लाल आतंक का हो रहा अंत
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लाल आतंक का हो रहा अंत

सन् 2010 की तुलना में 2021 में नक्सली हमलों में एक चौथाई से भी अधिक की कमी दर्ज हुई। 2010 में जहां 69 जिले नक्सल प्रभावित थे, वे 46 तक सिमटे। नक्सली हमलों में सुरक्षाबलों को होने वाली हानि भी 71 प्रतिशत तक कम हुई

by राजीव रंजन प्रसाद
May 3, 2024, 04:08 pm IST
in भारत, विश्लेषण
बीते दिनो बस्तर संभाग के अंकेर जिलें में नक्सल विरोधी अभियान में 29 नक्सली मारे गए थे

बीते दिनो बस्तर संभाग के अंकेर जिलें में नक्सल विरोधी अभियान में 29 नक्सली मारे गए थे

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देश की आंतरिक सुरक्षा जितना संवेदनशील विषय है, इसे उतना ही कम महत्व दिया गया। विभाजनकारी ताकतें पूरे दल-बल से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दरारों को इस मंशा से चौड़ा करने में जुटी हैं कि एक भी धागा तबीयत से खींचा, तो पूरी पोशाक उधड़ सकती है। रक्षा मंत्रालय की 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट में आंतरिक सुरक्षा को पारिभाषित करते हुए कहा गया है, ‘‘भारत में आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों को मोटे तौर पर चार खतरों के रूप में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है- जम्मू-कश्मीर में सीमापार से आतंकवाद, पूर्वोत्तर में आतंकवाद, कुछ राज्यों में वामपंथी अनीतिवाद तथा आंतरिक इलाकों में आतंकवाद।’’

यह वर्गीकरण स्पष्ट है तथा मोटे तौर पर देश की आंतरिक सुरक्षा पर विद्यमान खतरों को सामने लाता है। माओवाद तो घोषित तौर पर देश की सबसे बड़ी आंतरिक समस्या है। इनका मूल उद्देश्य लालकिले पर लाल झंडा फहराना है। इनका लक्ष्य राजनीतिक है और लड़ाई पूरी तरह गुरिल्ला या छापामार है। देश के संसाधन और वन युक्त क्षेत्र गुरिल्ला युद्ध के लिए सर्वश्रेष्ठ होते हैं। अत: माओवादियों ने पहले इन्हीं दायरों से अपनी गतिविधियों को संचालित किया। 5 वर्ष पहले तक यह स्थिति थी कि देश का एक बड़ा भूभाग ‘लाल गलियारा’ के खतरे को महसूस करने लगा था।

आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा नक्सलवाद

वाम-अतिवाद को हमेशा ‘क्रांति’ के निहितार्थ में ढांप-छिपा कर प्रतिपादित किया जाता रहा है। इसलिए इस नैरेटिव को तोड़ने और इसके विरुद्ध लड़ाई में लंबा समय लग रहा है। एक बार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘‘नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है।’’ लेकिन खतरे की पहचान करना एक बात है और उसके निराकरण का प्रयास अलग तरह की राजनैतिक इच्छाशक्ति की मांग करता है।

वाम-अतिवाद ने कई दशक तक निर्ममता से जल-जंगल-जमीन के लिए संघर्ष छेड़ने के नाम पर इनके वास्तविक हकदारों यानी वनवासियों की हत्या की, घात लगाकर सुरक्षाबलों को निशाना बनाया। वामपंथी बौद्धिक वर्ग ने, जिसकी पकड़ मीडिया संस्थानों, शिक्षण संस्थानों सहित नाटक-फिल्म जैसे क्षेत्रों में तो थी ही, कानूनी पैतरों का भी जमकर प्रयोग किया और अब तक सफल प्रतीत हो रहा था। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नक्सल विरोधी प्रयासों का असर यह है कि जमीनी स्तर पर परिणाम दिखने लगे हैं। अब स्थिति निरंतर बदल रही है और कथित लाल गलियारा सिकुड़ता जा रहा है।

एक समय देश में 135 नक्सल प्रभावित जिले थे, जो अब लगभग 50 रह गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की 2024 की रिपोर्ट में देश के अति नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में भी कमी आई है। 2012 में देश के 25 जिले अति नक्सल प्रभावित थे, जो घटकर 12 रह गए हैं। इसका श्रेय केंद्र सरकार की नक्सल विरोधी नीति को देना चाहिए।

विकासोन्मुखी कार्यों के साथ सटीक सैन्य कार्रवाइयों ने अनेक स्थानों से माओवादियों के पैर उखाड़ दिए हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ और झारखंड के कतिपय क्षेत्र अब भी माओवाद की विभीषिका को झेल रहे हैं। इनके सफाए में भले ही समय लग रहा है, लेकिन नक्सली चाह कर भी बस्तर या झारखंड के नक्सली झीरम घाटी जैसी घटना की पुनरावृत्ति नहीं कर सके हैं। बीते 4-5 वर्ष में उनकी सभी गतिविधियां केवल अपने अस्तित्व को बचाने की कोशिश भर नजर आती हैं।

राजनीतिक इच्छाशक्ति

केंद्र सरकार ने त्रिआयामी रणनीति के तहत वाम अतिवाद पर लगाम लगाने की कोशिश की है। इसमें सटीक रणनीति, केंद्र-राज्य के बीच बेहतर समन्वय और विकास के माध्यम से जनभागीदारी को सुनिश्चित करना शामिल है। ये तीनों कड़ियां आपस में इस तरह गुथी हुई हैं कि एक सूत्र भी ढीला पड़ जाए तो इसका असर समूचे प्रयास पर पड़ सकता है। यही कारण है कि अमित शाह ने सैन्य बलों का मनोबल बढ़ाने के लिए कदम उठाए, उन्हें बेहतर हथियार और आधुनिक तकनीकें उपलब्ध कराने के साथ निरंतर नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठकें भी कीं और कई विकास परियोजनाओं को गति प्रदान कर राज्य की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया। इस कारण नक्सली इलाकों में तेजी से सड़कों, आधारभूत संरचनाओं और संचार का विकास हुआ है। इसे देखते हुए ही गृह मंत्री ने तीन वर्ष में देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है।

केंद्र की इच्छाशक्ति को वाम-अतिवादियों पर लगाम लगाने की रणनीति से समझा जा सकता है। नक्सल समस्या की जड़ तक पहुंचने के बाद सरकार ने आक्रामक नीति अपनाई और धीरे-धीरे नक्सल प्रभावित राज्यों में सैन्य उपस्थिति बढ़ाई। 2019 से लेकर अब तक माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में बढ़त बनाने के लिए सुरक्षाबलों के शिविर स्थापित किए गए। सुरक्षाबलों को नई तकनीक और आधुनिक हथियार के अलावा उन्हें हेलिकॉप्टर उपलब्ध कराए गए। सरकार ने आवश्यकतानुसार एमएचए एयर विंग में अनेक पायलट्स, इंजीनियर की नियुक्ति, रात में हेलिकॉप्टर उतारने के लिए हेलिपैड बनाने हेतु सीआरपीएफ को विशेष निधि के अलावा अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं। आर्थिक रूप से लाल-आतंक की कमर तोड़ने के लिए भी सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं।

नक्सलियों को बड़ा झटका तो नोटबंदी के समय ही लगा था। चूंकि उनका पूरा तंत्र ‘कैश इकोनॉमी’ पर निर्भर है, इसलिए दूसरा झटका तब लगा, जब सरकार ने 2,000 रुपये के नोट बंद कर दिए। इसके अलावा भी नक्सल अर्थतंत्र को तोड़ने के सतत प्रयास किए गए हैं। अब तक राज्यों द्वारा करोड़ों की संपत्ति जब्त की गई है, जो वाम-अतिवाद को पोषित करने के कार्य में लगाई जा रही थी। राज्य सरकारों के साथ बेहतर समन्वय के बिना केंद्र के लिए यह लड़ाई अकेले संभव नहीं थी। केंद्र ने बिना किसी भेदभाव नक्सल प्रभावित राज्यों को सीआरपीएफ, हेलिकॉप्टर, प्रशिक्षण, राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए धन, उपकरण, हथियार, खुफिया जानकारी, सशक्त पुलिस चौकियों के निर्माण में मदद की है।

बदल रही सोच

आम धारणा है कि वामपंथी उग्रवाद इसलिए है, क्योंकि विकास नहीं है। सच यह है कि जहां भी माओवादियों ने अपने आधार क्षेत्र बनाए, वहां जान-बूझकर उन्होंने सरकारी संरचनाओं को नुकसान पहुंचाया है। नक्सलियों ने स्कूल तोड़े, पुल ढहाए और विकास कार्य में लगे ठेकेदारों के वाहन जलाए। इसलिए हमें शहरी नक्सलियों की कार्यशैली को भी समझना होगा, जो जान-बूझकर विकास परियोजना का विरोध करते हैं या बार-बार आंदोलन कर काम को इतना धीमा कर देते हैं कि उसकी लागत कई गुना बढ़ जाती है।

यह देश को आर्थिक चोट पहुंचाने का उनका तरीका है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उस विमर्श को तोड़ने का निर्णय लिया गया, जिसमें कहा जाता है कि विकास का मतलब है जल-जंगल या जमीन से पलायन। जब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गरीब कल्याण की योजनाओं का प्रसार हुआ तो लोगों की सोच भी बदली। वे मानने लगे कि सरकार उनका में हित सोचती है न कि माओवादी।

सरकार द्वारा तीन स्तरों पर किए जा रहे कार्यों के सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं। वाम-उग्रवादियों का आधार इलाका तो तेजी से सिमट ही रहा है, नक्सली घटनाओं और गुरिल्ला हमलों में भी काफी कमी आई है। 2010 के मुकाबले 2021 में एक चौथाई से भी कम नक्सली हमले हुए। 2010 में 2,213 नक्सली हमले हुए थे, जो 2021 में घटकर मात्र 509 रह गए। इसी तरह, 2010 में 69 जिले नक्सल प्रभावित थे, जो 2021 में 46 तक सिमट गए हैं। नक्सलियों पर नकेल से जनहानि भी रुकी है। 2010 में जहां माओवादी हमले में 1,005 लोग मारे गए थे, वहीं 2021 में यह संख्या मात्र 147 रही।

यदि नक्सल विरोधी अभियान को दो हिस्सों में बांटें तो स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। मई 2006 से अप्रैल 2014 और मई 2014 से मई 2022 के बीच नक्सली हिंसा में 50 प्रतिशत, मौतों में 66 प्रतिशत और सैन्य बलों को होने वाली क्षति में 71 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही, इस दौरान आश्चर्यजनक रूप से आत्मसर्पण करने वाले माओवादियों की संख्या में 140 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो लगातार जारी है। यह आंकड़ा इस बात का द्योतक है कि अब लाल आतंकवाद का तिलिस्म टूटने लगा है।

उपरोक्त आंकड़ों में 2022-23 तक के अध्ययन शामिल हैं। इस समग्र विवेचना से स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने वाम-अतिवाद को निर्मूल करने में बड़ी भूमिका निभाई है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि प्रबल इच्छाशक्ति से जटिल से जटिल समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

यह सुखद स्थिति है कि शहरी माओवादी नेटवर्क को चिह्नित करने और उन्हें कानून की चौखट पर खड़ा करने में भी सरकार को सहायता मिली है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि शहरी माओवादियों की गिरफ्तारियां भीमा कोरेगांव घटना की साजिश रचने के आरोप की जांच के दौरान हुई हैं। अभी तक की जानकारी के अनुसार, कश्मीर से बस्तर तक आजादी मांगने वाला गिरोह देश में अस्थिरता का वातावरण निर्मित करना चाहता है, जिससे अलगाववाद के उनके मंसूबे सफल हो सकें।

उपसंहार में यह जोड़ना भी उचित होगा कि आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर सरकार को महत्वपूर्ण, परंतु आंशिक सफलता हासिल हुई है। हालांकि आगे की राह कठिन है। नक्सल विरोधी अभियान में एक छोटी-सी चूक भी भारी पड़ सकती है। इसलिए यह आवश्यक है कि सैन्य कार्रवाई को सटीक और धारदार बनाने के साथ सरकार को देश की आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने के लिए भी लगातार प्रयास करते रहना होगा।

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