नेपाल में पिछले सप्ताह आए राजनीतिक भूचाल के फिलहाल थमने के आसार बनते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के एक बयान के बाद काठमांडु में बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी अब संभवत: रुक जाए और सरकार पद पर बनी रहे। पिछले सप्ताह हालत यह हो गई थी कि प्रचंड से इस्तीफा तक मांग लिया गया था। कारण बना उनका एक कार्यक्रम में दिया बयान जिसमें उन्होंने भारत के एक व्यवसायी प्रीतम सिंह को लेकर कहा कि उन्होंने उनके प्रधानमंत्री बनने में बड़ी मदद की थी। इसे विपक्ष ने संप्रभुता पर आंच मानते हुए संसद को जड़ कर दिया और विपक्षी नेता ओली ने प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग लिया। लेकिन कल प्रचंड ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अपने बयान पर माफी मांग ली।
दरअसल पिछले सप्ताह एक किताब—रोड्स टू द वैली—के लोकार्पण कार्यक्रम में प्रचंड ने कहा था कि प्रीतम सिंह एक बार उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए कड़ी मेहनत की थी। इसके लिए वह कई मौकों पर दिल्ली गए और यहां काठमांडू में भी कई दलों के नेताओं से बात की। प्रचंड का यह बयान विपक्षियों को बहुत चुभा। सीपीएन-यूएमएल सहित अन्य विपक्षी दलों का कहना था कि प्रधानमंत्री की ओर से ऐसा बयान आना नेपाल की संप्रभुता को आहत करने जैसा है। इसलिए उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए।
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल का देश के प्रतिष्ठित सिख व्यवसायी प्रीतम सिंह से पारिवारिक संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि वह भाषण देते हुए भावुक होकर अपने दोस्त प्रीतम सिंह से जुड़ी यादों में उतरते चले गए। उल्लेखनीय है कि नेपाल में 1950 के दशक से ट्रांस्पोर्ट के कारोबारी प्रीतम सिंह ने उनकी ऐसे वक्त पर मदद की थी जब उनकी बेटी ज्ञानू दहल का नई दिल्ली में कैंसर के आखिरी चरण में इलाज चल रहा था।
मामला तूल पकड़ गया। बात संसद के चलने तक पहुंच गई। विपक्षियों ने कहा कि ‘जब तक प्रचंड इस्तीफ़ा नहीं देंगे तब तक सदन नहीं चलने देंगे’। प्रचंड हैरान रह गए, उन्हें समझ नहीं आया कि आखिर उनकी बात में किस बिन्दु पर यह विरोध है। नैतिकता का सवाल किस जगह आता है। वह कौन सी गंभीर बात है कि मामला इस्तीफ़े तक जा पहुंचे!
उधर विपक्षी दलों का तर्क था कि अपनी सरकार को चलाने के लिए विदेश से समर्थन लेना अधीनता का रवैया दर्शाता है। नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल तथा माओवादी सेंटर में ऐसी सहमति हुई कि 5 जुलाई से सदन ठप पड़ गया।
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल का देश के प्रतिष्ठित सिख व्यवसायी प्रीतम सिंह से पारिवारिक संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि वह भाषण देते हुए भावुक होकर अपने दोस्त प्रीतम सिंह से जुड़ी यादों में उतरते चले गए। उल्लेखनीय है कि नेपाल में 1950 के दशक से ट्रांस्पोर्ट के कारोबारी प्रीतम सिंह ने उनकी ऐसे वक्त पर मदद की थी जब उनकी बेटी ज्ञानू दहल का नई दिल्ली में कैंसर के आखिरी चरण में इलाज चल रहा था।
बहरहाल अपने बयान से तूफान उठता देखकर, प्रधानमंत्री ने कहा है कि नेपाली संसद संप्रभु है और उन्हें वहां अपने विरुद्ध उठे सवालों का जवाब देने की अनुमति मिलनी चाहिए थी। लेकिन काठमांडु में तब भी उबाल उठा था जब पिछले महीने अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रचंड ने भारत-नेपाल सीमा पर जारी विवाद को हल करने का जो मार्ग सुझाया था। उनके उस बयान की भी बहुत आलोचना हुई थी। उस वक्त उन्होंने इसे ‘बांग्लादेश मॉडल’ की तर्ज पर हल करने की बात की थी। तब भी विपक्षी दलों ने संसद में इस पर आपत्ति जताई थी।
इसमें संदेह नहीं है कि माओवादी नेता, प्रधानमंत्री प्रचंड अपने बयानों के कारण विवादों से घिरे रहे हैं। गत सप्ताह भी बयान से ही बवंडर उठा था जो अब लगता है, थम जाएगा। प्रचंड ने कल माफी मांग ली है। ओली और उनकी पार्टी से अलग से बात भी हुई है। लगता है अब संसद की कार्यवाही आगे बढ़ेगी।
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