वनवासी योद्धा सिद्धू और कान्हू, जिन्होंने 1855 में ही कर दिया था अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद
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वनवासी योद्धा सिद्धू और कान्हू, जिन्होंने 1855 में ही कर दिया था अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद

अंग्रेजों ने सिद्धू और कान्हू को भगनाडीह गांव में एक पेड़ पर टांगकर दे दी थी फांसी

WEB DESK by WEB DESK
Mar 22, 2023, 11:47 am IST
in आजादी का अमृत महोत्सव
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स्वतंत्रता की पहली लड़ाई तो सन 1857 में मानी जाती है, लेकिन झारखंड के वनवासियों ने 1855 में ही विद्रोह का झंडा बुलंद कर दिया था। 30 जून, 1855 को सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में मौजूदा साहेबगंज जिले के भगनाडीह गांव से विद्रोह शुरू हुआ था। इस मौके पर सिद्धू ने नारा दिया था, ‘करो या मरो, अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो’।

30 जून, 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार वनवासी भगनाडीह गांव पहुंचे और आंदोलन की शुरुआत हुई। इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब अंग्रेजों को मालगुजारी नहीं देंगे। इसके बाद अंग्रेजों ने सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव, इन चारों भाइयों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। जिस दारोगा को चारों भाइयों को गिरफ्तार करने के लिए वहां भेजा गया था, संथालियों ने उसकी गर्दन काट दी। आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने इस इलाके में सेना भेज दी और जमकर वनवासियों की गिरफ्तारियां की गईं।

आंदोलनकारियों को नियंत्रित करने के लिए मार्शल लॉ लगा दिया गया। आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के लिए अंग्रेज सरकार ने पुरस्कारों की भी घोषणा की थी। बहराइच में अंग्रेजों और आंदोलनकारियों की लड़ाई में चांद और भैरव बलिदान हो गए। इस युद्ध में करीब 20 हजार वनवासियों ने अपनी जान दी थी। सिद्धू और कान्हू को गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भगनाडीह गांव में एक पेड़ पर टांगकर फांसी की सजा दे दी गई।

Topics: Forest Warrior Sidhu and Kanhu Forest Warrior Sidhu Forest Warrior Kanhu Tribe Heroवनवासी योद्धासिद्धू और कान्हूवनवासी योद्धा सिद्धूवनवासी योद्धा कान्हूजनजाति नायक
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