महारानी अबक्का आज के कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिला के तटीय इलाके उल्लाल की रानी थीं। उन्होंने 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। महारानी अबक्का का जन्म 1525 में मूडुबिदिरे के चौटा राजवंश में हुआ था। यह राजवंश तुलु क्षेत्र (आज का तटीय कर्नाटक) में शासन करता था। उन्हें बचपन से ही युद्धकला, तलवारबाजी और घुड़सवारी की शिक्षा दी गई। उनके चाचा तिरुमल राय ने उन्हें राज्य संभालने और युद्ध की रणनीति सिखाई।

संपादक, विक्रम साप्ताहिक
उस समय मंगलूरु पर वीर नरसिम्हा बंगराज का शासन था। युवराज लक्ष्मप्परसा बंगराज की देशभक्ति और वीरता की खबरें मूडुबिदिरे में मशहूर थीं। लक्ष्मप्परसा बहादुर होने के साथ-साथ शांत स्वभाव के थे, जो तिरुमल राय को पसंद आया। तिरुमल राय ने अबक्का की शादी लक्ष्मप्परसा बंगराज से कराने का फैसला किया। दोनों की शादी हो गई। अबक्का मंगलूरु में रहकर अपने पति को शासन में सलाह देकर मदद करती थीं। लक्ष्मप्परसा बंगराज ने पुर्तगालियों को दी जाने वाली कर राशि बंद कर दी। पड़ोसी सामंत मंगलूरु के दोस्त बन गए। इसी बीच में 1544 में अबक्का उल्लाल की रानी बनीं और अपने राज्य को मजबूत करने में जुट गईं। उस समय पुर्तगाली भारत के समुद्री इलाकों पर कब्जा करना चाहते थे, लेकिन अबक्का ने उनकी हर कोशिश को नाकाम कर दिया। गुस्साए पुर्तगालियों ने पत्र भेजकर कर देने की धमकी दी। जब यह पत्र मंत्रियों के सामने रखा गया, तो अबक्का ने कहा, ‘‘पुर्तगालियों को कर नहीं देना चाहिए। देश और लोगों को गुलामी में डालना गलत है। देश के लिए लड़ना ही स्वर्ग है, गुलामी का जीवन नरक है।’’
इससे परेशान होकर पुर्तगाली नाविक, मंगलूरु के मछुआरों को परेशान करते थे। अबक्का ने पुर्तगाली गवर्नर को पत्र भेजा, लेकिन गवर्नर ने जवाब दिया कि व्यापार के लिए उनकी आज्ञा लेनी होगी और नियम तोड़ने की सजा भुगतनी होगी। इसी समय अबक्का ने एक चाल चली। एक तरफ उन्होंने पुर्तगालियों को कर भेजने का वादा किया, लेकिन दूसरी तरफ उनकी नौकाओं पर हमले की योजना बनाई। सैनिकों ने अपने चेहरों पर कालिख पोती। छोटी नावों में तेल से सनी लकड़ियां जमा की गईं। रात के अंधेरे में नावें पुर्तगाली जहाजों के पास पहुंचीं और उन्हें घेर लिया। उल्लाल के सैनिकों ने जहाजों में आग लगा दी। तीर हर तरफ से आ रहे थे। घबराए पुर्तगालियों ने इधर-उधर गोली चलाई। अबक्का पुरुष के वेश में तेजी से सैनिकों को निर्देश दे रही थीं। इस दौरान पुर्तगालियों के दो जहाज पूरी तरह जल गए।
अबक्का को ‘अभय रानी’ यानी ‘नहीं डरने वाली रानी’ कहा जाता था। उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी रणनीति और एकता थी। उन्होंने केरल के जमोरिन राजा के साथ गठबंधन किया और अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत बनाया। उनके सैनिकों में हर समुदाय के लोग शामिल थे, जो उनकी समावेशी सोच को दिखाता है। पुर्तगालियों ने उल्लाल पर कई बार हमला किया, लेकिन अबक्का की बहादुरी के आगे वे हार गए।
महारानी अबक्का न सिर्फ एक योद्धा थीं, बल्कि एक कुशल शासक भी थीं। उन्होंने अपने राज्य में व्यापार को बढ़ावा दिया और काली मिर्च, इलायची और चावल जैसे उत्पादों का निर्यात किया। उनके समय में शिवजी के कई मंदिर और तीर्थस्थल बनाए गए। उनकी निष्पक्षता और न्याय की भावना ने लोगों का हृदय जीत लिया था। भारत सरकार ने भी महारानी अबक्का की याद में 2003 में एक डाक टिकट जारी किया और 2009 में एक जहाज का नाम ‘रानी अबक्का’ रखकर उन्हें सम्मानित किया। उनकी कहानियां कर्नाटक में यक्षगान और लोक गीतों के जरिए आज भी जीवित हैं।
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