ख्यातिप्राप्त पहलवान विनेश फोगट और बजरंग पूनिया के कांग्रेस में शामिल होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए हरियाणा के वरिष्ठ भाजपा नेता अनिल विज ने बड़ी ही सरलता से कहा – “अगर कोई देश की बेटी से कांग्रेस की बेटी बनना चाहती है तो हमें क्या ऐतराज है..?” राजनीतिक गलियारे में इस हलचल के बीच कई सारे सवाल तो खड़े होंगे ही, और उनका जवाब भी उन्हीं मानदंडों के आधार पर दिए जाएंगे। लेकिन, चूंकि मामला दो अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों का है जिन्होंने पेरिस ओलंपिक से पहले व्यवस्था के खिलाफ तमाम सवाल खड़े करते हुए अंततः कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है, खेल जगत से सवाल तो उठना जायज है कि क्या अब राजनीतिक अखाड़े में कुश्ती लड़ी जाएगी ? अगर ऐसा होता है तो क्या तरक्की की ओर बढ़ रही भारतीय कुश्ती दो कदम पीछे नहीं चली जाएगी ?
पिछले डेढ़ साल से विनेश और बजरंग की गतिविधियों के परिणामस्वरूप पेरिस ओलंपिक में भारतीय कुश्ती दल को मिली एक तरह से विफलता खेलप्रेमियों के संदेह को पुख्ता करती है। विनेश और बजरंग का कांग्रेस पार्टी में शामिल होना कोई असामान्य घटना नहीं है। लेकिन जब सभी देश पेरिस ओलंपिक की तैयारियों में जुटी हुई थी, ठीक उसी समय (18 जनवरी, 2023) इन दोनों स्टार पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ युवा महिला पहलवानों पर यौन शोषण का आरोप जड़कर हड़कंप मचा दिया। कुछ युवा पहलवान इस आंदोलन से जुड़कर अपना भविष्य चौपट करते दिखे। अंततः बृजभूषण को अपना पद त्यागना पड़ा और उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया था विनेश और बजरंग कांग्रेस के मोहरे बन गए हैं और उनके इशारे पर भारतीय कुश्ती जगत में हलचल मचाना चाह रहे हैं।
मामला चूंकि कोर्ट में विचाराधीन है इसलिए अभी तो कोई राय नहीं दी जा सकती है। लेकिन पेरिस ओलंपिक के समाप्त हुए एक महीना भी नहीं बीता है और दोनों पहलवान कांग्रेस पार्टी से जुड़ जाते हैं, तो साजिश की बू तो जरूर नजर आती है। इस धरना-प्रदर्शन के कारण ओलंपिक की तैयारियों में जुटे पहलवानों का न केवल ध्यान भटका, बल्कि पेरिस जाने के लिए विनेश फोगट का एक ही दिन में 53 किग्रा व 50 किग्रा भारवर्ग में विवादास्पद चयन ट्रायल देना, कहीं से भी देशहित में काम करने का प्रयास तो नहीं ही कहा जा सकता है। पेरिस ओलंपिक में 50 किग्रा भारवर्ग में फाइनल तक पहुंचकर 100 ग्राम वजन बढ़ने के कारण एक पदक तो हाथ से फिसला ही, साथ ही देश का नाम भी तो गिरा। इसके अलावा पुरुष वर्ग में देश की ओर से एकमात्र अमन सहरावत ने देश का प्रतिनिधित्व किया और कुश्ती में भारत की ओर से इकलौता पदक जीत भारतीय दल की लाज रख ली। लेकिन बजरंग को क्या ये खयाल नहीं आया कि अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के चक्कर में वह अन्य पुरुष पहलवानों के साथ अन्याय कर रहे हैं। बहरहाल, आगे क्या होगा ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन राजनीतिक गलियारे में कुश्ती को घसीटने पर खेल हार जाएगा यह तय है। वह सुखद स्थिति नहीं होगी।
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