केरल में 4 जुलाई, 2010 को प्रोफेसर टी. जे. जोसेफ का दाहिना हाथ काट दिया गया था। यह घटना उस समय हुई थी जब प्रोफेसर जोसेफ एर्नाकुलम जिले के मुवाट्टुपुझा में एक चर्च में रविवार की प्रार्थना सभा में भाग लेने के बाद अपने परिवार के साथ घर लौट रहे थे। हमलावरों ने उनके वाहन को रुकवाया। इसके बाद उन्हें खींचकर बाहर निकाला और बेरहमी से पीटा। फिर मुख्य आरोपी सवाद ने उनका दाहिना हाथ काट दिया, जो अभी भी फरार है। दरअसल, हमलावर प्रोफेसर जोसेफ की हत्या करना चाहते थे, लेकिन किसी तरह उनकी जान बच गई थी। हमलावर इस बात से प्रोफेसर से खफा थे कि उन्होंने बीकॉम की सेमेस्टर परीक्षा के लिए तैयार प्रश्नपत्र में कथित मजहबी टिप्पणी की थी।
इस मामले में केरल में एनआईए की एक विशेष अदालत ने दोषी ठहराए गए छह जिहादियों में से तीन को 13 जुलाई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश अनिल के भास्कर ने साजिल, नासर और नजीब को मामले की सुनवाई के दूसरे चरण में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), भारतीय दंड संहिता और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत 12 अप्रैल को दोषी ठहराया था।
बता दें कि मुकदमे के पहले चरण में 10 जिहादियों को यूएपीए के साथ-साथ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और आईपीसी के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था, और तीन अन्य को अपराधियों को शरण देने का दोषी पाया गया था। तीनों को दोषी ठहराते हुए न्यायालय ने कहा था कि दूसरे आरोपी साजिल ने हमले में हिस्सा लिया था, जबकि मामले के मुख्य साजिशकर्ता तीसरे आरोपी नासर और पांचवें आरोपी नजीब ने ‘आतंकवादी करतूत’ की योजना बनाई थी लेकिन उसने इसमें हिस्सा नहीं लिया।
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि इस आतंकवादी कारनामे से देश और उसके नागरिकों को बहुत नुकसान हुआ। आतंकवाद को सभ्यता, सुरक्षा और मानवता के लिए छह सबसे गंभीर खतरों में से एक माना गया है। दोषियों की करतूत भारत की पंथनिपरेक्षता के ताने—बाने के लिए एक चुनौती है। इस असभ्य करतूत को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि नागरिकों को असामाजिक तत्वों के हाथों किसी भी प्रकार के भय या धमकी या खतरे का शिकार नहीं होने का मौलिक अधिकार है। ऐसी घटनाएं दुबारा न हों, इसलिए दोषियों को सजा देना बहुत ही आवश्यक है।
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