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Bangladesh: रोहिंग्याओं की मदद को बेचैन UN chief Antonio Guterres क्यों साधे रहे उनकी वापसी पर चुप्पी?

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और चीन तक के सामने अपील की थी कि म्यांमार के रोहिंग्याओं के कारण उस देश में कानून व्यवस्था की दिक्कतें पेश आ रही हैं। इस विषय पर गुतेरस का मुंह सिला रहा, इस पर उन्होंने कोई ठोस बयान नहीं दिया

Published by
Alok Goswami

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतेरस 13 से 16 मार्च तक चार दिन के लिए बांग्लादेश में रहे। उन्होंने वहां कई स्थानों का दौरा किया। वे मुख्य रूप से उस इस्लामी देश में चल रहे अनेक रोहिंग्या ‘शरणार्थी’ शिविरों में भी गए, उनका निरीक्षण किया। गुतेरस ने शिविरों की स्थिति पर गहरी ‘चिंता’ व्यक्त की। गुतेरस का यह दौरा ऐसे समय में हुआ जब रोहिंग्या शरणार्थियों को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता में कटौती की खबरें सामने आ रही हैं। उन्होंने इस दौरे के दौरान शरणार्थियों की ‘दुर्दशा’ को करीब से ‘महसूस’ किया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उनकी मदद के लिए आगे आने की अपील की।

अजीब बात है कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और चीन तक के सामने अपील की थी कि म्यांमार के रोहिंग्याओं के कारण उस देश में कानून व्यवस्था की दिक्कतें पेश आ रही हैं, उनकी वहां से वापसी पर ध्यान दिया जाए। इस विषय पर गुतेरस का मुंह सिला रहा, इस पर उन्होंने कोई ठोस बयान नहीं दिया। हालांकि उनके दौरे की खबरों ने दुनियाभर के विशेषज्ञों में यह चर्चा शुरू कर दी थी कि गुतेरस रोहिंग्याओं की म्यांमार वापसी की बात करेंगे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

रोहिंग्याओं के एक कार्यक्रम में गुतेरस और बांग्लादेश सरकार में मुख्य सलाहकार मेाहम्मद यूनुस

रोहिंग्या समुदाय म्यांमार के रखाइन प्रांत का एक अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय है, जो 2017 में म्यांमार सेना द्वारा चलाए गए अभियान से डर कर बड़े पैमाने पर बांग्लादेश पलायन कर गया था। रोहिंग्याओं ने वहां बहुसंख्यक बौद्ध लोगों का जीना हराम किया हुआ था, यौन अपराध से लेकर उनकी जान लेने तक से रोहिंग्या बाज नहीं आ रहे थे, तब सेना ने उनके विरुद्ध कार्रवाई की। उसके बाद वहां से जान बचाकर लाखों रोहिंग्या पड़ोसी इस्लामी देश बांग्लादेश में आ बसे। उसके बाद से, बांग्लादेश में भी उन्होंने कोहराम मचाया हुआ है। वहां की सरकार और नागरिक उनसे मुक्ति पाना चाहते हैं, लेकिन पश्चिमी के ‘बड़े दिल वाले’ देश राहत और राशि भेजकर उनको वहीं टिकाए रखे हैं। वर्तमान में, लगभग 10 लाख रोहिंग्या ‘शरणार्थी’ बांग्लादेश के कॉक्स बाजार क्षेत्र में अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं।

शिविरों में रोहिंग्या अपने ‘मजहब के सबक’ के अनुसार, अपनी आबादी बढ़ाने में लगे हैं। यह भी बांग्लादेश के लिए एक बड़ा सिरदर्द है। ‘शरणार्थियों’ को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के बदले वहां कानून व्यवस्था को चुनौती मिल रही है। लेकिन इसके बावजूद, पश्चिमवादी सोच पर चलते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुतेरस शिविरों का दौरा करके उनके लिए और मदद की अपील की है। कॉक्स बाजार में स्थित शरणार्थी शिविरों में ‘शरणार्थियों’ के साथ बात की और उनकी ‘समस्याओं’ को समझने का प्रयास किया। गुतेरस ने हैरान करने वाला बयान देते हुए कहा कि ‘रोहिंग्या शरणार्थियों को दी जाने वाली सहायता में कटौती करना “मानवता के खिलाफ अपराध” है।’ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वे शरणार्थियों के लिए भोजन, चिकित्सा सुविधाओं और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

गुतेरस ने यह बयान देते हुए रोहिंग्याओं की म्यांमार वापसी के मुद्दे पर चुप्पी ओढ़े रखी। उनकी यह चुप्पी बेशक, कई सवाल खड़े करती है, क्योंकि ‘रोहिंग्या संकट’ का स्थायी समाधान तभी संभव है जब शरणार्थियों की वापसी सुनिश्चित की जाए। म्यांमार की सैन्य जुंटा सरकार ने अब तक रोहिंग्याओं की वापसी के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

रोहिंग्याओं के एक स्कूल में गुतेरस

बांग्लादेश गरीब देश है। अपने सीमित संसाधनों के बावजूद ‘रोहिंग्या शरणार्थियों’ को उसने तब शरण देकर ‘उदारता’ तो दिखाई लेकिन उसके बाद से अपने निर्णय पर पछता रहा है। हालांकि, इतने बड़े पैमाने पर ‘शरणार्थियों’ को अपने यहां बसाना उस देश के लिए एक बड़ी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौती बन गया है। आधिकारिक तौर पर तो बांग्लादेश सरकार ने गुतेरस के दौरे का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि इससे ‘रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता जुटाने के प्रयासों को बल मिलेगा।’

कुल मिलाकर गुतेरस का बांग्लादेश दौरा रोहिंग्या संकट की ओर ‘अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित’ करने की एक कोशिश मानी जा रही है। लेकिन रोहिंग्याओं की वापसी के मुद्दे पर उनकी चुप्पी ने उनके इस दौरे के असरदार होने को लेकर सवाल खड़े किए हैं। इस मुद्दे पर अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर काम करने और म्यांमार सरकार पर दबाव बनाने की जरूरत है जिसकी कोशिश पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने की थी और ऐसा करके वे वहां की कट्टरपंथी जमातों के निशाने पर भी आई थीं। उनके विरुद्ध गत अगस्त में चले आंदोलन में रोहिंग्याओं का हिंसा फैलाने में कथित रूप से काफी इस्तेमाल किया गया था। वक्त आ गया है कि रोहिंग्या म्यांमार वापस लौटें और बांग्लादेश को कुछ राहत महसूस कराएं।

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