प्रत्येक राष्ट, प्रगति के मार्ग पर बढ़ना चाहता है, उसके लिए आवश्यक है कि वह अपनी समृद्धशाली संस्कृति और इतिहास को कभी ना भूले क्योंकि भूतकालीन कृतियां व घटनाएं ही भविष्य की पथ प्रदर्शक होती हैं। हम अपनी नींव, अपनी संस्कृति पर अडिग रहकर भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं तो देश और समाज का निर्माण संभव है— इसी महान विचार को लेकर राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना हुई थी।
13 अगस्त, 1947 से जब देश में चारों और भय, चिंता, अविश्वास व दंगों का माहौल था तब दो अत्यंत साहसी और तेजस्वी महिलाएं, लक्ष्मीबाई (मौसी जी) और वेणु ताई कराची हवाई अड्डे पर उतरीं। हवाई यात्रा में पुरुषों के बीच केवल यही दो महिलाएं थीं। 14 अगस्त, 1947 को कराची के एक घर की छत पर 1200 से भी अधिक महिलाएं एकत्रित हुर्इं और मौसी जी ने उन सबके दुख को देखते हुए उन्हें धैर्यशील बनने, संगठन पर विश्वास रखने और मातृभूमि की सेवा का व्रत जारी रखने का प्रण दिलवाया। साथ ही साथ इन बहनों को यह आश्वासन भी दिया कि आपके भारत आने पर आपकी सभी समस्याओं का समाधान किया जाएगा और जब वे महिलाएं हिंदुस्तान आर्इं तो मौसी जी ने मुंबई के कई परिवारों में गोपनीयता रखते हुए उनका संरक्षण भी किया।
14 अगस्त वह दिन था जब पाकिस्तान अपना पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहा था और पूरे देश मे हिंदुओं का कत्लेआम जारी था, हिन्दू महिलाएं अपने सम्मान की रक्षा को लेकर भयभीत थीं। हर रोज महिलाओं के बलात्कार और अपमान की भयावह कहानियां सामने आ रहीं थीं। ऐसे डरावने माहौल में राष्ट्र सेविका समिति की ये दो निर्भीक नेत्री कराची में हिन्दू महिलाओं को ढाढस बंधा रही थीं। मौसीजी यानी लक्ष्मीबाई केलकर ने 1936 में राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की थी। देश की आजादी के समय ये संगठन अपनी शुरुआती अवस्था में ही था।
गरिमामयी व अलौकिक व्यक्तित्व की स्वामिनी महिलाओं में राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक चेतना जाग्रत करने वालीं लक्ष्मीबाई केलकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय डॉक्टर हेडगेवार जी से भेंट की थी। लक्ष्मीबाई केलकर ने उनके समक्ष अपना यह विचार रखा था कि अगर पुरुष राष्ट्र उत्थान के कार्य के लिए सन्नद्ध हो सकते हैं तो राष्ट्र कार्य का उत्तरदायित्व नारी का भी हो। कन्या, भगिनी, पत्नी, माता के रूप में नारी परिवार को एक सूत्र में बांधती है, अगर वही दुर्बल होगी तो समाज कैसे सबल होगा इसलिए महिलाओं को भी मानसिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा शारीरिक सामर्थ्य बढ़ाकर राष्ट्रहित में अपने कर्तव्यों का वहन करना चाहिए। उनके विचारों से प्रभावित होकर डॉक्टर हेडगेवार की सलाह पर एक स्वतंत्र महिला संगठन की स्थापना हुई जिसे आज हम सभी ‘राष्ट्र सेविका समिति’ के रूप में जानते हैं ।
लक्ष्मीबाई केलकर का जन्म आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन 6 जुलाई, 1905 को नागपुर में हुआ। एक तेजस्वी बालिका को देखते ही डॉक्टर ने बालिका का नामकरण कर दिया कमल। बालिका कमल के पिता भास्कर राव दाते व माता यशोदाबाई तन-मन-धन से सामाजिक कार्यों में लगे थे। बालिका की माताजी से उन्हें निर्भीकता, राष्ट्रप्रेम के गुण घुट्टी में मिले। पिता सरकारी नौकरी में थे और उस समय ब्रिटिश शासन में किसी भी सरकारी कर्मचारी के लिए लोकमान्य तिलक द्वारा प्रकाशित ‘केसरी’ जैसे साहित्य को खरीदना, उसका अध्ययन करना देशद्रोह माना जाता था लेकिन कमल की मां तिलक साहित्य खरीदती भी थीं और महिलाओं के साथ संयुक्त रूप से पढ़ती भी थीं। अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित जनमानस देश की स्वतंत्रता के लिए कसमसा रहा था। ऐसे वातावरण में परिवार में पिता, ताई व माता जी समाज को जागृत कर राष्ट्रहित के कार्यों में संलग्न थे।
बालिकाओं के लिए कोई स्वतंत्र विद्यालय ना होने के कारण कमल को मिशनरी स्कूल भेजा गया लेकिन विद्यालय में और परिवार से मिलने वाली शिक्षा में बहुत ज्यादा अंतर के कारण बालिका के मन में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई और मिशनरी स्कूल से हटाकर कमल को ‘हिंदू मूलांची शाला’ में दाखिल करवाया गया। जिस समय महाराष्ट्र में गायों को वध से बचाने का अभियान चल रहा था, उस समय कमल ने परिवार की अन्य महिलाओं व मंदिर के पुजारियों के साथ मिलकर आंदोलन को नई राह दी। महाराष्ट्र में प्लेग महामारी के प्रकोप के समय भी उन्होंने बिना किसी भेदभाव के समाज के नागरिकों की सेवा की। जब लोग प्लेग से प्रभावित मरीज को छूने तक से परहेज करते थे ऐसे समय में कमल ने सहजता और धैर्य के साथ सेवा कार्य किया।
शिक्षित, जागरूक कमल ने दहेज प्रथा का विरोध किया और समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया तथा अपने माता-पिता के समक्ष बिना दहेज के विवाह का आग्रह रखा। कमल का विवाह वर्धा के प्रसिद्ध अधिवक्ता पुरुषोत्तम राव से हुआ। विवाह के पश्चात कमल का नामकरण हुआ लक्ष्मी। विवाह के लगभग 12 वर्ष बाद ही तपेदिक की लाइलाज बीमारी के कारण पति का देहांत हो गया। मात्र 27 वर्ष की उम्र में लक्ष्मी विधवा हो गईं। पति के निधन के पश्चात दो बेटियों और छह बेटों की जिम्मेदारी, पारिवारिक दायित्व को निभाते हुए भी लक्ष्मी की कांग्रेस की प्रभात फेरियों, पिकेटिंग आदि कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी थी। गांधी आश्रम में प्रार्थना में गांधी जी ने एक बार कहा था कि सीता के जीवन से राम-राम बने इसलिए महिलाओं को अपने समक्ष सदैव सीता का आदर्श रखना चाहिए।
इसी विचार के चलते लक्ष्मी ने रामायण का अध्ययन किया। समाज में नारी शोषण, अत्याचारों के समाचारों के कारण लक्ष्मी की सोच में परिवर्तन आया। महिलाएं आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास जैसे गुणों से ही अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का विरोध कर सकती हैं उनमें यह विचार घर करने लगा। बंगाल के समाचारों (स्नेह लता ,कुसुम बाला) ने इस आग को और भड़का दिया था। लक्ष्मी के पुत्र मनोहर व दिनकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाना प्रारंभ किया। उनके जीवन में आए परिवर्तनों को देखकर इन के मन में भी इसी प्रकार के महिला संगठन की आवश्यकता का विचार आया और वे डॉक्टर हेडगेवार जी से मिलीं।
डॉक्टर हेडगेवार जी उनके संयमित व्यवहार, निर्भीकता, संकल्प और महिलाओं के प्रति उनके जुनून से अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने संगठन की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की। इस प्रकार राष्ट्र सेविका समिति संगठन की नींव पड़ी। इस संगठन की विचारधारा पुरुषों के संगठन के समान किंतु समानांतर थी और यह एक स्वतंत्र संगठन था। ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की स्थापना वर्धा में विजयदशमी के दिन 1936 में हुई।
अब यक्ष प्रश्न यह था कि महिलाओं को एक संगठन की छत के नीचे लाकर ऐसा क्या सिखाया जाए जिससे कि वे राष्ट्र धर्म के कार्य में जुट जाएं। समिति के लिए योजनाएं बनने लगीं। वे महिलाओं से प्रतिदिन निश्चित समय पर मिलने लगीं ताकि महिलाएं सुशीला, सुधीरा, समर्था बनें व उनके हृदय में हिंदुत्व का भाव जगे। महिलाओं को सैनिक पद्धति के अनुसार शाखा में प्रशिक्षण दिया जाने लगा। लक्ष्मीबाई केलकर जी ने समिति की शाखाओं की बहनों से संपर्क करने के लिए साइकिल चलाना, भाषण देना, भाषण देने के लिए भी लगातार विषयों का गहन अध्ययन कर महत्वपूर्ण बिंदु निकालना व प्रभावी भाषा में लगातार बोलने का अभ्यास शुरू किया। इसी अभ्यास ने उन्हें एक अच्छा वक्ता बना दिया।
स्वास्थ्य के महत्व को जानते हुए 1953 में उन्होंने ‘स्त्री जीवन विकास परिषद’ का आयोजन कर डॉक्टरों को एकत्र कर परिचर्चा आयोजित की। योगासन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, अत: समिति शिक्षा वर्ग में योगासन का समावेश किया गया। एक आदर्श सेविका कैसी हो, इस विचार पर भी लगातार चिंतन मनन कर स्पष्ट रूपरेखा तैयार की। समिति शाखा स्थान पर अनुशासित होकर व्यायाम, योग, दंड, छुरिका, नियुद्ध आदि की शिक्षा दी जाने लगी। खेलों का समावेश भी शाखा में किया जाने लगा क्योंकि खेलों के माध्यम से बहनों में आध्यात्मिकता, शौर्य, साहस, धैर्य, देशभक्ति का निर्माण होता है।
सुदृढ़ शरीर में तेजस्वी मन का निर्माण होता है इसलिए बौद्धिक विकास के विभिन्न कार्यक्रम भी शाखा में करवाए जाते हैं ताकि समिति की सेविकाओं में भारतीय संस्कृति, इतिहास, धर्म और अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त हो सके।
राष्ट्र इन सेविकाओं के अंतस में बसा महान भाव है इसलिए देश पर कभी भी प्राकृतिक आपदाओं (बाढ़, भूकंप, अकाल, तूफान, सुनामी व युद्ध काल) के आने पर समिति सेविकाओं ने धन, वस्त्र, दवाइयां, प्राथमिक चिकित्सा सभी सभी प्रकार से मदद की। आज राष्ट्र सेविका समिति अनेक शिक्षण संस्थाएं, सिलाई केंद्र, योग केंन्द्र औषधालय, वनवासी छात्राओं के लिए छात्रावास, भजन मंडल आदि चला रही है।
वर्तमान में राष्ट्र सेविका समिति भारतीय महिलाओं का सबसे बड़ा और सुदृढ़ संगठन है जिसकी शाखाएं पूरे भारत में नहीं वरन् विदेशों में भी फैली हुई हैं। भारत के 2380 शहरों, कस्बों और गांवों में समिति की 3000 शाखाएं चल रही हैं। समिति के 400 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। दुनिया के 16 देशों में समिति की सशक्त उपस्थिति दर्ज हो चुकी है।
साहसी व आत्मविश्वास से भरपूर वंदनीया लक्ष्मीबाई केलकर केवल एक नाम नहीं है अपितु अपने आप में एक संस्था है। राष्ट्र सेविका समिति संगठन की स्थापना का दृढ़ निश्चय कर समिति रूपी वृक्ष को लगातार घना, छायादार, फल- फूल से परिपूर्ण बनाने में जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया, ऐसी प्रात: स्मरणीय, वंदनीया लक्ष्मीबाई केलकर से आज पूरा भारत ही नहीं अपितु विदेश में रहने वाले भारतीय भी परिचित हैं। उन्होंने केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में रहने वाली सैकड़ों महिलाओं में हिंदुत्व की अलख जगाई।
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