भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाहों के मामले पर सुनवाई करते हुए बहुत ही अजीब बात कही कि महिला एवं पुरुष का पता कभी भी जननांगों से नहीं लगाया जा सकता है, यह उससे कहीं अधिक जटिल मामला है। उनके इस कथन पर सोशल मीडिया पर शोर मच रहा है। एवं साथ ही कई ऐसे सामजिक संगठन चिंता व्यक्त कर रहे हैं, जो परिवार और समाज के लिए कार्य करते हैं।
यह कथन जितना संवेदनशील दिख रहा है, वह उतना संवेदनशील नहीं है। बल्कि यह महिलाओं के लिए बहुत ही अधिक घातक है। देखने में समावेशीकरण वाला यह वक्तव्य कहीं महिला विरोधी तो नहीं है, यह भी देखना होगा। क्योंकि पश्चिम में जो घटनाएं घट रही हैं, वह ऐसा ही सोचने के लिए बाध्य करती हैं। यद्यपि ऐसे लोगों से कोई विरोध नहीं होना चाहिए, जो महिला देह में पुरुष जैसा अनुभव करते हैं या पुरुष देह में महिला का अनुभव करते हैं, परन्तु यह भी सत्य ही है कि यह लोग न ही जैविक पुरुष हो सकते हैं और न ही जैविक महिला।
जो जैविक महिला की विशेषताएं हैं, वह महिला की रहेंगी और जो पुरुष की जैविक विशेषताएं हैं, वह पुरुष की ही रहेंगी, अत: उनके लिए अलग-अलग श्रेणी प्रदान की जा सकती हैं। जैसे ट्रांसमेन एवं ट्रांसवीमेन। पहचान की अस्मिता की लड़ाई में यह पहचान एकदम अलग है। जैसे अभी महिला एवं पुरुष की श्रेणियां हैं, वैसे ही ट्रांसमेन और ट्रांसवीमेन की श्रेणियां हो सकती हैं। जो भी पुरुष किसी भी प्रकार की सर्जरी करवाकर अपनी भावनाओं के आधार पर महिला बने हैं, वह जैविक रूप से पुरुष ही हैं। वह महिला नहीं हैं।
परन्तु उन्हें खेल में महिलाओं की श्रेणी चाहिए, उन्हें महिलाओं वाले प्रोडक्ट चाहिए विज्ञापन के लिए, उन्हें उस विमर्श में मुख्य स्थान चाहिए, जो महिलाओं के लिए है। कई समस्याएं मात्र महिलाओं की हैं, जिन्हें महिला ही अनुभव कर सकती है, कई प्रक्रियाएं ऐसी हैं, जिन्हें मात्र जैविक महिलाएं ही पूर्ण कर सकती हैं, परन्तु इनके विषय में बात की जाएगी उनके द्वारा जिन्हें अनुभव होता है कि वह महिलाएं हैं।
यद्यपि भारतीय विमर्श में भी गुणों के आधार पर स्त्रैण प्रकृति का निर्धारण होता है, परन्तु वह महिलाओं का स्थान नहीं लेते एवं ऐसे पुरुष स्वयं को महिला नहीं बताते। यह एक सहज प्रवृत्ति है, जो पुरुषों में हो सकती है, परन्तु यह कहना कि लिंग द्वारा महिला या पुरुष का निर्धारण नहीं होता, वह एकदम पृथक परिदृश्य है।
क्या कभी यह कल्पना की जा सकती है कि जैविक रूप से पुरुष परन्तु अनुभूति से महिला कहने वाला व्यक्ति महिलाओं के साथ वस्त्र भी बदलने लगेगा? वह उनके अंगों के साथ छेड़छाड़ भी करेगा और आपत्ति पर वह यह कह सकता है कि वह मन से एवं सर्जरी कराकर महिला ही तो है।
यह सब अभी भारत में अजनबी लगता है, परन्तु ऐसा नहीं है। ऐसा हो रहा है एवं महिलाओं के वस्त्रों में आदमियों की तस्वीरें एवं वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित होते रहते हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे उन्होंने स्त्रैण प्रकृति को न धारण करके स्वयं स्त्री बनने की ही होड़ लगा ली है, इससे यह स्वाभाविक प्रवृत्ति एक विकृति के रूप में सामने आ रही है।
परिवार निर्माण में एक पुरुष और महिला का होना अनिवार्य है
किसी भी परिवार के निर्माण में एक पुरुष और महिला का होना अनिवार्य है ही। बिना इनके परिवार नहीं हो सकता, ऐसा सभी धर्म एवं मतों में अवधारणा है और यही प्रकृति है। अत: समलैंगिक विवाह का इसी कारण विरोध है। हाँ, ट्रांस महिलाओं और सामान्य पुरुषों का विवाह अलग बात है। सर्जरी करवाकर महिला बने पुरुष, अर्थात पूर्ण सर्जरी करवाकर जिसमें जननांगों को बदलना एवं आतंरिक अंगों में भी आवश्यक सर्जरी करवाकर महिला बने पुरुषों का विवाह दूसरी बात है।
हारमोन के माध्यम से स्वयं को महिला होने का दावा करने वाले लोग एकदम अलग हैं। अभी हाल ही में केरल के एक ट्रांस कपल के बीच गर्भावस्था को लेकर बहुत शोर मचा था। यह मामला एकदम अलग था और प्रकृति की उसी व्यवस्था के समक्ष समर्पण था, जिसका विरोध वह लोग कर रहे थे।
पुरुष बनी महिला ने अपने उन आतंरिक अंगों के साथ छेड़छाड़ नहीं की थी, जो माँ बनने की प्रक्रियाओं को पूरा करने में सहायक थे। हालांकि पुरुष बनने के लिए वक्ष हटवा दिए थे। और हार्मोनल प्रक्रिया से होकर गुजर रहे थे। इस जोड़े में बहुत अजीब बात थी कि जो महिला के रूप में पैदा हुई थी उसने पुरुष का लिंग चुना और पुरुष होने के लिए चिकित्सीय प्रक्रिया से होकर गुजर रही थी और जिया लड़के के रूप में पैदा हुई थी और उसने लड़की होना चुना, इसके लिए ब्रेस्ट इम्प्लांट कराए थे।
अत: इस जोड़े ने अपने जननांगों में परिवर्तन कराकर वही प्रक्रिया चुनी, जिसे कथित रूप से तोड़े जाने का यह लोग दावा करते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि समलैंगिक विवाह और देह एवं लैंगिक पहचान में भ्रम यह दोनों दो भिन्न विषय हैं और इन्हें कैसे एक के रूप में जोड़कर देखा जा सकता है।
हाँ, जस्टिस चंद्रचूड़ के इस बयान ने उन खतरों की ओर अवश्य ध्यानाकर्षित किया है, जिनसे पश्चिम अभी दो चार हो रहा है और यह भारत में भी शीघ्र ही आएँगे क्योंकि भारत का कथित एलीट वर्ग पश्चिम की नक़ल सबसे पहले करता है।
क्या हैं खतरे?
जस्टिस चंद्रचूड़ के वक्तव्य ने जो कहा है, उसे पूरी तरह नहीं नकारा जा सकता है क्योंकि वह यदि पूरी तरह से सही नहीं है तो वह पूर्णतया गलत भी नहीं है। परन्तु जब यह विमर्श आगे बढ़ेगा तो जो समस्याएँ आएंगी उनके प्रति अभी से समाज को सजग होना पड़ेगा। ऐसे में पश्चिम में हो रही तमाम घटनाओं को ध्यान में रखना ही होगा।
अभी हाल ही में अमेरिका में नास्विले में एक शूटआउट हुआ था, अर्थात गोलीबारी। 28 मार्च 2023 को हुई इस गोलीबारी में 3 बच्चों सहित 6 लोगों की मृत्यु हो गयी थी। इस घटना को अंजाम देने वाला भी एक ट्रांसजेंडर था। अर्थात लिंग परिवर्तन कराने वाला। उसके दिल में अपने साथ हुए कथित भेदभाव के प्रति आक्रोश था, तो उसने ऐसा कदम उठाया।
इतना ही नहीं, twitter पर ऐसे तमाम ट्रांस एक्टिविस्ट के वीडियो हैं, जो खुलेआम यह कहते हैं कि जो ट्रांस जेंडर लोगों का विरोध करे, उनपर हमला कर दिया जाए। उन्हें सबक सिखाया जाए। यह बहुत ही खतरनाक है क्योंकि यह आत्म-तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है।
आप अपनी किसी भी लैंगिक एवं यौनिक पहचान के साथ रह सकते हैं, परन्तु यह कि जो आपकी इस पहचान को मान्यता नहीं देगा उसके साथ हिंसा करेंगे, यह तो एक प्रकार की धमकी ही है।
इसके साथ एक और जो सबसे बड़ा खतरा है, वह है हार्मोनल ट्रीटमेंट के बाद महिला बने पुरुषों का महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में एवं महिलाओं के विज्ञापन जगत में महिला के रूप में घुसपैठ करना। जैसा टिकटोक स्टार Dylan Mulvaney को नाइक और बडलाइट ने महिला के रूप में मॉडल के रूप में लिया था और इसका विरोध भी हो रहा है!
पिछले ही वर्ष लिया थॉमस का मामला अमेरिका में बहुत गर्माया था, क्योंकि इसी के बाद महिला खिलाड़ियों ने विरोध करना आरम्भ किया कि ट्रांस महिलाओं को महिलाओं की श्रेणी में नहीं भाग लेने दिया जाए। जैविक रूप से पुरुष परन्तु मन से महिला लिया थॉमस पहले पुरुष तैराक के रूप में प्रतिस्पर्धाओं में प्रतिभागिता करता था। परन्तु वह पुरुष के रूप में कुछ नहीं कर पाया। फिर उसके अनुसार उसे लगा कि वह पुरुष नहीं है, महिला है तो उसने आवश्यक हार्मोनल ट्रीटमेंट लेकर और जो भी उस समय निर्धारित शर्तें थीं उन्हें पूरा करके महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में महिला के रूप में प्रतिभागिता करनी आरम्भ की एवं रिकॉर्ड तोड़ दिए एवं रिकॉर्ड बनाए।
इसके बाद कई महिला खिलाड़ी इस निर्णय के विरोध में आईं और उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं को महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में भाग लेने से रोका जाए।
यद्यपि ओलंपिक्स एसोसिएशन ने हालफिलहाल अपने उस निर्णय पर रोक लगाई हुई है, जिसमें कुछ हार्मोनल ट्रीटमेंट के बाद ट्रांसवीमेन को महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में भाग लेने की अनुमति दी गयी थी। अब अमेरिका में कई स्टेट्स हैं जहां पर महिलाओं की खेल प्रतिस्पर्धा में ट्रांसवीमेन के भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। अमेरिका में आए दिन ट्रांस एक्टिविस्ट आम लोगों पर हमला कर रहे हैं।
लड़कियों पर बढे हैं यौन हमले
लड़कियों पर ट्रांस वीमेन द्वारा हमले भी बढ़ गए हैं। 12 अप्रेल 2023 को ही स्कॉटलैंड में एक ऐसा ही मामला आया था जिसमें एक ट्रांस यौन अपराधी ने एक दस साल की बच्ची को महिलाओं की टॉयलेट में पकड़ लिया था। उसके बाद उसे फिर एक बच्ची की फोटो लेते हुए हिरासत में लिया गया था और उसे महिला जेल में भेजा गया था।
ऐसे ही कनाडा में एक ट्रांसजेंडर को महिलाओं के चेंजिंग रूम की फिल्म बनाते हुए पकड़ा गया था तो वहीं कनाडा में ही महिलाओं के पुनर्वास शिविर में बलात्कार पीड़ित एक ट्रांसवुमन को उसी शिविर की एक महिला के यौन शोषण के आरोप में हिरासत में लिया गया था।
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