"बाबर का खूनी इतिहास: मंदिरों का विध्वंस, हिंदुओं का नरसंहार, और गाजी का तमगा!"
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“बाबर का खूनी इतिहास: मंदिरों का विध्वंस, हिंदुओं का नरसंहार, और गाजी का तमगा!”

हुमायूँनामा में गुलबदन बेगम ने लिखा है कि राणा सांगा पर विजय प्राप्त करने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि पदवी पाई। गाजी का अर्थ है—“दूसरे मत का पालन करने वालों का वध करना।”.

by सोनाली मिश्रा
Mar 5, 2025, 07:14 pm IST
in भारत
क्रूर था मुगल आक्रांता बाबर

क्रूर था मुगल आक्रांता बाबर

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500 साल पहले आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में राम मंदिर को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन यह सनातन की संजीवनी ही है कि राम मंदिर दोबारा भव्य रूप में सामने आया। लेकिन, आज भी मुगल आक्रांता बाबर को मसीहा मानने वालों की कमी नहीं है। बाबर को लेकर आहें भरने वाले इतिहासकारों की भी कमी नहीं है। वे आक्रांता बाबर को अपना पूर्वज मानते हैं।

बाबर आया ही था हिंदुओं को लूटने। उसका एक ही मकसद था कि हिंदुओं की संपत्ति को लूटा जाए और उन्हें अपने-अपनों में बांटा जाए और हिंदुस्तान पर शासन किया जाए। बाबर मुश्किल से चार वर्ष ही शासन कर सका था। मगर उस दौरान भी उसने मंदिरों को तोड़ा और हिंदुओं सहित पठानों के सिरों की भी मीनारें बनाईं।

हुमायूँनामा में गुलबदन बेगम ने लिखा है कि राणा सांगा पर विजय प्राप्त करने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि पदवी पाई। गाजी का अर्थ है—“दूसरे मत का पालन करने वालों का वध करना।”.

बाबर ने खुद ही अपनी पुस्तक बाबरनामा में उन कत्लेआमों के बारे में लिखा है जो उसने हिंदुओं के स्थान आते समय किये थे और उनमें अफगानों के भी सिरों की मीनारें बनाना शामिल था। हुमायूँनामा में गुलबदन बेगम ने बाजौर या बिजौर के दुर्ग में बाबर द्वारा हिंदुओं के मारे जाने के बारे में लिखा है। उसने लिखा, ”बिजौर को दो तीन घड़ी में बाबर ने जीत लिया और वहां के सब रहने वालों को मरवा डाला। बिजौर में रहने वाले मुसलमान नहीं थे।”

मंदिर तोड़कर बाबर द्वारा बनाई गई मस्जिदों का विवरण सीताराम गोयल अपनी पुस्तक HINDU TEMPLES: WHAT HAPPENED TO THEM ? में देते हैं। वे रोहतक और सोनीपत में बाबर द्वारा बनाई गई मस्जिदों के बारे में लिखते हैं। इस पुस्तक में लेखकों ने भारत में बाबर की किसी भी निशानी पर ही हैरानी जताई है। वे लिखते हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद उस बाबर ने बनाई थी, जिसका भारत से कोई लेना-देना ही नहीं था। वह यहाँ पर एक आक्रमणकारी या कहें विजेता के रूप में भारत आया था, मगर जब वह विजेता नहीं रह गया तो एक विजेता के रूप में उसके अधिकार समाप्त हो जाते हैं।

इस पुस्तक के अध्याय सात में लेखक Jay Dubashi लिखते हैं कि “यह देश अब हमारा है, बाबर का नहीं और यदि हम एक गलत को बदल नहीं सकते तो इस स्वतंत्रता का अर्थ क्या है!”
बाबर ने राणा सांगा के साथ युद्ध के बाद हिंदुओं का कत्लेआम किया था और उसके बाद ही गाजी की पदवी ली थी। जो भी लोग बाबर के बारे में यह कहते हैं कि वह केवल दौलत लूटने के लिए ही आक्रमण करता था, उसे खानवा के युद्ध से पहले बाबरनामा का वृत्तान्त पढ़ना चाहिए कि कैसे यह युद्ध इस्लाम के सिपाही लड़ रहे थे। और जब इस जंग में फतह हासिल हुई तो बाबर ने खुद को गाजी कहा। बाबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद में बाबर के हवाले से लिखा है कि फ़तहनामे पर तुगरा (उपाधि) से पहले, मैंने लिखा

For Islam’s sake, I wandered in the wilds,
Prepared for war with pagans and Hindus,
Resolved myself to meet the martyr’s death.
Thanks be to God ! a ghdzi I became.

अर्थात इस्लाम की खातिर मैं जंगलों में फिरा। पैगन और हिंदुओं के खिलाफ युद्ध के लिए खुद को तैयार किया, शहीद की मौत के लिए कसम खाई और खुदा का शुक्र, मैं गाजी बना। (स्रोत- The Babur-nama in English (Memoirs of Babur by ANNETTE SUSANNAH BEVERIDGE – पृष्ठ 575)

इसके बाद जब लोग और विद्रोह करने लगे तो बाबर ने बहुत ही बेरहमी से उनका दमन करके फिर से उनके सिरों की मीनारें बनाईं। वर्ष 1527 में खानवा के युद्ध के बाद उसकी नजर चंदेरी पर पड़ी, जहां पर मेदिनीराय शासन कर रहे थे। मेदिनीराय ने बाबर पर आक्रमण नहीं किया था। बाबर को चंदेरी के दुर्ग को जीतना था। चंदेरी का दुर्ग पहाड़ी पर था और पहाड़ी से एक तरफ पानी के लिए दोहरी दीवार थोड़ी नीचे थी। राजपूतों ने प्रयास किया परंतु वे हार गए। बाबरनामा में बाबर लिखता है कि राजपूत कुछ देर के लिए गायब हो गए थे और उसके बाद वह लिखता है कि वे लोग शायद अपनी पत्नी और बच्चों को मारने गए थे और उसके बाद लगभग निर्वस्त्र होकर वे लड़ने के लिए आ गए और उन्होनें मुगलों की सेना पर हमला कर दिया।

बाबर लिखता है कि “अल्लाह के करम से, इस दुर्ग को 2 या 3 घड़ी में ही जीत लिया गया, जिसमें बहुत अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा था। और फिर चंदेरी के उत्तर-पश्चिम में हिन्दुओं के सिरों की मीनार बनाने का आदेश दिया।” अर्थात एक बार फिर उसने हिंदुओं के सिरों की मीनारें बनाईं और इस तारीख को फतह-ए-दारुल-हर्ब का नाम दिया गया। हालांकि चंदेरी के दुर्ग में मेदिनीराय की महारानी मणिमाला के जौहर का उल्लेख मिलता है। ऐतिहासिक रिकार्ड के अनुसार मेदिनीराय की महारानी मणिमाला ने 29 जनवरी 1528 को सोलह सौ महिलाओं के साथ जौहर कर लिया था।

 

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