आप चाहे कितने भी शातिर हों, यदि कानून के शिकंजे में आ गए तो बचना नामुमकिन है। कुछ ऐसा ही हुआ तेलंगाना में। भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.) के नेता चेन्नामनेनी रमेश अपने को भारतीय नागरिक बताते रहे, लेकिन उनका दावा गलत निकला। अब अदालत ने उनकी भारतीय नागरिकता को रद्द कर दिया है। न्यायालय ने यह भी माना कि उन्होंने अपनी जर्मन नागरिकता छुपाई और अदालत को भी गुमराह किया। इसके लिए उन पर 30 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। इसमें से 25 लाख रुपए उनके विरुद्ध याचिका दायर करने वाले आदि श्रीनिवास को दिए जाएंगे।
पता चला है कि रमेश 1990 के दशक में जर्मनी गए थे। वहीं उन्होंने एक जर्मन लड़की से विवाह किया और अपना घर भी बसा लिया था। 2008 में वे भारत लौटे। इसके बाद वे चुनाव भी लड़ने लगे, लेकिन उन्होंने जर्मनी की नागरिकता को छोड़ा नहीं। कानून के अनुसार कोई भारतीय नागरिक ही भारत में चुनाव लड़ सकता है। इसके लिए उन्होंने भारत की नागरिकता ले ली, लेकिन जर्मन नागरिकता के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया। यहां तक कि चुनाव आयोग से भी उन्होंने इस बात को छुपाया। वे गलत दस्तावेजों के आधार पर तेलंगाना के वेमुलवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक बने। जब अदालत ने उन्हें सजा सुनाई, तो लोग हैरान रह गए कि ऐसा कैसे हो गया?
रमेश का झूठ कांग्रेस नेता आदी श्रीनिवास द्वारा तेलंगाना उच्च न्यायालय में दायर की गई एक याचिका के बाद खुला। न्यायालय ने कहा कि रमेश जर्मन दूतावास से ऐसे दस्तावेज प्रस्तुत करने में असफल रहे, जो यह सिद्ध कर सकें कि वे अब जर्मनी के नागरिक नहीं हैं।
वैसे चेन्नामनेनी रमेश का राजनीतिक सफर काफी विवादास्पद रहा है। 2009 में उन्होंने तेलुगू देशम पार्टी (टी.डी.पी.) के टिकट पर चुनाव जीता था, जबकि 2010 से 2018 तक उन्होंने बी.आर.एस. के टिकट पर तीन बार जीत दर्ज की थी।
एक बार वे उप चुनाव में भी जीत चुके हैं। इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब 2020 में केंद्र सरकार ने तेलंगाना उच्च न्यायालय को बताया कि रमेश के पास जर्मन पासपोर्ट है, जो 2023 तक वैध है। इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह आदेश जारी किया कि रमेश की भारतीय नागरिकता को समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि उन्होंने आवेदन के दौरान महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई थी। गृह मंत्रालय का कहना था कि अगर रमेश ने यह बताया होता कि वे एक वर्ष तक भारत में नहीं रहे थे, तो उन्हें भारतीय नागरिकता नहीं मिलती।
इसके बाद रमेश ने गृह मंत्रालय के आदेश को अदालत में चुनौती दी थी। अदालत ने उन्हें यह निर्देश दिया कि वे यह स्पष्ट करें कि उन्होंने अपना जर्मनी का पासपोर्ट लौटा दिया है और यह भी सिद्ध करें कि उन्होंने जर्मनी की नागरिकता छोड़ दी है। लेकिन रमेश इससे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाए। फिर न्यायालय ने वह निर्णय दिया, जिसकी चर्चा अब जर्मनी में भी हो रही है।
पहले भी रमेश की नागरिकता पर विवाद उठ चुका है। 2013 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में भी उनकी नागरिकता का मामला पहुंचा था। उस समय आंध्र उच्च न्यायालय ने विधानसभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी थी। इस निर्णय के विरुद्ध रमेश सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे और वहां उन्हें राहत मिल गई थी। लोगों का मानना है कि चेन्नामनेनी रमेश ने भारतीय कानून में मौजूद खामी का लाभ उठाया है। इसलिए ऐसे कानूनों को बदलना जाना चाहिए। नहीं तो किसी भी देश का नागरिक यहां चुनाव लड़कर विधायक, सांसद और मंत्री भी बन सकता है। यह देश की सुरक्षा के लिए भी चुनौती है।
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