पाञ्चजन्य के 78वें स्थापना वर्ष पर भारत की प्रगति के आठ केंद्रों पर आधारित कार्यक्रम ‘अष्टायाम’ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी से ‘भारत और विश्व’ विषय पर ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने बातचीत की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित हैं। इसलिए वहां हिंदुओं की रक्षा कर वे इस पुरस्कार की गरिमा को बनाए रखें। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
आप पहले ऐसे नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं, जिनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि और कर्मक्षेत्र सभी भारत में हैं। नोबेल शांति पुरस्कार के ‘फ्रेमवर्क’ को आप किस दृष्टिकोण से देखते हैं? क्या इसमें भारतीय मूल्यों की झलक दिखाई देती है?
हमारे यहां वैश्विक दृष्टि और करुणा की जो अवधारणा है, वह पाश्चात्य दृष्टि से काफी अलग और गहरी है। हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले कहा था कि सारा संसार एक घोंसले की तरह है। जिस तरह चिड़िया अपने घोंसले में बच्चों का पालन करती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से उड़ने के लिए तैयार करती है, वैसा ही भाव हमारी संस्कृति में है। यह करुणा और समर्पण का भाव है, जिसे हमें किसी पाश्चात्य विचारधारा से सीखने की आवश्यकता नहीं है। हमारी संस्कृति में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का भाव गहराई से व्याप्त है। कहा गया है-
‘अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्।’
बहुत छोटे दिल-दिमाग वाले लोग ही भेदभाव करते हैं। उदारचरित लोगों के लिए पूरी दुनिया एक परिवार है। यह करुणा भारतीय दृष्टिकोण से निकलती है। रामचरितमानस में भी करुणा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए जब सीता जी ने पहली बार भगवान राम को देखा, तो उन्होंने कहा, ‘करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।’ यानी राम की पहचान उनकी करुणा और सहृदयता से हुई। यह करुणा भारतीय संस्कृति की जड़ है और यही हमारी वैश्विक दृष्टि का आधार है।
एफ.सी.आर.ए. कानून और विदेशी ‘फंडिंग’ से जुड़े मुद्दों पर आपकी क्या राय है? क्या यह कानून आवश्यक था और क्या यह सही दिशा में है?
जब मैंने बच्चों की बंधुआ मजदूरी और गुलामी को खत्म करने के लिए काम शुरू किया, तो शुरुआती दिनों में विदेशी ‘फंडिंग’ के माध्यम से आने वाले पैसों के पीछे छिपे एजेंडे को समझना मुश्किल था। धीरे-धीरे मुझे यह एहसास हुआ कि कुछ विदेशी संस्थाएं अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भारत में ‘फंडिंग’ कर रही थीं। एफ.सी.आर.ए. (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) का उद्देश्य ऐसे ‘फंडिंग नेटवर्क’ को नियंत्रित करना है जो हिंसा, उग्रवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं। मैंने देखा कि पर्यावरण और अध्ययन के नाम पर भी कई बार ‘फंडिंग’ होती थी, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज और संस्कृति को नुकसान पहुंचाना था। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए ऐसे ‘फंडिंग नेटवर्क’ पर सख्त नियंत्रण रखे।
तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग एन.जी.ओ. की आड़ में विदेश से पैसे लेकर चुनी हुई सरकारों के विरुद्ध दुष्प्रचार करते हैं। क्या यह लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश नहीं है?
देखिए, मैं तो इनके बारे में जानता नहीं हूं। केवल मीडिया में पढ़ा है। इसलिए उनके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन यहां एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा कि सरकार की नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाना अलग बात है, लेकिन यदि कोई देश के विरुद्ध कार्य करे, तो उसे किसी भी कीमत पर छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
आपके पुराने मित्र और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर चुप क्यों हैं?
यह सच है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो हो रहा है वह चिंताजनक है। उनकी हत्या हो रही है, उनके पूजा-स्थलों को तोड़ा जा रहा है। इन सबके बीच मोहम्मद यूनुस का जो रवैया है, उससे मुझे बहुत तकलीफ हो रही है। इसलिए मैंने व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखकर मोहम्मद यूनुस से कहा है कि वे अल्पसंख्यक हिंदुओं और उनके मंदिरों की सुरक्षा के लिए कदम उठाएं, लेकिन दुर्भाग्यवश मेरे पत्रों का कोई जवाब नहीं आया है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि नोबेल शांति पुरस्कार की एक गरिमा है। उस गरिमा को बनाए रखने के लिए कार्य करें। हो सकता है, उन पर दूसरी ताकतों का दबाव हो। यह भी देखने में आ रहा है कि बांग्लादेश सरकार और वहां की राजनीति में कई अंतरराष्ट्रीय ताकतें शामिल हैं, जो भारत को कमजोर करने के लिए काम कर रही हैं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि बांग्लादेश का पूरा समाज भारत विरोधी या हिंदू विरोधी है। वहां कई ऐसे लोग हैं, जो भारत और हिंदुओं के समर्थन में खड़े हैं।
बाल अधिकारों के मुद्दे पर आप भारत और विश्व की नीतियों को कैसे अलग पाते हैं?
भारत में बाल अधिकारों को लेकर हाल के वर्षों में काफी प्रगति हुई है। हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। जहां एक तरफ भारत में सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बाल श्रम उन्मूलन के लिए कई पहल की हैं, वहीं वैश्विक स्तर पर इन मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए हमें और अधिक काम करने की आवश्यकता है।
भारत में बच्चों के अधिकारों के लिए किए गए प्रयास अब वैश्विक आंदोलनों का हिस्सा बन गए हैं। ‘ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन’ और ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ जैसे आंदोलन भारत की धरती से ही जन्मे हैं और आज 150 से अधिक देशों में इनका प्रभाव है।
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