बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ जो अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें लेकर विश्व के लगभग हर कोने में प्रदर्शन हो रहे हैं। यूएन मुख्यालय से लेकर कनाडा, अमेरिका, लंदन आदि स्थानों पर लोग प्रदर्शन करके हिंदुओं के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, और ऐसा भी नहीं कि केवल अवामी लीग के समर्थक हिन्दू मारे जा रहे हैं, बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी इस कथित क्रांति में मारे गए हैं, जिसे देखकर भारत के कम्युनिस्ट लहालोट हो रहे हैं।
परंतु यह और भी खेदजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत के कम्युनिस्टों की ओर से बांग्लादेश में मारे जा रहे हिंदुओं के प्रति एक भी शब्द नहीं आया है और इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जब बांग्लादेश में हिंदुओं को मारा जा रहा था, भयानक हिंसा हर ओर थी, उस समय भारत में जंतर-मंतर पर कम्युनिस्ट एनी राजा और अर्थशास्त्री एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज सहित कुछ लोग फिलिस्तीन के लिए नारे लगा रहे थे।
नई दिल्ली से बांग्लादेश की दूरी बहुत कम है। कम से कम फिलिस्तीन की तुलना में काफी कम है और बांग्लादेश, भारत का ही एक अंग है। बांग्लादेश में अभी तक साझी संस्कृति और साझी विरासत है, जिसे वहाँ के हिन्दू संजोकर रखे हुए हैं। जिसे वहाँ के हिंदुओं ने सहेजकर सम्हाल कर रखा है। अब उसी साझी विरासत पर लगातार हमला हो रहा है।
बंगाल के कम्युनिस्टों का प्रिय स्थान बांग्लादेश रहा है। मगर जब बांग्लादेश में हिंदुओं और शेष अल्पसंख्यकों पर हमला हो रहा है, तो ऐसे में कम्यूनिस्टों का फिलिस्तीन के लिए नारे लगाना एक अजीब संदेह उत्पन्न करता है। ऐसा लगता है जैसे उन्हें अपने लोगों से अधिक एजेंडे की चिंता है। ऐसा भी नहीं है कि बांग्लादेश में केवल हिन्दू ही मारे जा रहे हैं। बांग्लादेश में मुस्लिम भी मारे जा रहे हैं। ऐसे मे वे लोग यह कह सकते हैं कि यह राजनीतिक हत्याएं हैं, मगर कम्युनिस्ट पत्रकार की हत्या तो राजनीतिक नहीं थी?
बांग्लादेश में हिंसा रोकने के लिए जिन हाथों में बोर्ड होने चाहिए थे, उन हाथों में गाजा में सीजफायर के बोर्ड थे। इस विरोध प्रदर्शन में एनी राजा के साथ कई युवा और कथित रूप से सामाजिक वैज्ञानिक भी शामिल थे। खान मार्केट से यह विरोध प्रदर्शन आरंभ हुआ था और इसे इज़रायली एम्बेसी पहुँचने से पहले रोक दिया गया।
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की कॉंग्रेस और राहुल गांधी से नजदीकियाँ पूरी तरह से स्पष्ट हैं। ज्यां द्रेज ने एक दिन पहले ही संसद में जाकर राहुल गांधी से भेंट की थी और उससे पहले भी 4 अगस्त को ज्यां द्रेज ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में अरुंधती रॉय, प्रशांत भूषण, बृंदा करात, सिद्धार्थ वरदराजन, विजयन एम जे, अशोक शर्मा के साथ मिलकर प्रेस कान्फ्रेन्स की थी कि वे फिलिस्तीन के साथ हैं।
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4 अगस्त को यह मांग की गई थी कि भारत इजरायल के साथ अपने सभी संबंध तोड़ ले। और बृंदा करात ने प्रेस कान्फ्रन्स में यह कहा था कि भारत इजरायल से सैन्य और सुरक्षा उपकरण आयात कर रहा है और जिस कारण इजरायल आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है। उन्होनें यह भी कहा कि भारत से कई कामगार इजरायल गए हैं, जो इजरायल की जियोनिस्ट सरकार की क्रूर नीति का समर्थन है।
इसी प्रेस कान्फ्रेन्स में ज्यां द्रेज ने कहा था कि जहां कई फिलिस्तीनी नागरिक भूख से मर रहे हैं, और कइयों को चिकित्सीय सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, क्योंकि इजरायल अब राहत कर्मियों, अंबुलेन्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर हमले कर रहा है।
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मगर यही लोग जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हुए, तो उनके जीने के अधिकार पर प्रश्न उठाने को लेकर मौन साध गए और झण्डा उठाकर फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाने के लिए पहुँच गए। प्रश्न यह उठता है कि राहुल गांधी के नजदीकी ज्यां द्रेज और कम्युनिस्ट लाबी भारत के सैन्य आयात पर प्रश्न क्यों उठा रही है?
क्या यह सत्य नहीं है कि कांग्रेस के शासनकाल में सेना के पास पर्याप्त गोलाबारूद की कमी रहती थी और वर्तमान में सेना के पास अत्याधुनिक हथियार हैं? सैन्य आयात पर कैसे कोई भी संस्था प्रश्न उठाया सकती है? या संगठन प्रश्न उठा सकता है?
ज्यां द्रेज ने भी 4 अगस्त को यही कहा कि भारत सरकार इज़रायल की सरकार की एक निष्ठावान साथी बनी हुई है और उन भारतीय कंपनियों को छूट प्रदान कर रही है, जो इजरायल के लिए सैन्य सामग्री पैदा कर रही हैं, भारतीय कामगारों को फिलिस्तीन कामगारों के स्थान पर भेज रही है और भारत में इजरायल के खिलाफ आंदोलनों को दबा रही है।
ये वही ज्यां द्रेज हैं, जो सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद अर्थात सोनिया गांधी की सुपर कैबिनेट एनएसी के सदस्य रह चुके हैं और साथ ही कश्मीर से धारा 370 हटाने को लेकर भी वे मुखर विरोधी रह चुके हैं। इसके साथ ही राहुल गांधी के साथ उनकी बैठक की भी तस्वीरें वायरल हैं।
वर्ष 2019 में मार्च में उन्हें झारखंड में बिना अधिकारियों की अनुमति के सार्वजनिक सभा करने के आरोप में तत्कालीन सरकार ने हिरासत में लिया था। और उस समय योगेंद्र यादव ने ज्यां द्रेज को “संत अर्थशास्त्री” की संज्ञा दी थी।
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ज्यां द्रेज मूलत: बेल्जियम से हैं और उन्होनें भूख पर हंगर एंड पब्लिक एक्शन नामक पुस्तक नोबल विजेता अमर्त्य सेन के साथ मिलकर लिखी है। ज्यां द्रेज ने 2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर यह भी कहा था कि भारतीय लोकतंत्र एक संकटकाल से होकर गुजर रहा है और उन्होनें यह भी कहा था कि वर्तमान परिस्थितियों में आने वाले लोकसभा चुनाव में धांधली की पूरी आशंका है।
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