बांग्लादेश में राजनीतिक हालात को लेकर अब बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) के सदस्यों ने लोकतंत्र बहाल करने की मांग की है। 17 सितंबर को बीएनपी के हजारों समर्थक और एक्टिविस्ट ढाका में इकट्ठे हुए और चुनावों के माध्यम से देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को आरंभ करने की मांग की।
5 अगस्त 2024 को कथित छात्र आंदोलन के कारण शेख हसीना को अपनी जान बचाकर देश छोड़कर भारत भागना पड़ा था और उसके बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा का दौर आरंभ हो गया था। देश अराजकता की आग में झुलसने लगा था। बांग्लादेश में सेना ने मोहम्मद यूनुस को आंतरिक सरकार का मुखिया बनाया था और उसके बाद बीएनपी के नेताओं को जेल से छोड़ा जाना आरंभ हुआ था।
हसीना के देश छोड़े जाने की खुशी बीएनपी की इस रैली में भी दिखाई दी। बीएनपी की नेता खालिदा जिया को शेख हसीना की सरकार ने जेल में डाला हुआ था, इसलिए 17 सितंबर की बीएनपी की रैली में लोगों का कहना था कि वे खुश हैं, क्योंकि बिना किसी रोकटोक के रैली में जा पा रहे हैं। बीएनपी की रैली अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित की गई थी और इसमें बांग्लादेश के कोने-कोने से कार्यकर्ता और नेता शामिल हुए। इस रैली में मुख्य अतिथि बीएनपी के एक्टिंग चेयरमैन तारिक रहमान थे, जिन्होनें इस रैली को वर्चुअली संबोधित किया था।
द वीक के अनुसार तारिक रहमान ने लंदन से इस रैली को संबोधित करते हुए यह तो कहा कि उसकी पार्टी सुधारों के लिए आंतरिक सरकार के उठाए गए कदमों का समर्थन करती है, मगर ऐसे परिवर्तन केवल तभी बने रह पाएंगे, यदि इस प्रक्रिया में अवाम की भी भागीदारी होगी।
वहीं बीएनपी ने शुरुआत में तीन महीनों में चुनाव कराने की मांग की थी, तो वहीं अब वह सुधारों के लिए आन्तरिक सरकार को और समय दिए जाने के पक्ष में है। जमात-ए-इस्लामी, जो बीएनपी की
सहयोगी भी रह चुकी है, वह भी यूनुस सरकार को चुनावों के लिए समय दिए जाने के पक्ष में है।
यूनुस सरकार ने दी सेना को पुलिसिंग और मजिस्ट्रेट संबंधी शक्तियां
जहां बीएनपी चुनावों की बात कर रही है तो वहीं यूनुस सरकार ने अब सेना को आगामी 60 दिनों के लिए हिंसा पर नियंत्रण करने के लिए पुलिस और प्रशासन की शक्तियां दे दी हैं। शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद से ही बांग्लादेश मे हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। पहले जहां मीडिया मुखर होकर बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति को बता पा रहा था, तो वहीं बांग्लादेश की मीडिया पर भी कदम उठाए गए और अब बांग्लादेश से हिंसा की खबरें ऐसा लग रहा है जैसे सरकारी चलनी में छनने के बाद ही आ रही हैं।
बांग्लादेश के जन प्रशासन मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी नोटिफिकेशन के अनुसार आगामी 60 दिनों के लिए सेना के योग्य अधिकारी जिला मजिस्ट्रेट की निगरानी के अंतर्गत एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य करने में सक्षम होंगे। यह आदेश हिंसा ग्रस्त देश में सेना को और पुलिस एवं प्रशासनिक शक्तियां देने के लिए उठाया गया एक कदम है। बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के वकील तपस कान्ति बौल ने मीडिया (टीबीएस) को बताया कि अभी तक सेना के पास किसी मजिस्ट्रेट की उपस्थिति के बिना कोई गिरफ़्तारी करने की ताकत नहीं थी मगर अब वे किसी को भी उन्हें प्रदत्त सीआरपीसी की धारा 65 के अंतर्गत शक्तियों के अनुसार हिरासत में ले सकते हैं। इसी वेबसाइट के अनुसार सेना और सशस्त्र बलों के साथ पुलिस थानों, आउटपोस्ट्स और अन्य सुरक्षा संस्थानों से लूटे हुए गोलाबारूद को जब्त करने के लिए संयुक्त अभियान चला रही है।
दो वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ ढाका में एक अदालत ने दी पूछताछ की अनुमति
5 अगस्त को शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद से ही शेख हसीना समर्थकों पर न केवल जनता बल्कि सरकार का भी दमनचक्र चल रहा है। श्यामल दत्ता और मोजम्मेल बाबू को सोमवार को तब गिरफ्तार कर लिया गया था, जब कथित रूप से वे भारत भागने की तैयारी में थे। दोनों ही वरिष्ठ पत्रकारों को शेख हसीना का नजदीकी माना जाता है और दोनों ही पत्रकारों पर छात्र आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों के संबंध में हत्या का आरोप है। श्यामल दत्ता जहां बंगाली भाषा के भोरेर कागोज के संपादक और ढाका में नेशनल प्रेस क्लब के पूर्व महासचिव हैं तो वहीं मोजम्मेल बाबू निजी स्टेशन एकटर टीवी के प्रबंध निदेशक और प्रधान संपादक हैं।
सुधारों का दावा करने वाली सरकार में लगातार व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर शेख हसीना के समर्थक कहे जाने वाले लोगों के साथ व्यवस्थागत दमन किया जा रहा है। और शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद अब तक लगभग 150 पत्रकारों के खिलाफ मानवता के खिलाफ अपराध और हत्या जैसे आरोप लगाए जा चुके हैं। हालांकि ऐसे कदमों का विरोध भी कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन कर रहे हैं जैसे पेरिस स्थित रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स या आरएसएफ और ह्यूमन राइट्स वॉच।
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