अचानक अफरातफरी मच गई और पता चला कि विभाजन हो गया है। इसके बाद वहां मुसलमान हावी होने लगे। घर से निकलना मुश्किल हो गया। सारी खुशियां अचानक थम गईं। बंटवारे की घोषणा होते ही सभी अपने अपने घरों में सीमित रह गये। जीवन में एक अजीब-सी घुटन और तनाव आ गया था।
बलवीर सिंह बत्रा
मुजफ्फरगढ़, पाकिस्तान
मेरा नाम बलवीर सिंह है, लेकिन वानप्रस्थ में आकर नाम बलेश्वर मुनि रख लिया है। मेरे पिताजी पटवारी थे। मैं 12 साल का था। विभाजन के समय हमारे पिताजी मुल्तान में थे और हम दो भाई गर्मी के छुट्टियों में अपने गांव अलीपुर में अचानक अफरातफरी मची और पता चला कि विभाजन हो गया है। इसके बाद वहां मुसलमान हावी होने लगे।
घर से निकलना मुश्किल हो गया। गांव में हमारा घर हवेली जैसा था। परिवार के हम सब बच्चे खेत-खलिहान जाया करते थे। लेकिन ये खुशियां अचानक थम गईं। बंटवारे की घोषणा होते ही सभी अपने-अपने घरों में सीमित रह गये। गलियों में पुलिस का पहरा होने लगा।
हिन्दुओं को हर तरह से प्रताड़ित किया जाने लगा, जिससे जीवन में एक घुटन-सी आ गई। फिर अचानक एक दिन सब कुछ छोड़कर वहां से निकलना पड़ा। सब कुछ वहीं छूट गया। हम जैसे-तैसे शाहबाद, अंबाला पहुंचे। रोजी-रोटी के लिए उस वक्त हम मंडी से गन्ने लाकर गली-गली बेचा करते थे।
मैं अपने चाचा के साथ ही यहां आया था। दो साल बाद पता चला कि पिताजी और माताजी हिन्दुस्थान में ही हैं। यहां पर पिताजी को पटवारी की नौकरी मिल गई थी। फिर हम पिताजी के पास नकोदर आ गए, जहां से मैंने दसवीं पास की। वहां से दसवीं करने के बाद मैं कानपुर चला गया। उसके बाद मैं
वायुसेना में भर्ती हुआ। बंटवारे में दिनों में हमारे परिवार पर जो बीती, उसे मैं कभी भुला नहीं सकता।
टिप्पणियाँ