बांग्लादेश की मुस्लिम कट्टरपंथी अंतरिम सरकार हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमले को बदलाव का जामा पहनाने की कोशिश कर रही है। देश के संविधान को अपने हिसाब से ढालने की कोशिशों को वो सुधार का नाम दे रहे हैं। इसी क्रम में अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने एक बार फिर से स्पष्ट किया है कि जब देश में जब तक ऐच्छिक सुधार (संविधान को अपने हिसाब से बदलना) नहीं आ जाते हैं, तब तक चुनाव नहीं होंगे।
COP29 के सम्मेलन के दौरान मुहम्मद यूनुस ने समाचार एजेंसी से बात की। उसी वक्त उन्होंने अपने इरादों को स्पष्ट कर दिया। यूनुस ने स्पष्ट किया के देश में इस वक्त जिस प्रकार के सुधार किए जा रहे हैं, उनकी तेजी ही चुनाव आयोजित करने की दिशा को तय करेगी। लोकतंत्र की बात कर मुहम्मद यूनुस कहते हैं कि ये एक वादा है, जो कि मैंने किया है, जब भी हम इसके लिए तैयार हो जाएंगे तो चुनाव कराएंगें और फिर चुने गए लोगों के हाथ में सत्ता और देश की बागडोर होगी।
यूनुस का कहना था कि देश को संभावित संवैधानिक बदलावों, चुनावी नियमों और संसद के नए स्वरूपों पर सहमत होने की जरूरत है। यूनुस ने बांग्लादेश में अस्थिरता को स्वीकार किया और बात को घुमाते हुए आरोप लगाया कि शेख हसीना के कारण बांग्लादेश इस वक्त आर्थिक तंगी का कारण है। हाल ही में भारतीय कंपनी अडानी पॉवर ने 850 मिलियन डॉलर के बकाए के कारण सीमा पार बिजली की आपूर्ति को आधी कर दिया है।
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मामला कुछ यूं है कि जुलाई में शुरू हुए शेख हसीना सरकार के खिलाफ कथित छात्र विरोधी आंदोलन के कारण उन्हें 5 अगस्त 2024 को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। इस आंदोलन के कारण 700 से अधिक लोग मारे गए। इसमें भी हिन्दुओं की चुन-चुनकर हत्याएं की गईं। हालात ये हैं कि शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों को कुचला गया। हिन्दुओं और हिन्दू मंदिरों के खिलाफ मुस्लिम कट्टरपंथी लगातार हमले कर रहे हैं। इसमें भी बांग्लादेशी सेना पर उनकी मदद के आरोप हैं। साथ ही वहां कट्टरपंथी अंतरिम सरकार पर अपने राजनीतिक विरोधियों की सामूहिक गिरफ्तारी और हत्या के भी आरोप हैं।
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अब बांग्लादेश के संविधान बदलने के लिए कोशिशें तेज हो चुकी हैं। हाल ही में इसके लिए एक वेबसाइट भी लॉन्च की गई थी, जिसमें लोगों के सुझाव मांगे गए थे। हालांकि, आवामी लीग को इससे पूरी तरह से बाहर रखा गया था।
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