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सन्देशखाली : टीएमसी का तालिबानी तंत्र

सन्देशखाली की घटनाओं को लेकर पूरा देश शर्मसार है, परन्तु लगता है कि शायद सत्ताधारियों की आँखों का पानी सूख चुका है

by राकेश सैन
Feb 24, 2024, 06:24 pm IST
in विश्लेषण
प्रदर्शन करती महिलाएं

प्रदर्शन करती महिलाएं

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पश्चिम बंगाल के उत्तर परगना जिले के सन्देशखाली से जिस तरह के समाचार आ रहे हैं उससे एक बार तो सन्देह होता है कि क्या यह वही ‘आमार शोनार बांग्ला’ भूमि है जहां कभी रविन्द्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानन्द जी जैसी पुण्यात्माओं ने जन्म लिया। बंगाल की प्रगतिशीलता के बारे कहा जाता है कि जो बात देशवासी आज सोचता है ‘बांग्ला मानुस’ उसे वर्षों पहले सोच चुका होता है। माँ दुर्गा की पावन धरा बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा महिलाओं पर भीषण अत्याचार के जो समाचार वहां से आ रहे हैं उनको सुनकर तो एक बार तालिबानी और आईएस सरीखे आतंकी संगठन भी शर्मसार हो जाए। यह और भी शर्मनाक है कि ममता बनर्जी जैसी एक महिला मुख्यमंत्री के शासन में ये सबकुछ हो रहा है जो अपने आप को बंगाल की शेरनी कहलाना ज्यादा पसन्द करती हैं।

बीते कुछ दिनों से सन्देशखाली हिंसा की आग में झुलस रहा है। यहां का पूरा मामला प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के बाद लोगों के सामने आया है। पिछले माह 5 जनवरी को निदेशालय के अधिकारी राशन भ्रष्टाचार मामले में सन्देशखाली के सरबेडिय़ा में तृणमूल नेता शेख शाहजहां से पूछताछ करने पहुंचे। सत्ताधारी दल के कार्यकताओं की मदद से न सिर्फ उनका नेता शाहजहां शेख फरार हो जाने में सफल रहा, बल्कि इस दौरान सरकारी अधिकारियों पर हमले भी किए गए। उसकी फरारी के बाद उन स्थानीय लोगों ने अपनी आवाज तेज कर दी जो उससे पीडि़त थे। गांव के लोग शेख शाहजहां और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल हो रही है। यहां की पीडि़त अनुसूचित जाति और आदिवासी महिलाओं की बातें हर किसी को अन्दर तक झकझोरने वाली हैं। इन महिलाओं ने वहां के तृणमूल नेता शेख शाहजहां और उनके साथियों पर यौन उत्पीड़न व जमीन हड़पने के आरोप लगाये। आक्रोशित महिलाओं और लोगों ने शाहजहां के करीबी नेता शिबू हाजरा व उत्तम सरदार के खेत और मुर्गीखाने व घरों में आग भी लगा दी।

आरोप है कि स्थान गांव के लोगों की जमीन छीनकर उसपर अवैध तरीके से यह मुर्गीखाना बनाया गया है। ये कई तरह के अवैध कार्यों का केन्द्र भी था। महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग व कई राजनीतिक दलों के तथ्यान्वेषी दलों के सामने पीड़ित महिलाओं ने जो-जो बताया उनको कहने और लिखने में भी शर्म महसूस हो रही है। राज्य के 24 उत्तरी परगना जिले में हिंसा को लेकर बंगाल के राज्यपाल भी राज्य के कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर चुके हैं। राज्यपाल सीवी आनन्द बोस ने सन्देशखाली में अशान्त क्षेत्रों का दौरा किया और तृणमूल कांग्रेस के फरार नेता शेख शाहजहां और उसके साथियों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला प्रदर्शनकारियों से बात की। इस दौरान राज्यपाल ने महिलाओं को आश्वासन दिया कि उनकी कलाई पर राखी बान्धने वाली महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए पूरी सहायता की जाएगी। यहां महिलाओं को कहते सुना गया कि वह अपने लिए शान्ति और सुरक्षा चाहती हैं, वह और प्रताड़ना नहीं झेल सकती हैं। दौरे के बाद राज्यपाल ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने जो देखा वह भयावह, स्तब्ध करने वाला और उनकी अन्र्तात्मा को हिला देने वाला था।

परेशान करने वाली बात है कि सन्देशखाली की घटनाओं को लेकर पूरा देश शर्मसार है, परन्तु लगता है कि शायद सत्ताधारियों की आँखों का पानी सूख चुका है। लाख बदनामी झेलने और कलकत्ता उच्च न्यायालय की फटकार के बाद भी वहां की सरकार इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वर्तमान के नरकासुर शाहजहां को गिरफ्तार नहीं कर पाई। अपना संवैधानिक दायित्व निभाने की बजाय ममता बनर्जी इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को भी खींच लाई हैं और इन संगठनों को लेकर तरह-तरह के उपहासपूर्ण आरोप लगा रही हैं। केवल सत्ताधारी ही क्यों अन्र्तात्मा उन संगठनों की भी मर चुकी दिखती हैं, जो कल तक मणिपुर में हुई इसी तरह की घटनाओं को लेकर बीच चौराहों पर छाती पीट रहे थे और महिला सम्मान की ओट में अपने राजनीतिक हित साध रहे थे। ठीक ही कहा गया है कि महिला सम्मान में राजनीतिक लाभ हानि देख कर मोमबत्तियां फूकने या बुझाने वाले असल में उसी स्तर के अपराधी हैं जितना कि उत्पीड़न करने वाले दोषी।

एक बार लक्ष्मीजी ने नारायण से पूछा कि भगवन आपने एक युग में तो मरणासन्न जटायु नामक मुर्दाखोर गिद्ध के अपने हाथों से जख्म धोए और मरने पर अन्तिम संस्कार तक किया और दूसरे युग में शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह जैसे पुण्यात्मा को पीने के लिए जल तक नहीं दिया। इस पर श्रीहरि कहते हैं कि गिद्धराज जटायु को मालूम था कि वह रावण से नहीं जीत पाएगा, परन्तु इसके बावजूद वह एक महिला सीता को बचाने के लिए दशानन से भिड़ गया। दूसरी ओर कौरव सभा में अधिकार संपन्न व शस्त्रों से सुसज्जित होने के बाद भी गंगापुत्र भीष्म द्रोपदी जैसी महिला के चीरहरण पर मौन रहे, इसीलिए मैंने उसे पानी देने लायक भी नहीं समझा और खगराज जटायु का तर्पण भी किया। आज यह तय ममता दीदी को करना है कि भविष्य में वे पक्षीराज जटायु की श्रेणी में अपना नाम लिखवाना चाहेंगी या कौरव शिरोमणि भीष्म की परम्परा में। चाहे लोकतन्त्र व हिंसा को लेकर तृणमूल कांग्रेस सरकार का विवादित अतीत रहा है, परन्तु महिला सम्मान की खातिर तो उन्हें अपने समस्त राजनीतिक, साम्प्रदायिक व वैचारिक पूर्वाग्रह त्यागने ही होंगे और सन्देशखाली के आरोपियों को सींखचों के पीछे पहुंचाना ही होगा। यही संवैधानिक मर्यादा व न्याय की मांग है।

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