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फर्जी ‘आधार’, सतर्क सरकार

असम के मुस्लिम-बहुल बारपेटा, धुबरी, मोरीगांव, नौगांव जिलों में जनसंख्या से अधिक आधार कार्ड बने। राज्य सरकार के कथनानुसार अब आधार कार्ड जिला उपायुक्तों की सहमति से ही बनेंगे

by दिव्य कमल बारदोलई
Sep 20, 2024, 10:30 pm IST
in विश्लेषण, असम
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असम के कई जिले बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों से बुरी तरह प्रभावित हैं। हाल ही में राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ‘‘कम से कम चार जिलों में आधार कार्डधारकों की संख्या जनसंख्या से ज्यादा है। बारपेटा में 103.74 प्रतिशत, धुबरी में 103.48 प्रतिशत, मोरीगांव में 101.76 प्रतिशत और नौगांव में लगभग 100.86% लोगों ने आधार कार्ड बनवाए हैं।’’ ऐसा कैसे हो सकता है? इसका अर्थ है कि असम में बांग्लादेशी घुसपैठिए भी बड़ी संख्या में आधार कार्ड बनवा रहे हैं। यह चिंता का विषय है। यही कारण है कि राज्य सरकार 1 अक्तूबर से इन सबका सत्यापन करने जा रही है। इसके साथ ही 1 अक्तूबर से आधार कार्ड के लिए आवेदन करने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने आवेदन के साथ अपना राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) आवेदन नंबर देना होगा। यह निर्देश चाय बागान क्षेत्रों को छोड़कर सभी जिलों में लागू होगा।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा, ‘‘2014 में जब से एन.आर.सी. की प्रक्रिया शुरू हुई है, तब से विदेशी नागरिकों की पहचान रुकी हुई है। अब हमारा लक्ष्य इस प्रयास को तेज करना है, क्योंकि हमने एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण घुसपैठ देखी है। इसलिए हम अपनी दूसरी रक्षा पंक्ति को मजबूत करेंगे।’’ सरमा ने कहा, ‘‘केंद्र ने अब राज्य सरकार पर जिम्मेदारी डाल दी है और आधार कार्ड केवल संबंधित जिला आयुक्तों से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एन.ओ.सी.) प्राप्त करने के बाद ही जारी किए जाएंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने पाया है कि विदेशी नागरिक असमिया के रूप में अपनी पहचान को गलत तरीके से स्थापित करने और अन्य दस्तावेज प्राप्त करने के लिए आधार का उपयोग करते हैं। इसलिए, हम अवैध आवेदकों को रोकने के लिए आधार सत्यापन प्रक्रिया को और अधिक कठोर बनाएंगे।’’

बता दें कि 2019 में फरवरी और अगस्त के बीच 9,35,682 लोगों ने आधार कार्ड बनवाने के लिए उन केंद्रों पर अपने विवरण दिए थे, जो एन.आर.सी. केंद्र भी थे। सरमा ने कहा कि जिन 19 लाख लोगों के नाम एन.आर.सी. सूची से गायब हैं और जिन 9 लाख लोगों को आधार कार्ड नहीं मिला है, उनके बीच कोई संबंध नहीं है।

सरमा ने यह भी बताया कि प्रभावित लोगों में वे लोग भी शामिल हैं जो सीधे तौर पर एन.आर.सी. से जुड़े नहीं थे, लेकिन उनके बायोमेट्रिक्स उस अवधि के दौरान एकत्र किए गए थे जब आधार पंजीकरण और एन.आर.सी. नामांकन एक साथ किए गए थे। उनके अनुसार राज्य सरकार ने एक कैबिनेट उप-समिति बनाई है, जो आल-असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) सहित विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर काम कर रही है।
बता दें कि असम के 27 लाख लोग औपचारिक पहचान के दायरे से बाहर हैं। ये वे लोग हैं, जिन्होंने एन.आर.सी. के बारे में दावे और आपत्तियां की हैं। वे अब नए आधार नामांकन के लिए भी आवेदन नहीं कर सकते। वहीं 3.30 करोड़ लोगों ने एन.आर.सी. में शामिल होने के लिए आवेदन किया था, लेकिन 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित एन.आर.सी. के मसौदे में लगभग 40 लाख लोगों के नाम बाहर कर दिए गए थे। उनमें से लगभग 36.28 लाख लोगों ने सूची में शामिल होने का दावा किया था और लगभग 2 लाख ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई थीं। उन्हें बाद की सुनवाई के लिए बुलाया गया जहां उनके बायोमेट्रिक विवरण प्राप्त करने के प्रावधान किए गए थे।

इस दौरान, असम पुलिस सीमा संगठन ने घुसपैठ से निबटने के लिए अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि सीमावर्ती क्षेत्रें में घुसपैठियों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है। जनवरी 2024 से अब तक असम पुलिस सीमा संगठन ने 54 बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान की है। इनमें से करीमगंज जिले में 48, बोंगाईगांव में 4, हाफलोंग जीआरपी में 1 और धुबरी जिले में 1 घुसपैठिए की पहचान हुई है। इनमें से 45 घुसपैठियों को बांग्लादेश वापस भेज दिया गया है, जबकि करीमगंज में नौ घुपसैठियों को गिरफ्तार करके रखा गया है।

Topics: बांग्लादेशी घुसपैठिएमुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमापाञ्चजन्य विशेषआल-असम स्टूडेंट्स यूनियनसम पुलिस सीमा संगठनविदेशी नागरिक असमिया के रूपराष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
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