दिल्ली के मेहरौली में आशिक अल्लाह दरगाह और बाबा फरीद की चिल्लागाह नाम की दरगाह स्थित है। बताया जाता है कि इसे करीब 707 वर्ष पहले 1317 ईस्वी में बनाया गया था। अब इसकी सुरक्षा को लेकर मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट कथित दरगाह की सुरक्षा करने को लेकर निर्देश दे।
ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई है, जिसमें 8 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने दो टूक कहा था कि हमारे देश में पीर, दरगाह, मंदिर बहुत हो गए हैं। संरक्षित स्मारकों को छोड़कर वन क्षेत्र या वन भूमि पर किसी भी तरह के निर्माण को अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने ऐसे ढांचों के लिए किसी भी विशेष निर्देश को पारित करने से इनकार कर दिया था।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिकारियों के बयान के आधार पर याचिका को खारिज करते हुए फैसला दिया था कि केंद्रीय या राज्य प्राधिकरण द्वारा घोषित किसी भी संरक्षित स्मारक या राष्ट्रीय स्मारक को ध्वस्त नहीं किया जाएगा। 8 फरवरी के अपने फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने वनों को दिल्ली का फेफड़ा और प्रदूषण से बचाने वाला करार दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने धार्मिक संरचना के नाम पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण हटाने की बात कही थी।
क्या कहा गया है याचिका में
गौरतलब है कि मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर यातिका में कहा गया है कि विवादित आदेश धार्मिक और गैर धार्मिक संरचनाओं की सुरक्षा करने में विफल रहा है। मुस्लिमों का आरोप है कि दिल्ली हाई कोर्ट को ये समझ नहीं आ रहा है कि ये पुराने ढांचे सदियों से इस स्थान पर मौजूद हैं और ये अतिक्रमण नहीं हैं। इन ढांचों को प्राचीन स्मारक या पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम-1958 के तहत कानूनी संरक्षण का हक मिलना चाहिए।
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याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वो अधिकारियों को आशिक अल्लाह दरगाह और उसके आसपास लगाए गए बैरिकेड्स को हटाने का आदेश दे, ताकि दरगाह के रहनुमा आकर वहां इबादत कर सकें।
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