‘पाञ्चजन्य’ का ‘साबरमती संवाद’ कार्यक्रम आज गुजरात में अहमदाबाद स्थित उद्यमिता विकास संस्थान में हो रहा है। इसके चौथे चरण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकर शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने कहा कि हम लोग उद्यमिता संस्थान में हैं। गुजरात का संदर्भ उद्यमिता से है। जब गांधी से विदेश गए तो वहां उनका साथ देने के लिए पहले से ही वहां बहुत गुजराती थे। अंग्रेजों के जहाज से हमने जाना नहीं शुरू किया। हम पहले से जाते रहे हैं। तीन हजार साल पहले का भी इतिहास है।
सुनील आंबेकर ने कहा कि कई लोगों को लगता है कि भारत इसलिए गरीब हुआ क्योंकि हमारे पास अर्थव्यवस्था की समृद्धि के लिए जो चाहिए वह नहीं था, साइंस नहीं थी। ये सतत प्रक्रिया है। हम लोगों को पुरानी बातों के बारे ज्ञान होना जरूरी है। हमें इतिहास से सीखना जरूरी है। यदि मोबाइल हैक या हैंग हो गया तो काम नहीं करता। आपको समझ नहीं आता है, मेमोरी लॉस होने पर समझ नहीं आता है कि क्या करें। हर एक में यह परेशानी है, लेकिन जब किसी देश की मेमोरी लॉस हो जाए तो वह देश हैंग हो जाता है।
अपने देश में ऐसे बहुत लोग हैं, जिन्हें यह नहीं पता कि उन्हें कहां और कैसे जाना है इसको लेकर भ्रम है। हम क्या हैं, ये पता होना जरूरी है। इसलिए आज इसकी जरूरत है। मेमोरी लॉस को रिकवर करने की जरूरत है। हमारे नॉलेज को किसी ने दबाया, किसी ने समाप्त किया। इसलिए जरूरी है कि उस नॉलेज को जानें। नालंदा यूनिवर्सिटी के बारे में लोगों से पूछा कि वहां क्या पढ़ाया जाता था। वहां से कंटेंट लिया तो वहां वेद, रामायण ग्रंथ पढ़ाए जाते थे। इसके साथ ही इंटरप्राइजेज के कई कोर्स थे। रंग, हेयर स्टाइल, सीक्रेट एजेंसी के लिए चौर्यकर्म के लिए भी कोर्स, काष्ठ के कोर्स। वेद पढ़ने वाला भी यह कोर्स पढ़ता था। व्यक्ति डीप नॉलेज भी लेता था।
उन्होंने कहा कि हमारी शिक्षा पद्धति में इंटरप्राइजिंग का पूरा प्रभाव था। सबने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है। भारत में कृषि है, यह सही है, लेकिन भारत के लोगों को केवल कृषि ही आती थी ऐसा नहीं है। सही यह है कि हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेष हुनर था। गुमला में आज भी पारंपरिक स्टील मेकिंग जीवंत है।
सुनील आंबेकर ने कहा कि हमने गांवों में इंटरप्राइजिंग की खोज की। उनके यहां पीढ़ियों से काम हो रहा था। यूपी सरकार ने एक कार्यक्रम शुरू किया कि एक जिला एक उत्पाद। यह परंपरा हजारों वर्षो की है। मुगलों के समय इसे बहुत नुकसान हुआ। ब्रिटिश के समय मशीन ने इसे नुकसान पहुंचाया। ये लोग भी उतना ही स्वाधीनता सेनानी हैं, जिन्होंने वर्षों के आक्रमण के बाद वह स्किल पीढ़ी दर पीढ़ी बना रखी है। पत्थर के उद्योग को लें। अयोध्या में श्रीराम मंदिर बन रहा है। मंदिर बनाने में भी बहुत संघर्ष हुआ। ऐसे मंदिर जो हजारों साल चलें, इस तरह का निर्माण करने वाले लोग हमें गांवों में उपेक्षित मिले। ऐसे कारीगरों को एकत्र किया गया। भारत की पारंपरिक कुशलता से मंदिर का निर्माण हो रहा है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि नई जनरेशन के पास दो बड़े सवाल हैं – च्वाइस ऑफ कल्चर और च्वाइस ऑफ टेक्नोलॉजी। आप कैसे जीना चाहते हैं, यह तय होना चाहिए, यह कल्चर है। इसके बात तकनीक आती है। भारत विश्वगुरु तभी बनेगा जब आप अपने दिमाग से चलेंगे। यानी अपनी नॉलेज से चलेंगे। अवर कल्चर अवर टेक्नोलॉजी, इस पर ध्यान दें।
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