकिस्तान के दुस्साहस के साथ मजबूती से खड़े थे। इसलिए यह मानकर चलना चाहिए कि ये देश भविष्य में भी पाकिस्तान के साथ खड़े रहेंगे, न केवल कूटनीतिक रूप से, बल्कि सैन्य आपूर्ति के मामले में भी।

ढाई मोर्चों पर युद्ध की चुनौती

भारत को भविष्य में ढाई मोर्चों पर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। इसमें पाकिस्तान और चीन के अलावा देश के भीतर छद्म युद्ध, उग्रवाद और आतंकवाद के रूप में आंतरिक ‘असंतोष’ भी शामिल है। भारतीय सेना के शीर्ष कमांडरों और रणनीतिकारों ने इस तरह के परिदृश्य को स्वीकार किया है। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने चीन और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक समन्वय को ‘लगभग पूर्ण साठगांठ’ करार दिया है। हालांकि, देश का राजनीतिक नेतृत्व सार्वजनिक रूप से इस बारे में बात नहीं करता, लेकिन निश्चित रूप से चुनौती के प्रति सजग है।

भारत की सामरिक बढ़त

सामरिक दृष्टि से कुछ पहलू भारत के पक्ष में हैं। चीनी सैनिकों की बड़ी संख्या ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात नहीं है। तिब्बत में सीमित सैनिक तैनात हैं, बाकी झिंजियांग, सिचुआन और चोंगकिंग क्षेत्रों में हैं। इसके अलावा, चीनी वायु सेना के पास लद्दाख में भारतीय वायु सेना की तुलना में तिब्बत में कम लड़ाकू विमान तैनात हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के पास ऐसे सैनिक हैं, जिनके पास युद्ध का अनुभव है। ये सैनिक न केवल साहसी, प्रशिक्षित और पेशेवर हैं, बल्कि दुर्गम बाधाओं के बावजूद विजय प्राप्त करने में सक्षम हैं।

पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में सैन्य स्वदेशीकरण और विश्व स्तरीय हथियारों के उत्पादन में भारत तेजी से बढ़ा है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और मिसाइल प्रणालियों में अग्रणी है तथा उसे इस दक्षता को एआई के सैन्य उपयोग तक भी विस्तारित करना होगा। सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों और बुनियादी ढांचे के निर्माण पर भी बहुत ध्यान दिया है। इससे सैनिकों को तेजी से आवाजाही में सुविधा होगी, जो कई मोर्चों पर युद्ध के लिए सबसे जरूरी है। इसलिए पाकिस्तान और चीन का कोई भी दुस्साहस उन्हें भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

नीति पर हो पुनर्विचार

कोई क्षेत्रीय क्षति न हो, इसके लिए रक्षा विशेषज्ञ युद्ध क्षेत्र को प्राथमिक और द्वितीयक मोर्चे में विभाजित करने की सिफारिश करते हैं। प्राथमिक मोर्चे पर बड़ी तैनाती करनी होगी, जबकि द्वितीयक मोर्चे पर केवल निरोधक क्षमता चाहिए। भारतीय सेना के पास ऐसी संरचनाएं हैं, जिन्हें जल्दी से पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व में स्थानांतरित किया जा सकता है।

दो मोर्चों पर युद्ध की स्थिति में भारत को अपना सैद्धांतिक रुख दृढ़ता से स्थापित करना होगा। परमाणु हथियारों का पहले प्रयोग न करने की नीति पर भी गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि दुष्ट और खतरनाक शक्तियां, जिनका कोई भरोसा नहीं, प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न कर सकती हैं। भारत का यह निर्णय शत्रु पक्ष की युद्ध लड़ने की क्षमता पर गंभीर प्रभाव डालेगा।

दरअसल, जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बुनियादी आवश्यकताओं को ही संक्षेप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा है, “सुरक्षा का अर्थ युद्ध छेड़ने और युद्ध को रोकने की समग्र क्षमता से है। स्वस्थ सैन्य-नागरिक मेल, आत्मनिर्भर रक्षा औद्योगिक आधार, राष्ट्रीय स्तर पर दोहरे उपयोग वाली संपत्तियां, डीआईएमई ढांचे के बारे में अच्छी तरह से सूचित, सशक्त निर्णयकर्ता और नागरिक योद्धाओं के लिए समावेशी दृष्टिकोण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’’ उनकी इस बात के बाद इसमें कुछ और जोड़ने की आवश्यकता नहीं है।

इसके अलावा, किसी भी नियम आधारित प्रणाली को चीन मनमाने ढंग से खारिज कर देता है, उसे भी उजागर किए जाने की आवश्यकता है, ताकि वैश्विक असुरक्षा की सही तस्वीर बनाई जा सके, जो संघर्ष के दोनों हमलावरों के पक्ष में जाने पर उभरेगी।

साथ ही, भारत को वैश्विक स्तर पर प्रभावी गठबंधन बनाने होंगे। देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सम्मानजनक स्थिति बनानी होगी, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र को अधिक समावेशी तथा मौजूदा वास्तविकताओं के अनुरूप बनाने के लिए सुधारों की तत्काल आवश्यकता है। पाकिस्तान और चीन, दोनों ही जिस घोर मानवाधिकार उल्लंघन में लिप्त हैं, उसे सामूहिक वैश्विक मानस में आक्रामक तरीके से स्थापित करने आवश्यकता है।

पाकिस्तानी दुष्प्रचार

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को भारी क्षति हुई, जिसका पूरा विवरण दर्ज है। हालांकि, पाकिस्तान ने इसे स्वीकार नहीं किया, उलटे भारत को हराने का दावा करते हुए जश्न मनाया। उसने इस संघर्ष को 1971 की हार का बदला बताया। उसने पांच लड़ाकू विमान मार गिराने सहित लक्षित हमलों का झूठ न केवल अपने यहां, बल्कि वैश्विक मीडिया में पूरे विश्वास के साथ फैलाया। यही नहीं, सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया, ताकि 1971 में भारत के साथ समानता स्थापित की जा सके। उस समय फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशॉ को इसी प्रकार का सम्मान दिया गया था।

पाकिस्तानी मीडिया में राष्ट्रवाद, आत्मविश्वास और निश्चित रूप से फर्जी खबरों को परिसंपत्ति में बदलने की क्षमता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। लेकिन अगली पीढ़ी के युद्ध के लिए नया मानक स्थापित करने वाली निर्णायक जीत हासिल करने के बावजूद भारत मौन और अनिश्चित बना रहा। जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चल रहा था, तब विपक्षी दलों ने अनिच्छा से सरकार को पूरा समर्थन दिया, लेकिन अभियान समाप्त होते ही उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया। ऑपरेशन के दौरान भारतीय सेना को हुए नुकसान के बारे में सवाल पूछे गए और विदेशी ताकतों के इशारे पर युद्धविराम की घोषणा के आरोप लगाए गए। शिकायतों और शंकाओं की सूची अंतहीन है। इन शंकाओं को विषैले सोशल मीडिया अभियान के जरिए फैलाया गया। (पढ़ें -कांग्रेस को टीस क्यों?, पृष्ठ 56-58) भाजपा ने पूरे भारत में ‘तिरंगा यात्रा’ निकाली, लेकिन विपक्षी दलों ने सशस्त्र बलों को सम्मानित करने का कोई प्रयास नहीं किया।

विपक्षी दलों की नकारात्मकता की तुलना में पाकिस्तान का अपने उद्देश्य, अपनी सरकार और अपनी सेना के प्रति उत्साह, आत्मविश्वास और विश्वास दुश्मन पर मनोवैज्ञानिक लाभ पैदा करने की क्षमता रखता है, जो भारत के खिलाफ स्थिति को बदल सकता है। इस मामले में चीन तो पाकिस्तान से भी बेहतर है।

दरअसल, राष्ट्रीय ताने-बाने में आई गंभीर दरारें भारत की युद्ध लड़ने की क्षमता पर गंभीर रूप से असर डालेंगी। यह आंतरिक ‘असंतोष’ की चुनौती में एक नया, विशाल और गंभीर आयाम जोड़ता है। यह स्थापित हो चुका है कि फर्जी खबरें और सोशल मीडिया देश की युद्ध लड़ने की क्षमता पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। ऐसी विभाजनकारी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने की तत्काल आवश्यकता है। आवश्यकता अधिक परिपक्व राजनीति का निर्माण करने की भी है, जो सैन्य आपातकाल के समय अपनी जिम्मेदारियों को समझती हो। इस प्रक्रिया को प्रभावी कानून के साथ बढ़ाया जा सकता है।

ढाई मोर्चों पर युद्ध एक ऐसी सुरक्षा चुनौती है, जिसे भारत न तो नजरअंदाज कर सकता है और न ही इससे दूर भाग सकता है। हालांकि, हमारी रक्षा सेनाएं सरकार के सक्रिय सहयोग से इसके लिए स्वयं को तैयार करने में लगी हुई हैं, फिर भी अंततः पूरे देश का दृष्टिकोण ही शत्रु पर विजय प्राप्त करेगा। 140 करोड़ लोगों की सामूहिक इच्छा की अनदेखी कोई नहीं कर सकता। पाकिस्तान के साथ हमारा मुद्दा हमारे देश में आतंकवाद का प्रसार है। स्थानीय लोगों के समर्थन के बिना आतंकवाद पैर नहीं जमा सकता। इसलिए दूसरों पर उंगली उठाने से पहले हमें अपनी आंतरिक ताकत बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। पाकिस्तानी सेना और भारत का सामंती अनैतिक नेतृत्व भारत के असली दुश्मन हैं।

वास्तव में, देश की जनता भी इस दुष्ट गठजोड़ की उतनी ही शिकार है, जितना भारत। इसलिए पाकिस्तानी सेना के मौजूदा कट्टरपंथी स्वरूप को पूरी तरह नष्ट करके उसकी जगह एक उदारवादी पेशेवर तंत्र की स्थापना पर जोर दिया जाना चाहिए, जो राष्ट्रीय हित के लिए एक वैध राजनीतिक प्राधिकरण के तहत काम करे।

देश को ‘पृथ्वीराज चौहान सिंड्रोम’ से फिर से परिचित कराना होगा। पृथ्वीराज चौहान शक्तिशाली थे, उन्होंने मोहम्मद गोरी को कई बार हराया, लेकिन उसे पूरी तरह से नष्ट नहीं किया। स्वतंत्रता के बाद भारत ने भी पाकिस्तान को सात बार हराया है, लेकिन इस शत्रु को पूरी तरह से नष्ट करने में संकोच किया है। यह एक गलती है, जिसे जल्द से जल्द सुधारने की आवश्यकता है। नहीं तो इसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ सकती है।

चीन-पाकिस्तान गठजोड़ की ताकत

  • पाकिस्तान और चीन के मुकाबले भारत की तीनों सेनाओं की ताकत की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है-
  •  चीन के बाद भारतीय सेना को दुनिया की चौथी सबसे मजबूत सेना माना जाता है।
  •  चीन एशिया में रक्षा पर सर्वाधिक खर्च करने वाला देश है। 2023-2024 में इसका रक्षा बजट 229 अरब डॉलर था, जबकि भारत का बजट 73.9 अरब डॉलर है। यह चीन के रक्षा बजट से आधे से भी कम है। चूंकि चीन से जानकारी पूरी तरह बाहर नहीं आती इसलिए उसने घोषित राशि से कहीं अधिक खर्च किया होगा, संभवतः दोगुना।
  •  पाकिस्तान का रक्षा बजट 11 अरब डॉलर था।
  •  चीन के सशस्त्र बलों में 20.30 लाख सक्रिय कर्मी हैं, पाकिस्तान के पास 6.67 लाख और भारत के पास 14 लाख सैनिक हैं। आनुपातिक दृष्टि से यह आंकड़ा 2:1 है, जो पाकिस्तान-चीन गठजोड़ के पक्ष में जाता है।
  •  चीन के पास 5,250 टैंक हैं, जबकि पाकिस्तान के पास 2,500 और भारत के पास 4,500।
  •  चीन के पास 1900 युद्धक विमान, पाकिस्तान के पास 350 (अधिकतर चीनी) व भारत के पास 600 लड़ाकू विमान हैं।
  •  तीनों देशों के पास पर्याप्त मिसाइल शस्त्रागार और परमाणु हथियार हैं। चीन का जे-20 चेंग्दू पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ लड़ाकू विमान है। भारत के पास राफेल जैसे 4.5 पीढ़ी के ही लड़ाकू विमान हैं। तेजस और एमके-1ए भी पांचवीं पीढ़ी के नहीं हैं।
  •  भारत के पास सेना की 38 डिवीजन हैं, जो 14 कोर के अंतर्गत संगठित है। सामान्यतया दो मोर्चों पर चुनौती के लिए कम से कम 43 डिवीजनों की आवश्यकता है, वह भी दोनों सीमाओं पर केवल रक्षा की दृष्टि से। इसी तरह, भारतीय वायु सेना के पास लड़ाकू विमानों की 30 स्क्वाड्रन हैं, जबकि कम से कम 50 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है। कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि पाकिस्तान और चीन की संयुक्त सैन्य शक्ति भारत से लगभग दोगुनी है।
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