मोहम्मद यूनुस वाले नए बांग्लादेश से एक और चौंकाने वाला समाचार सामने आ रहा है। यह समाचार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने पूरी तरह से यह स्थापित कर दिया है कि बांग्लादेश अपनी उसी पहचान की ओर लौट रहा है, जो उसने ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना के समय धारण की थी। अर्थात एक अलग मुस्लिम पहचान वाले देश की अर्थात पाकिस्तान की। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि पाञ्चजन्य ने इस बात के समाचार पहले ही दे दिए थे कि बांग्लादेश किस तरफ मुड़ेगा और उसकी विचारधारा पाकिस्तान से किस कदर मेल खाने लगी है।
ढाका ट्रिब्यून के अनुसार बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमाणित फ़ेसबुक पेज के अनुसार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने अब आठ राष्ट्रीय अवकाशों को रद्द कर दिया है। ये सारे अवकाश बांग्लादेश के लिए क्रांति करने वाले और बांग्लाभाषियों पर पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों का विरोध करने वाले शेख मुजीबुर्रहमान के जीवन से तो जुड़े ही थे, मगर साथ ही इन अवकाशों में सबसे महत्वपूर्ण अवकाश है 7 मार्च का वह अवकाश, जिसे बंगबंधु के उस ऐतिहासिक भाषण की याद में मनाया जाता रहा है, जिसने बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की थी।
पहले जानते हैं कि नए बांग्लादेश की सरकार ने किन अवकाशों को रद्द किया है:
- 7 मार्च, बंगबंधु के ऐतिहासिक भाषण का स्मृति दिवस
- 17 मार्च, बंगबंधु की जयंती और राष्ट्रीय बाल दिवस
- 5 अगस्त, कैप्टन शेख कमाल की जयंती
- 8 अगस्त, बंगमाता बेगम फजिलतुन्नेस मुजीब की जयंती
- 15 अगस्त, बंगबंधु की पुण्यतिथि और राष्ट्रीय शोक दिवस
- 18 अक्टूबर, शेख रसेल दिवस
- 4 नवंबर, राष्ट्रीय संविधान दिवस
- 12 दिसंबर, स्मार्ट बांग्लादेश दिवस
7 मार्च 1971 को बांगलाभाषियों के साथ हो रहे अन्याय का सामना करने वाले शेख मुजीबुर्रहमान ने ढाका के रेसकोर्स में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था। उन्होंने इसमें बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की थी। दरअसल पाकिस्तान के चुनावों में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं, मगर फिर भी उन्हें सरकार नहीं बनाने दी गई थी। इस अन्याय के प्रतिरोध में उन्होनें विद्रोह किया था और 7 मार्च 1971 को ढाका में ऐतिहासिक भाषण दिया था।
इस भाषण में उन्होंने बांग्लादेश की कल्पना की थी। चूंकि पूर्वी पाकिस्तान पर भाषा के आधार पर ही भेदभाव किया जा रहा था, इसलिए हो सकता है कि भाषाई मुस्लिम की पहचान हावी हो गई हो, मगर भाषाई अस्मिता के आधार पर अन्याय का विरोध शेख मुजीबुर्रहमान ने किया था और यह भाषण इसलिए भी ऐतिहासिक कहा जाता है क्योंकि यह स्वत: स्फूर्त था। यूनेस्को ने वर्ष 2017 में इसे ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में स्वीकृत किया।
यूनेस्को की वेबसाइट पर इसके विषय मे लिखा है, “इस भाषण ने प्रभावी रूप से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की। यह भाषण इस बात का एक विश्वसनीय दस्तावेज है कि कैसे उत्तर-औपनिवेशिक राष्ट्र-राज्यों द्वारा समावेशी, लोकतांत्रिक समाज विकसित करने में विफलता ने विभिन्न जातीय, सांस्कृतिक, भाषाई या धार्मिक समूहों से संबंधित अपनी आबादी को अलग-थलग कर दिया है। यह भाषण बिना किसी लिखित स्क्रिप्ट के दिया गया था।“
इस भाषण में बंगबंधु ने आजादी के लिए आह्वान किया था। उन्होनें नागरिक अवज्ञा आंदोलन की घोषणा की थी। इसी दिन के बाद पाकिस्तान के प्रति जनता ने विद्रोह करना आरंभ किया था। उन्होनें इस भाषण में अपनी गलती पूछी थी कि हमने क्या गलती की है? उन्होनें कहा था कि इन चुनावों में बांग्लादेश ने मुझपर विश्वास क्या और अवामी लीग को जिताया।
यह भाषण पाकिस्तान की उस विफलता को दिखाता है, जिसमें उसने भाषाई आधार पर अपने ही मजहब का पालन करने वाले लोगों को अलग-थलग कर दिया था। और इस भाषां की पहचान के आधार पर ही यह देश अस्तित्व में आया था। मगर नए बांग्लादेश में ऐसा लग रहा है न ही शेख मुजीबुर्रहमान की आवश्यकता है और न ही इस प्रेरक भाषण की, जिसके आधार पर यह देश अस्तित्व में आया था। क्या नए बांग्लादेश में अपनी उस पहचान को लेकर इस सीमा तक घृणा है कि वह उस ऐतिहासिक दस्तावेज़ को भी सम्मान देने से हिचक रहा है, जिसने उसे पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई? या फिर वह शर्मिंदा है कि उसे शेख मुजीबुर्रहमान ने भाषाई आधार पर पहचान दिलाई? यहाँ पर यह प्रश्न इसलिए और खड़ा होता है क्योंकि जो भी अवकाश निरस्त किए गए हैं, उनमें बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के परिजनों के स्मृति दिवस होने के साथ ही राष्ट्रीय संविधान दिवस भी शामिल है।
क्या नया पाकिस्तान अपने उस संविधान के प्रति भी शर्मिंदा है जिसे शेख मुजीबुर्रहमान ने बनाया था? हाल ही में जेल से छूटे ब्रिगेडियर जनरल (निलंबित) अब्दुल्लाही अमन आजमी ने यह कहा भी था कि बांग्लादेश के संविधान को बदला जाए। उन्होनें इस्लामी बांग्लादेश में इस्लाम के कानून के अनुसार संविधान की मांग की थी। हालांकि उनका विरोध हुआ था, मगर जिस प्रकार से 4 नवंबर अर्थात राष्ट्रीय संविधान दिवस के अवकाश को रद्द किया गया है, वह यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि नया बांग्लादेश दरअसल पूर्वी पाकिस्तान की पहचान पर वापस आ रहा है या फिर वह खुद को असली पाकिस्तान या जिन्ना का असली वारिस घोषित करना चाहता है।
नया बांग्लादेश या तो पूर्वी पाकिस्तान या नया असली पाकिस्तान बनने के सफर पर है।
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