भारत के प्राचीन महाकाव्य रामायण ने दक्षिण पूर्व एशिया की संस्कृतियों पर गहरा प्रभाव डाला। कह सकते हैं कि इससे इस क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर भारतीयता की झलक दिखती है। आसियान के दस में सात देशों-म्यांमार, लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड, मलेशिया, ब्रूनेई और इंडोनेशिय-पर भारत का सांस्कृतिक प्रभाव दिखता है
विश्व विख्यात महाकाव्य रामायण की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी। महर्षि वाल्मीकि ने इसे त्रेतायुग में लिखा था। कहते है, महर्षि स्वयं रामायण की घटनाओं के साक्षी थे। बाद की शताब्दियों में इस महाकाव्य को पूरे एशिया महाद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप में कई रूपों में लिखा गया है।
रामायण की सार्वभौमिक प्रासंगिकता
महात्मा गांधी ने कहा था-‘‘रामनाम उन लोगों के लिए है जिनका हृदय शुद्ध है और जो पवित्रता प्राप्त करना चाहते हैं, पवित्र बने रहना चाहते हैं।’’ रामायण दुर्लभ साहित्यिक कृतियों में से एक है जो शाश्वत रूप से प्रासंगिक और उपयोगी है। रामायण में चित्रित विभिन्न परिस्थितियां उन स्थितियों से बहुत मिलती हैं जो आमतौर पर हमारे जीवन में घटित होती हैं और इसलिए पूरी मानव जाति से सरोकार रखती हैं।
भारत के दो प्राचीन संस्कृत महाकाव्यों, रामायण और महाभारत ने दक्षिण पूर्व एशिया की संस्कृतियों पर गहरा प्रभाव डाला और इस क्षेत्र के बड़े हिस्से के भारतीयकरण में बड़ी भूमिका निभाई है। आसियान के दस में से कम से कम सात देशों म्यांमार, लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड, मलेशिया, ब्रूनेई और इंडोनेशिया पर भारतीय संपर्क के शुरुआती दिनों से ही हिंदू संस्कृति का प्रभाव पड़ा।
भारत में लिखे गए महाकाव्य रामायण ने एक हजार साल से भी पहले दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा की थी। कंबोडिया के पास ‘रीमकर’ और थाईलैंड के पास ‘रामकिएन’ थे। इंडोनेशियाई, मलय, वियतनामी, चीनी, कोरियाई, जापानी, मंगोलियाई, साइबेरियाई, तिब्बती, बर्मी, श्रीलंकाई, नेपाली, पाकिस्तानी, प्राचीन तुर्क, अरब और फारसियों के पास भी रामायण के अपने-अपने संस्करण थे। रामायण की कहानी म्यांमार में ‘यम वत्थु’ के रूप में पुन: रची गईथी।
प्राचीन समय में थाईलैंड की राजधानी को अजुध्या कहा जाता था, जिसका नाम श्रीराम की राजधानी अयोध्या पर पड़ा था। थाईलैंड का एक और प्राचीन शहर है लवपुरी, जिसका नाम राम के पुत्र लव के नाम पर रखा गया है। थाईलैंड में पिछले शाही राजा को ‘भूमिबल अतुल्यतेज राम नवम्’ कहा जाता था। लाओस देश का नाम राम के पुत्र लव के नाम पर रखा गया।
रामायण से प्रभावित होकर कई देशों ने संस्कृत नाम और हिंदू सांस्कृतिक प्रतीकों को अपनाया है। बर्मा का नाम भगवान ब्रह्मा के नाम पर रखा गया और वियतनाम का पुराना नाम चंपा है। सिंगापुर को उसके संस्कृत मूल के कारण ‘शेरों का शहर’ कहा जाता है। ब्रुनेई की राजधानी ‘बंदर श्रीभगवान’ है और इंडोनेशिया की राजधानी जया कर्ता (विजय का शहर, जिसे आज जकार्ता कहते हैं) है।
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में रामायण
रामकिएन (राम की महिमा) थाईलैंड के राष्ट्रीय महाकाव्यों में से एक है। इसका चित्रित प्रतिनिधित्व बैंकॉक के एमराल्ड बुद्ध मंदिर में दिखता है, वहां की कई मूर्तियां इसके पात्रों को दर्शाती हैं। थाई किक बॉक्सिंग खेल बाली और सुग्रीव के युद्ध कौशल पर आधारित है।
1967 से 1979 तक कंबोडिया भयंकर गुरिल्ला और गृहयुद्ध झेल रहा था। पोल पॉट के शासन के तहत लगभग 17 लाख कंबोडियाई नागरिकों को गुलाम बनाकर रखा गया या मार डाला गया। फिर भी रामायण परंपरा कंबोडिया में सबसे भयानक परिस्थितियों में भी जीवित रहने में कामयाब रही। कई एशियाई संस्कृतियों के लिए, यह एक कहानी से कहीं अधिक रही है। ‘फ्रा लाक फ्रा लैम’ रामायण का लाओ भाषा संस्करण है, जिसका शीर्षक लक्ष्मण और राम से आया है।
दक्षिण पूर्व एशिया में हनुमान जी की अद्भुत लोकप्रियता है। यहां के समाजों में वह एक देवता हैं। 1997 में दक्षिण पूर्व एशियाई खेलों में हनुमान शुभंकर के रूप में अपनाए गए थे।
दक्षिण पूर्व एशियाई भाषाओं में रामायण
कई एशियाई संस्कृतियों ने रामायण को अपनाया है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य राष्ट्रीय महाकाव्यों का निर्माण हुआ है। 9वीं शताब्दी में इंडोनेशिया में संस्कृत रामायण का अनुवाद ‘काकाविन’ नाम से हुआ था। यह बहुत कम बदलावों के साथ रामायण का एक विश्वसनीय प्रतिपादन है। ‘सेरात रामा’ रामायण का एक और इंडोनेशियाई संस्करण है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में, विष्णु ने राम (7वें अवतार) और बाद में बुद्ध (9वें अवतार) के रूप में अवतार लिया, इस प्रकार पहले के हिंदू ख्मेर महाकाव्य को स्वीकार करने, जारी रखने और जहां भी उनका विशाल साम्राज्य पहुंचा, वहां इसे फैलाने में सक्षम रहे। 10वीं सदी के बंटेसी श्रेई मंदिर और 12वीं सदी के अंगकोर वाट मंदिर में रामायण आधारित प्रस्तर रचनाएं हिंदू-बौद्ध समन्वय की प्रमाण हैं।
रामकिएन (राम की महिमा) थाईलैंड का लोकप्रिय राष्ट्रीय महाकाव्य है। इसकी मुख्य कथा रामायण के समान है, हालांकि कई पहलुओं को थाई संदर्भ में परिवर्तित किया गया है, जैसे कि कपड़े, हथियार, स्थलाकृति और प्रकृति के तत्व थाई शैली के हैं। इसमें हनुमान की विस्तारित भूमिका है। रामकिएन को बैंकॉक के वाट फ्रा गुफा मंदिर में एक विस्तृत चित्रण में देखा जा सकता है।
दक्षिण पूर्व एशिया में बाली (इंडोनेशिया) का रामकावाका, फिलीपींस का मराडिया लावाना और डारांगेन और कंबोडिया की रीमकर शामिल हैं। चीनी महाकाव्य ‘जर्नी टू द वेस्ट’ के पहलू भी रामायण से प्रेरित थे, विशेषकर इसका चरित्र सन वुकोंग, जिसके बारे में माना जाता है कि वह हनुमान पर आधारित था।
पश्चिम में रामायण
विल ड्यूरेंट (अमेरिकी इतिहासकार, 1885-1981) ने कहा था-‘‘हमारी नस्ल भारत से निकली है और संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी है। भारत हमारे दर्शन का जनक है, हमारे अधिकांश गणित का जनक है, बुद्ध के माध्यम से ईसाई मत में सन्निहित आदर्शों का जनक है, स्वशासन और लोकतंत्र के ग्राम समुदायों का जनक है। भारत माता कई मायनों में हम सभी की माता है।’’
हिंदू धर्म संस्कृत, योग, भगवद्गीता, शाकाहार और आयुर्वेद के रूप में आधुनिक पश्चिमी दुनिया को तेजी से प्रभावित कर रहा है। प्राचीनकाल में भी हिंदू धर्म ने पूर्व यूनानी और पूर्व रोमन इटरुस्कन सभ्यता को प्रभावित किया था। 700 वर्ष ईसा पूर्व के भित्तिचित्र और टेराकोटा चित्र रामायण के दृश्य दिखाते हैं।
महात्मा गांधी ने कहा था-
‘‘रामनाम उन लोगों के लिए है जिनका हृदय शुद्ध है और जो पवित्रता प्राप्त करना चाहते हैं, पवित्र बने रहना चाहते हैं।’’इंडोनेशियाई मुस्लिम श्री सुदर्शन –
‘‘यहां इंडोनेशिया में किसी मरने वाले की समाधि पर जावा की भाषा में महाभारत या रामायण की एक चौपाई लिखने का रिवाज है। हालांकि हम मुसलमान हैं, लेकिन राम और कृष्ण में गहन आस्था रखते हैं।’’जकार्ता के अभिनेता-
‘‘इस्लाम हमारा मजहब है। रामायण हमारी संस्कृति है।’’
ईश्वर पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है। मृतकों का दाह संस्कार, चिकित्सा, गणित, व्याकरण आदि जैसी अवधारणाएं हिंदू प्रभाव के कारण थीं। बाद में इटरुस्कन सभ्यता ने इन मूल्यों को ग्रीक और रोमन सभ्यताओं तक पहुंचाया, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ग्रीक और रोमन भाषाओं और बाद में जर्मन, फ्रेंच, स्कैंडिनेवियाई, स्लाविक भाषाओं जैसी कई यूरोपीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रचुर प्रभाव दिखता है।
मार्च 2005 में हाउस आफ कॉमन्स (लंदन) में पहली बार रामनवमी उत्सव मनाया गया। इसमें 240 लोगों ने भाग लिया। इसका आयोजन राज्य मंत्री टोनी मैकनल्टी ने किया था। उपस्थितों में कई समुदायों के नेता और बड़ी संख्या में सांसद शामिल थे। फ्रांसीसी भाषा में लिखित तथा एलेक्सिस मार्टिन और डेनियल ब्रिएरे द्वारा निर्मित ‘द मार्च आफ राम’ नाट्य अप्रैल 2007 में मॉन्ट्रियल, कनाडा में खूब चला था।
हिंदू स्वयंसेवक संघ, अमेरिका द्वारा 2006-07 में संयुक्त राज्य अमेरिका के बच्चों के लिए एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित की गई थी-‘कौन बनेगा रामायण एक्सपर्ट’। इसमें 3,000 बच्चों ने भाग लिया था। प्रश्नोत्तरी की तैयारी के दौरान, बच्चे रामायण से संबंधित प्रश्नों के उत्तर के लिए अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ बैठने लगे। इसने पीढ़ियों के बीच दूरी मिटा दी थी।
हिंदू जीवन शैली का उत्सव मनाने और एक रोमांचक दिन का हिस्सा बनने के लिए 16,000 से अधिक लोग सिलिकॉन वैली के एक कॉलेज में एकत्र हुए थे। इस एक दिवसीय भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम, हिन्दू संगम का उद्देश्य था हजारों वर्ष के दौरान हिंदू बौद्धिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक योगदान को प्रदर्शित करना। हिंदू स्वयंसेवक संघ द्वारा 40 से अधिक संगठनों के साथ मिलकर इसका आयोजन किया गया था।
नीदरलैंड्स का फोर्टिस बैंक ‘राम’ मुद्राओं को स्वीकारता है। वर्तमान में इसका उपयोग नीदरलैंड्स में लगभग 100 दुकानों में स्थानीय मुद्रा के साथ-साथ किया जाता है। एक ‘राम’ नोट का मूल्य 10 यूरो के बराबर है।
इस्लामी देशों में रामायण
राम का जीवन चरित्र इतना रोचक और प्रेरणादायक है कि न केवल हिंदू बल्कि अन्य मत-पंथों के मानने वाले भी इससे प्रभावित हैं। मलेशिया के ग्रंथ ‘हिकायत सेरी राम’ में, दशरथ पैगंबर आदम के परपोते बताए गए हैं। रावण को ब्रह्मा की बजाय ‘अल्लाह’ से वरदान मिलता है।
मलेशिया में मंत्री भगवान राम की पादुका ‘उरुसन सेरी पादुका’ के नाम पर पद की शपथ लेते हैं और राष्ट्रपति ‘उरुसन सेरी पादुका धूलि’ (राम की पादुका की धूल) के नाम पर पद की शपथ लेते हैं। मलेशिया में अगर कोई मस्जिद भी बनानी हो तो उसका सरकारी आदेश ‘उरुसन सेरी पादुका’ के नाम पर जारी किया जाता है। थिएटर और नृत्य पर इस्लाम में प्रतिबंध होने के बावजूद, मलेशिया और इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत पर आधारित नाटिकाएं होती हैं। दुनिया के सबसे बड़े इस्लामी देश इंडोनेशिया में अधिकांश विश्वविद्यालयों में रामायण और महाभारत अनिवार्य विषय हैं। महाभारत के इंडोनेशियाई संस्करण में, द्रौपदी का केवल एक पति था।
एक इंडोनेशियाई मुस्लिम श्री सुदर्शन वहां कला विभाग के निदेशक हैं। उन्होंने एक बार बताया था-‘‘यहां इंडोनेशिया में किसी मरने वाले की समाधि पर जावा की भाषा में महाभारत या रामायण की एक चौपाई लिखने का रिवाज है। हालांकि हम मुसलमान हैं, लेकिन राम और कृष्ण में गहन आस्था रखते हैं।’’
जकार्ता का सुल्तान अपने महल में रामायण-महाभारत पर आधारित कठपुतली नाट्य का दैनिक आयोजन कराता है। वहां इस पर सब्सिडी दी जाती है। इस असाधारण शो की खास बात यह है कि इसके सभी दो सौ कलाकार मुस्लिम हैं। जब इसके अभिनेताओं से पूछा गया कि वे इतनी भावना के साथ रामायण का प्रदर्शन कैसे करते हैं, तो उनका सहज उत्तर था, ‘‘इस्लाम हमारा मजहब है। रामायण हमारी संस्कृति है।’’
मध्य जावा जाने वालों को चांदनी से भरे मुक्ताकाश थिएटर में यह रामायण बैले प्रदर्शन जरूर देखना चाहिए। यह दो घंटे का प्रदर्शन शानदार प्रम्बानन मंदिर के आसपास शाम के शांतिपूर्ण माहौल में सप्ताह में कम से कम तीन बार प्रस्तुत किया जाता है। दक्षिणी फिलीपींस के मुसलमानों के बीच रामायण कथा कहने की एक परंपरा है ‘राजा मंगंदिरी’। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है वह विशाल आधुनिक मूर्तिकला, जिसमें कृष्ण और अर्जुन रथ पर बैठे दिखते हैं। गरुड़ इंडोनेशिया का राष्ट्रीय चिन्ह है। उनकी राष्ट्रीय विमान सेवा गरुड़ एयरलाइंस है। इंडोनेशियाई मुद्रा पर भगवान् गणेश अंकित हैं।
फारसी और अरबी रामायण
13वीं से19वीं शताब्दी के बीच, फारसी और मुगल सल्तनत ने हिंदू संस्कृति को इस्लामी कला और साहित्य में अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप16वीं शताब्दी में फारस (ईरान) से ‘दास्तान-ए-राम ओ सीता’ और ‘रज्मनामा’ जैसी रचनाएं सामने आईं। मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने रामायण का फारसी में अनुवाद किया।
फारसी में उपलब्ध अनेक रामायणों में से दो महत्वपूर्ण हैं; पहली, रामायण-ए-मसीह, जो शाहजहां और जहांगीर के समकालीन शेख सादुल्लाह मसीह पानीपती द्वारा रचित है। इसका प्रकाशन 1899 में मुंशी नवल किशोर प्रेस, लखनऊ से हुआ। दूसरी है वाल्मीकि रामायण, जो महाराजा रणजीत सिंह की सेना से जुड़े रहे एस. मोहर सिंह द्वारा लिखित है। इसे 1890 में गणेश प्रकाश प्रेस, लाहौर द्वारा प्रकाशित किया गया था।
राम सूर्य वंश से थे और ईरान के शाह मुहम्मद शाह पहलवी (1941-1979) खुद को गर्व से आर्य मिहिर (आर्यों के सूर्य) कहते थे। शाह ने खुद को प्राचीन ईरान के राजाओं के उत्तराधिकारी के रूप में देखा और 1971 में फारसी राजशाही के 2,500 साल पूरे होने पर एक भव्य उत्सव मनाया था।
हाल के वर्षों में अरबी भाषा में रामायण के खंडों पर आधारित कहानियों वाली एक संक्षिप्त पुस्तक प्रकाशित हुई थी। 18वीं शताब्दी में उर्दू रामायण की रचना की गई थी।
रामायण की ख्याति
अच्छाई और बुराई के बीच के शाश्वत युद्ध पर आधारित रामायण की कहानी समय और राष्ट्रीयता की कसौटी पर खरी उतरी है। हजारों वर्ष से, यह कथा भारत से ईरान, तिब्बत से थाईलैंड, कंबोडिया से चीन, जापान से जावा, मलेशिया से म्यांमार, श्रीलंका से साइबेरिया और इंडोनेशिया में बाली द्वीप तक लोगों के मनों पर हावी रही है। इन सभी देशों में स्थानीय संस्कृतियों ने दुनिया की किसी भी कहानी से अधिक, रामायण को साहित्यिक परंपराओं, कथात्मक एवं कलात्मक अभिव्यक्तियों और प्रदर्शन शैलियों की एक विशाल विविधता के साथ कला के एक प्रेरक समृद्ध स्रोत में बदल दिया है।
जब अस्सी के दशक में भारत में टीवी धारावाहिक रामायण का प्रसारण हुआ, तो यह आशातीत रूप से सफल रहा था, परिवार के सदस्य टेलीविजन से चिपके दिखते थे। माताएं अपने बच्चों को रामायण के आधार पर नैतिक और पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा देती थीं। कहते हैं, कश्मीर में भीषण जिहाद के उस दौर में भी उतने अंतराल के लिए जैसे अघोषित युद्धविराम हो जाता था।
रामकथा का श्रवण हमें सारे पापों से मुकत कर हमारे जीवन को एक दिशा देता है। इसलिए यह भारत की ही नहीं, पूरे विश्व की थाती है जिसे दुनिया के अनेक देशों में बड़ेश्रद्धा भाव से सदियों से संजोया गया है।
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