मेरा और कच्छ का नाता बहुत पुराना है। कच्छ के लोग अभावों के बीच भी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। ये हमेशा मेरे जीवन को दिशा देते रहे हैं। पुरानी पीढ़ी के लोग जानते हैं कि आज यहां का जीवन बहुत आसान हो गया है, लेकिन तब हालात कुछ और हुआ करते थे। मुख्यमंत्री के रूप में मुझे याद है, जब पहली बार नर्मदा का पानी कच्छ की धरती पर आया था। शायद वह दिन कच्छ के लिए दीवाली बन गया था। ऐसी दीवाली पहले कभी भी कच्छ ने देखी नहीं होगी, जो उस दिन हमने देखी थी। पानी के लिए सदियों से तरसता कच्छ, मां नर्मदा ने हम पर कृपा की और मेरा सौभाग्य है कि सूखी धरती पर पानी पहुंचाने के कार्य में निमित्त बनने का मुझे अवसर मिला।
मैंने देखा है कि कच्छ में पानी नहीं था, लेकिन कच्छ के किसान पानीदार थे, उनका जज्बा हमेशा देखने लायक रहा है। मैं कच्छ में विकास की बहुत संभावनाएं देखता था। जिस भूमि पर हजारों साल पहले धोलावीरा हुआ हो, उस भूमि में जरूर कोई ताकत होनी चाहिए, हमें उसकी पूजा करनी चाहिए।
कच्छ ने दिखा दिया कि उम्मीद और निरंतर परिश्रम से स्थितियों को पलटा जाता है, आपत्ति को अवसर में बदला जा सकता है, और इच्छित सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। जब यहां भूकंप आया था, तो दुनिया को लगता था कि बस खत्म, अब कुछ नहीं हो सकता। मैंने कभी विश्वास नहीं खोया। मेरा विश्वास कच्छी खमीर पर था। इसलिए मैं कहता था, बच्चों को पढ़ाना पड़ेगा कि कच्छ का ‘क’ और खमीर का ‘ख’। मुझे विश्वास था कि कच्छ इस संकट को परास्त करेगा, भूकंप को भी कंपा करके, मेरा कच्छीमाडू खड़ा हो जाएगा और आपने बिल्कुल वैसा ही किया।
आज कच्छ व्यापार-कारोबार का, पर्यटन का एक बड़ा केंद्र है। आने वाले समय में कच्छ की यह भूमिका और बड़ी होने वाली है। इसलिए जब भी कच्छ विकास को गति देने आता हूं, मुझे लगता है कि मैं कुछ और नया करूंगा, और ज्यादा करूंगा, मन रुकने का नाम नहीं लेता है। आज यहां विकास से जुड़े 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण हुआ है। एक समय था पूरे गुजरात में 50,000 करोड़ की योजना सुनाई नहीं देती थी। आज एक जिले में 50,000 करोड़ रुपये का काम। ये प्रोजेक्ट भारत को दुनिया की एक बहुत बड़ी और ब्लू इकोनॉमी बनाने, ग्रीन एनर्जी का सेंटर बनाने में भी मदद करेंगे।
नवीकरणीय ऊर्जा का केंद्र बना गुजरात
कच्छ हरित ऊर्जा का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बनने जा रहा है। ग्रीन हाइड्रोजन एक नए प्रकार का ईंधन है। आने वाले समय में कारें, बसें, स्ट्रीट लाइट ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली हैं। कांडला देश के तीन ग्रीन हाइड्रोजन केंद्रों में से एक है। आज भी यहां ग्रीन हाइड्रोजन कारखाने का शिलान्यास हुआ है। इस कारखाने में जो टेक्नोलॉजी लगी है, वह भी मेड इन इंडिया है।
कच्छ भारत की सौर क्रांति के केंद्र में है। दुनिया की सबसे बड़ी साैर पावर परियोजनाओं में से एक का निर्माण कच्छ में हो रहा है। एक जमाना था, हम कच्छ का वर्णन करते थे तो बोलते थे कि हमारे यहां क्या है, रेगिस्तान है। यहां क्या हो सकता है और उस समय मैं कहता था, ये रेगिस्तान नहीं, ये तो मेरे गुजरात का तोरण है। वही रेगिस्तान, अब हमें ही नहीं, पूरे हिंदुस्थान को ऊर्जावान बनाने वाला है। खावड़ा कॉम्पलेक्स के कारण कच्छ पूरी दुनिया के एनर्जी मैप में अपनी जगह बना चुका है। हमारी सरकार का प्रयास है कि आपको पर्याप्त बिजली भी मिले और बिजली का बिल भी ज़ीरो हो। इसलिए हमने पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना शुरू की है।
समुद्री संसाधनों के सदुपयोग से रचा इतिहास
दुनिया के जिन भी देशों ने समृद्धि पाई है, वहां समंदर समृद्धि का एक बहुत बड़ा कारण रहा है। यहां भी धोलावीरा का उदाहरण हमारे सामने है। यहां लोथल जैसे प्राचीन बंदरगाह शहर हुआ करते थे। ये भारत की प्राचीन सभ्यता की समृद्धि के केंद्र रहे हैं।
हमारा पोर्ट लेड डेवलपमेंट का विजन, इसी महान विरासत से प्रेरित है। भारत बंदरगाहों के इर्द-गिर्द बसे शहरों को विकसित कर रहा है। सी-फूड से लेकर टूरिज्म और ट्रेड तक, कोस्टल रीजन में देश एक नए इकोसिस्टम का निर्माण कर रहा है। देश बंदरगाहों के विस्तार और आधुनिकीकरण पर बहुत निवेश कर रहा है। इसके परिणाम भी शानदार हैं। देश के कुछ बड़े बंदरगाहों ने पहली बार एक साल में रिकॉर्ड 15 करोड़ टन कार्गो संभाला है। इसमें हमारा कांडला का दीनदयाल बंदरगाह भी शामिल है। देश के कुल समुद्री व्यापार कारोबार का लगभग एक तिहाई हिस्सा अकेले हमारे कच्छ के बंदरगाह से होता है। इसलिए कांडला और मुंद्रा पोर्ट की क्षमता को, उसकी कनेक्टिविटी को लगातार बढ़ाया जा रहा है। आज भी यहां शिपिंग से जुड़ी कई सुविधाओं का लोकार्पण किया गया है। यहां नई जेटी बनाई गई है।
यहां ज्यादा से ज्यादा सामान स्टोर हो सके, इसके लिए कार्गो स्टोरेज सुविधा बनाई गई है। इस वर्ष बजट में हमने मैरीटाइम सेक्टर के लिए एक स्पेशल फंड की घोषणा की है। बजट में शिप बिल्डिंग पर भी जोर दिया गया है। हम अपनी और दुनिया की ज़रूरत के लिए भी भारत में ही बड़े जहाज़ बनाएंगे। एक जमाना था, अपना मांडवी तो उसी के लिए मशहूर था। बड़े-बड़े जहाज अपने लोग बनाते थे, आज भी वही शक्ति मांडवी में देखने को मिलती है। अब हम आधुनिक जहाज को लेकर दुनिया में जाना चाहते हैं, उनका निर्माण करके निर्यात करना चाहते हैं। अब हमने शिप बिल्डिंग में ताकत लगाई है। यह वही क्षेत्र है, जिसमें रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर हैं।
स्वावलंबन की विरासत और गुजरात
कच्छ ने हमेशा से अपनी विरासत का सम्मान किया है। अब यह विरासत भी कच्छ के विकास की प्रेरणा बन रही है। बीते दो-ढाई दशक में भुज में टेक्सटाइल, फूड प्रोसेसिंग, सिरेमिक और नमक से जुड़े उद्योगों का बहुत विकास हुआ है। कच्छी कढ़ाई, ब्लॉक प्रिंटिंग, बांधनी कपड़े और चमड़े का काम, इनकी धूम हर तरफ दिखाई देती है। अपना भुजोड़ी, ऐसा कोई हथकरघा या हस्तकला का कारखाना नहीं है, जिसमें हमारा भुजोड़ी न हो। अजरक प्रिंटिंग की परंपरा, कच्छ में अनोखी है, और अब तो कच्छ की इन सभी कलाओं को जी-आई टैग मिल गया है। दुनिया में उसकी पहचान बन गई है। यानी अब इस पर मोहर लग गई है कि मूलरूप से ये कला कच्छ की है। ये विशेष रूप से हमारे जनजातीय परिवारों के लिए, कारीगरों के लिए बहुत बड़ी पहचान है।
मैं कच्छ की किसान बहनों और भाइयों के परिश्रम को भी नमन करता हूं, आपने मुश्किल चुनौतियों के बीच भी हार नहीं मानी। एक समय था, जब गुजरात में पानी सैकड़ों फीट नीचे चला गया था। नर्मदा जी की कृपा और सरकार के प्रयासों से,आज स्थिति बदल गई है। केवड़िया से कच्छ के मोडकुबा तक जो नहर बनी है, उससे कच्छ की किस्मत बदल गई है। आज कच्छ के आम, खजूर, अनार, जीरा और ड्रैगन फ्रूट तो कमाल कर रहा है। ऐसी अनेक फसलें दुनिया भर के बाज़ारों तक पहुंच रही हैं। एक समय था, कच्छ पलायन के लिए मजबूर था। हमारे यहां आबादी घटती ही जाती थी, आज कच्छ के लोगों को ही कच्छ में रोजगार मिलता है। इतना ही नहीं, कच्छ के बाहर लोगों की आशा भी कच्छ में बन गई है।
मरू कच्छ में पर्यटन का विकास
पर्यटन एक ऐसा सेक्टर है, जिसमें बहुत बड़ी संख्या में रोजगार है। कच्छ में इतिहास भी है, संस्कृति भी है और प्रकृति भी है। मुझे खुशी है कि कच्छ का रणोत्सव दिनों-दिन नई बुलंदी की तरफ बढ़ रहा है। ये जो स्मृति वन हमारे भुज में बना है, इसको यूनेस्को ने दुनिया का सबसे खूबसूरत संग्रहालय माना है। आने वाले समय में यहां के पर्यटन में और विस्तार होगा। धोरडो गांव, दुनिया के सर्वोत्तम पर्यटन ग्रामों में से एक है। मांडवी का सागरतट भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है। अभी कुछ समय पहले दीव में राष्ट्रीय प्रतियाेगिता हुई। हजारों बच्चे खेलने के लिए आते हैं, तट की बालू में खेलना होता है। मैं चाहूंगा कि जब रणोत्सव चलता हो, उस समय हमारे मांडवी के तट पर देशभर के लोग आएं, खेलें और तट उत्सव हो। यानी एक प्रकार से कच्छ पर्यटन के अंदर नई-नई ऊंचाइयों को प्राप्त करता चले। अमदाबाद और भुज के बीच नमो भारत रैपिड रेल भी पर्यटन को बढ़ावा दिया है।
आज 26 मई है। आप सभी गुजरात के भाइयों-बहनों ने 26 मई, 2014 को मुझे बैंड-बाजे के साथ गुजरात से विदाई देकर दिल्ली भेजा। इसी समय देश में पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में, प्रधान सेवक के रूप में मैंने सौगंध ली थी। आपके आशीर्वाद से 26 मई 2014 को गुजरात की सेवा से आगे बढ़कर राष्ट्र की सेवा में 11 साल की यात्रा। जिस दिन मैंने सौगंध ली थी और देश, दुनिया में अर्थव्यवस्था में 11वें नंबर पर था। आज 11 साल बाद 4 नंबर पर पहुंच गया।
भारत के राैद्र रूप से डरा पाकिस्तान
हमारी नीति आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की है। ऑपरेशन सिंदूर ने इस नीति को और स्पष्ट कर दिया है। जो भी भारतीयों का खून बहाने की कोशिश करेगा, उसको उसकी भाषा में ही जवाब दिया जाएगा। भारत पर आंख उठाने वाले, किसी भी कीमत पर बख्शे नहीं जाएंगे।
ऑपरेशन सिंदूर मानवता की रक्षा और आतंकवाद के अंत का मिशन है। मैंने कभी छुपाया नहीं, सीना तानकर बिहार की जनसभा में घोषणा की थी-आतंकवाद के ठिकानों को मिट्टी में मिला दूंगा। 15 दिन तक हमने इंतजार किया कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कोई कदम उठाएगा, लेकिन शायद आतंकवाद ही उनकी रोजी-रोटी है। जब उन्होंने कुछ नहीं किया, तो फिर मैंने देश की सेना को खुली छूट दे दी। हमने दुनिया को दिखाया कि हम आतंकवाद के अड्डों को, उनके ठिकानों को यहां बैठे-बैठे मिट्टी में मिला सकते हैं।
भारत की कार्रवाई से पाकिस्तान कैसे बौखला गया, ये भी हमने देखा है। 9 मई की रात को हमारे कच्छ की सीमा पर भी ड्रोन आए। उनको लगता था कि मोदी गुजरात का है तो जरा गुजरात में कमाल करें। उन्हें मालूम नहीं है, जरा 1971 को याद कीजिए, ये जो वीरांगना यहां आई थी ना, उन्होंने तुमको धूल चटा दी थी। इन माताओं-बहनों ने उस समय 72 घंटे में रनवे तैयार कर दिया और हमने हमले फिर से चालू कर दिए थे। आज मेरा सौभाग्य है कि 1971 की लड़ाई की उन वीरांगना माताओं ने आकर के मुझे आशीर्वाद दिए हैं। इतना ही नहीं, सिंदूर का पौधा भी दिया है। आपका दिया हुआ ये पौधा अब पीएम हाउस में लगेगा। ये सिंदूर का पौधा वटवृक्ष बनकर के रहेगा।
आपने तो 1971 की लड़ाई देखी है, इस बार पूरा पाकिस्तान कांप रहा था। 1971 में वो सोचते थे कि हमने भुज के एयरबेस पर हमला किया था और उस समय हमारी बहनों ने कमाल करके दिखा दिया था, बहादुरी की मिसाल दिखाई थी। पाकिस्तान के हमले का जवाब हमने इतनी ताकत से दिया कि उनके सारे एयरबेस आज भी आईसीयू में पड़े हैं। पाकिस्तान शरणागति के लिए मजबूर हो गया। पाकिस्तान को लगा अब बच नहीं सकते हैं, भारत ने रौद्र रूप दिखा दिया है।
पाकिस्तान आतंकवाद को पाल-पोस रहा है। कच्छ की इस धरती से पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ मेरा जिला है। मैं पाकिस्तान के लोगों को भी पूछना चाहता हूं, क्या पाया आपने? हिंदुस्थान दुनिया की चौथी इकोनाॅमी बन गया और तुम्हारा हाल क्या है? तुम्हारे बच्चों के भविष्य को बर्बाद किसने किया? उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर किसने किया? आतंकवाद के आकाओं ने। वहां की सेना का अपना एजेंडा है। पाकिस्तान के नागरिकों, खास करके वहां के बच्चे मोदी की बात कान खोल करके सुन लो, ये आपकी सरकार और आपकी सेना आतंकवाद को समर्थन दे रही है। आतंकवाद, पाकिस्तान की सेना और सरकार के लिए पैसे कमाने का जरिया बन गया है। पाकिस्तान के युवकों को तय करना होगा, पाकिस्तान के बच्चों को तय करना होगा, क्या ये रास्ता उनके लिए ठीक है? क्या उनका भला हो रहा है? सत्ता के लिए जो ये खेल खेले जा रहे हैं, क्या उससे पाकिस्तान के बच्चों की जिंदगी बनेगी?
मैं पाकिस्तान के बच्चों को कहना चाहता हूं, ये आपके हुक्मरान, ये आपकी सेना आतंकवाद के साये में पल रही है, वो आपके जीवन में खतरे पैदा कर रही है, आपके भविष्य को नष्ट कर रही है, आपको अंधेरे में धकेल रही है। पाकिस्तान को आतंक की बीमारी से मुक्त करने के लिए पाकिस्तान की अवाम को भी आगे आना होगा, पाकिस्तान के नौजवानों को आगे आना होगा, सुख-चैन की जिंदगी जियो, रोटी खाओ, वरना मेरी गोली तो है ही।
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