राजस्थान के रेगिस्तान में जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है। इन्हीं चुनौतियों के बीच यहां की महिलाएं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से स्वावलंबन की नई कहानी लिख रही हैं। ऐसी सफल कहानी की एक किरदार हैं रूमा देवी। ये ग्रामीण विकास चेतना संस्था की अध्यक्ष हैं। यह संस्था राजस्थान में काम करती है। संस्था से जुड़ी महिलाएं 70 से अधिक सजावटी सामान और कढ़ाई के 30 डिजाइन बनाती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर काम करने के लिए ‘रूमा देवी फाउंडेशन’ बनाया गया है। इसके माध्यम से छात्राओं को छात्रवृत्ति, लड़कियों के लिए इनडोर स्टेडियम, वाणी उत्सव और गांव की महिलाओं के लिए डिजिटल साक्षरता पर काम किया जा रहा है।
रूमा देवी ने 10 महिलाओं के साथ इस यात्रा की शुरुआत की। आज 30,000 से अधिक महिलाएं सक्रिय रूप से उनके साथ जुड़ी हुई हैं। लाखों महिलाएं अप्रत्यक्ष रूप से उनके संगठन से प्रेरणा लेकर स्वरोजगार कर रही हैं। रूमा देवी ने 2008 में बैग बनाने से काम की शुरुआत की। वे कहती हैं, ‘‘जो काम हाथ से हो सकता था, उसे तो पूरा कर लेती थी लेकिन सिलाई मशीन नहीं होने से काम बाधित होता था। तब दिमाग में आया कि क्यों नहीं अपने पड़ोस की बहनों से बात करूं। इसके बाद हम 10 महिलाओं ने मिलकर एक स्वयं सहायता समूह बनाया।
सबने 100-100 रुपए इकट्ठा करके एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी। इससे काम आगे बढ़ा।’’इसके बाद रूमा सफलता ही सीढ़ियां चढ़ती गईं। बाड़मेर की रहने वालीं रूमा देवी हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दे चुकी हैं। नारी शक्ति से सम्मानित रूमा का शुरुआती जीवन काफी संघर्ष वाला रहा। रुमा बताती हैं, ‘‘माताजी का स्वर्गवास हो जाने के बाद पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया। इस बीच छोटी उम्र में ही मेरी भी शादी हो गई। उपचार के अभाव में मैं अपने पहले बच्चे को बचा नहीं पाई। उसके बाद मैं पूरी तरह से टूट गई। उस समय मुझे लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे कि मेरा मन लग जाए। इस बीच मैंने दस्तकारी का काम शुरू किया। उसके बाद स्वयं सहायता समूह बनाया।’’
रूमा आज एक सफल उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इससे पहले उनके सामने समस्याएं कम नहीं थीं। वे महिलाएं, जो काम तो करना चाहती हैं लेकिन हौसला नहीं जुटा पाती हैं, उनके लिए रूमा कहती हैं कि देखिए मेरे पास न तो उच्च शिक्षा थी और न ही किसी प्रकार के संसाधन थे। यदि कुछ था तो काम का जुनून और लगन। मेरा मानना है कि हम सब में कोई न कोई हुनर जरूर है। तो क्यों न उस हुनर के जरिए आगे बढ़ें और स्वावलंबी बनें। हर इंसान को सफलता के लिए अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है, बस उसे अपने सपनों पर डटे रहने की जरूरत होती है। अगर खुद पर विश्वास है तो अड़े रहें-खड़े रहें।
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