15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता मिली। किंतु यह खुशी से अधिक सोच में डालने वाला प्रश्न है, क्योंकि ‘अखंड भारत’ को खंडित किया गया। यह निर्णय बहुसंख्यक हिंदुओं के हितों को ताक पर रखकर लिया गया। अंग्रेजों ने जिन्ना और नेहरू की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के जरिए विभाजन का खाका तैयार किया। इसमें पूर्वी पाकिस्तान, जहां बड़ी संख्या में हिंदू थे, को भी शामिल किया गया। उद्देश्य था उस भविष्यवाणी को झुठलाना कि ‘अखंड भारत’ एशिया की बड़ी शक्ति बनेगा। भारत के टुकड़े करके आपस में लड़ने-मरने का स्थायी इंतजाम कर दिया गया। वो तो भला हो सरदार पटेल का जिन्होंने बचे-खुचे भारत को एक सूत्र में पिरोकर इसे एक आकार दिया।
भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान ने इस्लामी कट्टरपंथ की राह पकड़ी किंतु भाषा, संस्कृति और अपनी अलग पहचान रखने वाला पूर्वी पाकिस्तान उसे खटकता रहा। उसने बांग्लाभाषियों पर अत्याचार शुरू किया। नतीजा, 1971 में बांग्लादेश अस्तित्व में आया और उसने लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई। वह समृद्धि के रास्ते पर बढ़ रहा था। कहा जा रहा था कि हैप्पीनेस इंडेक्स में बांग्लादेश भारत से ऊपर है, लेकिन वहां अंदरखाने कुछ और ही चल रहा था। आज इस्लामी कट्टरपंथी भीड़ ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को उखाड़कर देश को अराजकता की ओर धकेल दिया! इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है! पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पहले जो हुआ या अब जो हो रहा है, वह भारत के लिए सबक है!
घर को आग लगाने आ पहुंचे थे मुसलमान
सावित्री चावला
डेरा गाजी खां (पाकिस्तान)
एक दिन अचानक कुछ लोग आये और बोले कि तुम्हारे घर को आग लगानी है। अचानक माहौल इतना खराब हो गया था कि जो जिस हालत में था, उसे वैसे ही लेकर घर से निकल पड़े। घर का सारा सामान वैसे ही छोड़कर हमें जान बचाकर भागना पड़ा। आज भी सोचती हूं कि पिताजी पर क्या बीती होगी।
मेरे पिताजी डेरा गाजी खां में प्राइमरी स्कूल शिक्षक थे। माताजी पढ़ी-लिखी नहीं थीं, परंतु शादी के बाद पिताजी ने माताजी को भी पढ़ाया। विभाजन के समय मैं मात्र दो महीने की थी। पिताजी बताते थे कि तब वहां अनाज के बदले में चीजें दी जाती थीं। पिताजी हमेशा अच्छा अनाज लेकर जाया करते थे, इसलिए उन्हें चीजें ज्यादा मिल जाती थीं। मेरे पिताजी ईमानदारी के लिए मशहूर थे।
उन्होंने एक बार बताया था कि एक दिन अचानक कुछ लोग आये और बोले कि तुम्हारे घर को आग लगानी है। अचानक माहौल इतना खराब हो गया था कि जो जिस हालत में था, वैसे ही लेकर घर से निकल पड़े। घर का सारा सामान वैसे ही छोड़कर हमें जान बचाकर भागना पड़ा। वहां से पैदल चलते हुए रेलवे स्टेशन पहुंचे।
मैं आज भी सोचती हूं कि तब जो स्थिति रही होगी ‘उसमें पिताजी परिवार और बच्चों’ को सही-सलामत कैसे लाए होंगे। रा.स्व. संघ के स्वयंसेवकों ने बड़ी मदद की थी। भारत आकर रेवाड़ी (हरियाणा) की एक मस्जिद में रहे।
पिताजी को रेवाड़ी में भी प्राइमरी स्कूल में शिक्षक के पद पर नौकरी मिल गई। हम सभी भाई-बहन उसी स्कूल में पढ़ने जाया करते थे। पिताजी कहा करते थे कि खाना मिले या न मिले, बच्चों की पढ़ाई जरूरी है।
हिन्दुस्थान आकर सबसे पहले उन्होंने हम सभी की पढ़ाई का इंतजाम किया था। इसके लिए जो पास में थोड़ा-बहुत सोना वगैरह था, उसे तक उन्होंने गिरवी रखा था।
…और उन्हें काट डाला दंगाई मुसलमान ने
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