बरेली में घायल गर्भवती कछुआ की अनूठी सर्जरी, वैज्ञानिकों ने ब्लाउज हुक-गोंद से जोड़ दिया दुर्घटना में टूटा कवच
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बरेली में घायल गर्भवती कछुआ की अनूठी सर्जरी, वैज्ञानिकों ने ब्लाउज हुक-गोंद से जोड़ दिया दुर्घटना में टूटा कवच

वाहन से कुचलने के बाद जख्मी हालत में मिला था कच्छप, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) की टीम ने दिया जीव को नया जीवन

by अनुरोध भारद्वाज
Jul 12, 2024, 07:55 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
बरेली में घायल गर्भवती कछुआ की अनूठी सर्जरी, वैज्ञानिकों ने ब्लाउज हुक-गोंद से जोड़ दिया दुर्घटना में क्षतिग्रस्त कवच
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बरेली। सनातन समाज में जीव-जंतुओं के प्रति अनुराग एवं सेवा का लंबा इतिहास दर्ज है। बदायूं और बरेली के जीव प्रेमियों के सेवाकार्य से इसमें एक अध्याय और जुड़ गया है। दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल एक गर्भवती कछुआ को नया जीवन मिला है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिकों ने जख्मी कछुआ की कुछ इस तरह की सफल सर्जरी करके दिखा दी है कि जानकार कोई भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएगा। वैज्ञानिक टीम ने एनेस्थीसिया के प्रयोग के बाद सुपर ग्लू, ब्लाउज हुक का स्टेपलर की मदद से घायल कछुआ का अनूठे ढंग से कवच जोड़ दिया। सफल ऑपरेशन के बाद मादा जीव स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रही है और यहां का हर सनातनी उसके दीर्घ जीवन की कामना कर रहा है।

यूपी में बदायूं के रहने वाले वन्य जीव प्रेमी विक्रेन्द्र शर्मा को जख्मी कछुआ सड़क किनारे मिला था। देखकर लगता था कि किसी वाहन ने कुचल दिया था और हादसे में उसका कवच काफी ज्यादा टूट गया था। विकेन्द्र शर्मा ने वन विभाग के अफसरों को इसकी जानकारी दी तो विभागीय टीम मदद में उतर गई। तुरंत ही घायल कछुआ को इलाज के बरेली स्थित पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान लाया गया। वैज्ञानिक जांच में पता लगा कि घायल कछुआ संरक्षित जाति फ्लैपशेल से जुड़ा है, जिनकी संख्या दिनोंदिन कम हो रही है। इस वजह से भारतीय फ्लैपशेल कछुआ इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड बुक में सूचीबद्ध है। यह काफी दुर्लभ होता है।

एक्सरे में यह जानकारी भी सामने आई कि वह मादा है और उसके गर्भ में 7 अंडे हैं। जीव की जान बचाने के लिए उसका आवरण (खोल) को जोड़ा जाना जरूरी थी, क्योंकि यही कवच कछुआ को नमी देता है और ताप नियंत्रित करता है।  वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत पावड़े, डॉ. कमलेश कुमार के नेतृत्व में संस्थान की टीम कछुआ के इलाज में जुट गई। बगैर उसको बेहोश किए शल्य क्रिया संभव नहीं थी, तो वैज्ञानिक टीम ने सर्जरी में एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया। वैज्ञानिकों के अनुसार, कछुआ का आवरण बहुत सख्त होने की वजह से उसके टूटे हुए हिस्से को केवल सिलाई करके ही जोड़ा जा सकता था।

डॉ. पावड़े ने मीडिया को बताया कि कछुए की हालत नाजुक होने से खोल को ऑर्थो ड्रिल करके सिलाई करना कठिन था। ऐसे में उसकी जान बचाना और मुश्किल था। टीम ने पहले उसके कवच को जोड़ने के लिए ब्लाउज हुक का उपयोग किया। फिर सुपर ग्लू भी प्रयोग में लिया गया। आखिर में कवच के टूटे हिस्सों को जोड़ने के लिए ऑर्थो सर्जिकल पिन लगाई गईं। कवच को मजबूती से जोड़ने के लिए सर्जिकल पिन की सीरीज बनाई गई और उन्हें जोड़ने के लिए स्टेपलर काम में लिया गया। कई सर्जरी के दौरान एक वैज्ञानिक हाथ भी जख्मी हो गया, लेकिन टीम की मेहनत रंग लाई। घंटे की शल्य क्रिया आखिरकार सफल साबित हुई। उसे नया जीवन मिला।

सफल शल्यक्रिया के बाद कछुआ को बदायूं के जीव पुनर्वास केन्द्र में पहुंचा दिया गया है। कछुआ के स्वास्थ्य को लेकर तेजी से अच्छे संकेत मिल रहे हैं। वन विभाग की टीम उसकी निगरानी कर रही है। बरेली की प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) दीक्षा भंडारी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि घायल कछुआ जब आईवीआरआई लाया गया, तब उसकी हालत बहुत खराब थी। संस्थान की वैज्ञानिक टीम ने उसकी अनूठे ढंग से सफल सर्जरी करके दिखाई है। सभी उसके पूरी तरह स्वस्थ्य होने की प्रार्थना कर रहे हैं।

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