भारत में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय जलाया था और इसीलिए जलाया गया था क्योंकि उसमें वे पुस्तकें थीं, जो हमलावरों की सोच के अनुसार नहीं थी। जो हमलावरों को लगा कि काफिरों की लिखी हुई हैं। धीरे-धीरे सभी ऐसी चीजों को लूटना जारी रहा जो खिलजी जैसों की सोच के हिसाब से नहीं था, फिर चाहे कश्मीरी पंडितों के घर हों, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं के घर हों, लूट जारी रही!
बांग्लादेश में लूट अभी तक चल रही है और नष्ट करने के लिए लूट भी चल रही है। बांग्लादेश में ढाका के टँगाइल जिले में एक इस्लामिस्ट संगठन ने एक पुस्तकालय में चोरी की और वहाँ से ऐसी पुस्तकें चुराईं, जो उसके अनुसार “नास्तिक” लेखकों ने लिखी थी। इन पुस्तकों में रबिन्द्रनाथ टैगोर और काजी नज़रुल इस्लाम की भी पुस्तकें हैं।
बांग्लादेश में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से ही लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं। जलाना वहाँ पर आम हो गया है, कभी हिंदुओं के घर जलाए जाते हैं, कभी अल्पसंख्यकों के मंदिर, कभी शेख मुजीबुर्रहमान का घर जलाया जाता है, और अब पुस्तकें भी! जलाने वालों के चेहरे कोई भी हो, सोच वही है, जो बख्तियार खिलजी की थी। इस्लामिक कट्टरता की आंच में बांग्लादेश अब पूरी तरह से आ चुका है। हालांकि वह पहले भी था, परंतु शेख हसीना के कारण कुछ सीमा तक शांति थी। हाँ, उस शांति के नीचे यही सोच मजबूत हो रही थी।
मगर अब वह सोच और मानसिकता निरंकुश है। अब वह जला रही है। यह नया बांग्लादेश है। इस नए बांग्लादेश में टँगाइल में “ओभोयारोनो” नामक पुस्तकालय पर 24 अप्रेल को कट्टरपंथी इस्लामिस्ट समूह खिलाफत मजीश के लोग हमला कर देते हैं।
इनके हमले का निशाना वे स्वर हैं, जो बांग्लादेश की बांग्ला पहचान के स्वर हैं। इस पुस्तकालय को इस कट्टरपंथी इस्लामिस्ट संगठन के नेता गुलाम राबबानी ने, “नास्तिकों की फैक्ट्री” कहा और अपनी फ़ेसबुक पोस्ट पर इसे नष्ट करने की मांग की। इन लोगों ने हमला करते हुए लगभग 500 पुस्तकों को लूट लिया।
#Islamist group robs library in #Bangladesh’s Tangail alleging presence of books by “atheist writers”: Law enforcement and administration bend over for the radicals, return books to the looted library after finding no evidence of “atheist” literature!
Developments in “new”… pic.twitter.com/B2ZSlObLIE
— Bangladesh Watch (@bdwatch2024) April 28, 2025
इस कृत्य का समर्थन करते हुए समूह के नेता गुलाम रब्बानी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “धनबारी में नास्तिकता के लिए कोई भी जगह नहीं है। यह हमारा आखिरी बयान है। यहाँ पर एक ऐसी फैक्ट्री है, जो नास्तिक बनाती है। अपनी फैक्ट्री बंद कर करो और धनबारी छोड़कर चले जाओ। आप काफी लंबे समय से गैर कानूनी रूप से सरकारी जमीन पर कब्जा करे हुए हैं। आपको यह अवसर नहीं मिलेगा।“
dailyexcelsior.com के अनुसार इस घटना के बारे में बताते हुए पुस्तकालय के महासचिव दुर्जॉय चंद्र घोष ने कहा कि “रात को मजहबी पोशाकों में 20-25 लोग लाइब्रेरी में घुस आए और तरह-तरह की धमकियां देने लगे। उस समय वे घुसे और कहा, ‘सारी किताबें थैलों में भर लो। यहां कोई किताब नहीं होगी। जफर इकबाल नास्तिक हैं, जफर इकबाल की सारी किताबें ले जाओ। यहां से लोग नास्तिक किताबें पढ़ते हैं।’
“उस समय, भीड़ बनाने वालों में से एक ने कहा, ‘तुम्हारी यह लाइब्रेरी नहीं चलेगी। तुम्हारे पास यहाँ ज़फ़र इक़बाल की किताबें हैं, तुम्हारे पास प्रथम अलो की किताबें हैं। ऊपर से आदेश है कि इसे नष्ट कर दो और जला दो।’ फिर उन्होंने किताबों को बैग में भरना शुरू कर दिया। पुलिस की मौजूदगी के बावजूद, उन्होंने चार सौ से ज़्यादा किताबें लूट लीं।”
हालांकि बाद में पुलिस के अनुसार सब कुछ शांतिपूर्वक हल हो गया है। लूटी हुई पुस्तकें वापस कर दी गई हैं, और शायद हमलावरों को हिरासत में नहीं लिया गया है। मीडिया के अनुसार, धनबाड़ी उपजीला कार्यपालक पदाधिकारी शाहीन महमूद की अध्यक्षता में उपजिला परिषद हॉल में दो घंटे तक वार्ता बैठक हुई। धनबारी थाना प्रभारी एसएम शाहिदुल्लाह, उपजिला बीएनपी उपाध्यक्ष खैरुल मुंशी, उपजिला जमात अमीर मिजानुर रहमान, सैंक्चुअरी लाइब्रेरी अध्यक्ष सुप्ति मित्रा, संपादक संजय चंद्र घोष, इस्लामी खिलाफत मजलिश नेता गोलाम रब्बानी और स्थानीय मीडिया कर्मी उपस्थित थे।
बैठक में निर्णय लिया गया कि इस बारे में मीडिया में कोई और खबर नहीं दी जाएगी। यह कहते हुए पुस्तकें वापस कर दी गईं कि कोई भी प्रतिबंधित पुस्तक या नास्तिकता को बढ़ावा देने वाली पुस्तक नहीं पाई गई। परंतु हमला करने वालों पर कोई कार्यवाही हुई, इसका पता अभी तक नहीं चला है। हालांकि, ढाका ट्रिब्यून के अनुसार इससे पहले भी वर्ष 2022 में सैंक्चुरी लाइब्रेरी में आग लगाने की घटना हुई थी। तब भी वे किताबें जलाना चाहते थे, मगर पुलिस की मौजूदगी के कारण उन्होंने अपना फैसला बदल दिया था, और कई पुस्तकें चुराकर ले गए थे।
वे पुस्तकें अभी यूएनओ कार्यालय में हैं।
खिलाफत मजलिस संगठन के संगठन सचिव गुलाम रब्बानी ने कहा था कि “लाइब्रेरी के सदस्य फेसबुक पर इस्लामोफोबिक लेख पोस्ट करते थे। लाइब्रेरी में हुमायूं आजाद, हुमायूं अहमद, जफर इकबाल समेत कई लेखकों की किताबें थीं, जिनमें महिला अधिकारों और इस्लामोफोबिया के बारे में लिखा था। मैंने उन किताबों को यूएनओ कार्यालय में जमा करा दिया है। ”
प्रश्न यही है कि क्या संगठन यह निर्धारित करेंगे कि कोई पुस्तक किसी लाइब्रेरी में रहेगी या नहीं या फिर पढ़ने वाले? बांग्लादेश में जो भी हो रहा है, वही उस सोच की परिणिती है, जिसने अगस्त 2024 में शेख हसीना को देश छोड़ने पर बाध्य किया था।
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