विश्व जल दिवस: क्या आप जल तिजोरियों के बारे में जानते हैं? ये होती क्या हैं?
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विश्व जल दिवस: क्या आप जल तिजोरियों के बारे में जानते हैं? ये होती क्या हैं?

विश्व जल दिवस 22 मार्च को है, आपको बताते हैं जल तिजोरियों के बारे में

by WEB DESK
Mar 20, 2023, 09:27 am IST
in भारत, राजस्थान
राजस्थान की चांद बावड़ी

राजस्थान की चांद बावड़ी

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जल को जीवन कहा गया है, जल को अमृत भी कहा गया है। जल को संरक्षित करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आम आदमी की है। एक छोटा प्रयास भी रंग ला सकता है। गर्मी आते ही कई राज्यों मे जल संकट सामने खड़ा हो जाता है, मानसून में वर्षा जल संरक्षण के प्रयास किए जाते हैं। जैसे धन को तिजोरियों में सुरक्षित रखा जाता है वैसे ही जल तिजोरियां भी हैं। आइये जानते हैं जल तिजोरियां आखिर हैं क्या…

बावड़ियां- चौकोर या गोलाई में बनी ये संरचनाएं सीढ़ीदार होती हैं ताकि पानी के स्तर का अन्दाज रहे। इनमें सहेजा गया पानी खारा नहीं होता। स्थापत्य और अभियांत्रिकी, दोनों ही मायनों में ये अनूठी हैं।

जोहड़- जिप्सम वाले इलाकों में बनी सीढ़ीनुमा गहराई वाली चौकोर और किनारों से ऊंची इन संरचनाओं के किनारों की ओर छतरियां भी बनी होती हैं। पशुओं के लिए अलग से गऊघाट होता है। पानी शुद्ध और मीठा रहता है।

बेरियां- तालाब और दूसरे जल स्रोतों के आसपास बनी और उनके रिसाव को सहेजने वाली बेरियां यानी छोटा कुआं या कुईं 12-15 मीटर गहरी होती हैं और गंभीर संकट में सहारा होती हैं।

खड़ीन- बांध के जैसे अस्थायी तालाब, जिनके बूते बंजर जमीन में साझी खेती करना सम्भव हो पाता है। जैसलमेर में खड़ीन आज भी कायम हैं और इनका समृद्ध इतिहास भी है।

झालरा- ऊंचाई पर बने तालाबों और झीलों से रिसकर आने वाले पानी को सहेजने वाली ये आयताकार संरचनाएं असल में चौड़े कुएं हैं, जो अलग-अलग बनावटों में मौजूद हैं।

तालाब- पानी के कुदरती बहाव के रास्ते में आने वाली ये संरचनाएं गांवों की सबसे बड़ी जल तिजोरियां हैं जिनके आसपास ओरण यानी देवी-देवताओं के नाम पर सहेजे गए वन भी हुआ करते थे।

झीलें- बरसाती पानी के कुदरती बहाव को सहेजने वाली इन बड़ी जल संरचनाओं के कई स्वरूप हैं, कहीं ये नमक पैदा करती हैं तो कहीं झीलों के बीच स्थापत्य की खूबसूरत इमारतें हैं।

नाड़ी- तालाब का छोटा रूप या पोखर जिसे ढलान वाले इलाकों में गहरा खड्डा करके बरसाती पानी को सहेजा जाता है। बहकर आने वाली मिट्टी की वजह से मिट्टी उपजाऊ होती है और खेती अच्छी होती है।

टोबा- बारिश के पानी को सहेजने के लिए नाड़ी से थोड़ी बड़ी और गहरेड यह संरचना बस्तियों का सहारा होती है।आम तौर पर 20-25 परिवारों के बीच एक टोबा बनाया जाता है। ऊपर से चौकोर और पक्का होता है।

टांके- ये कुंड या हौद खुले में या बन्द जगह कहीं भी बने दिख जाएंगे। पीने या साल भर की जरूरत के लिए बरसाती पानी को अलग-अलग तरह से सहेजा जाता है और इन्हें ढक कर रखा जाता है।

पांड – खेतों में बरसात का पानी सहेजने के लिए अलग-अलग तकनीक से तलाई या पांड बनाए जाते हैं ताकि खेतों के लिए साल भर नमी बनी रहे और पानी बेकार बहने की बजाय खेतों में रुका रहे।

डिग्गी – पश्चिमी राजस्थान में इंदिरा गांधी कैनाल का पानी आता है। नहरी पानी को एक जगह सहेजने के लिए चारों ओर से पक्की की गई करीब दस फुट गहरी ये संरचनाएं बनी हुई हैं।

Topics: Water Conservationworld water dayविश्व जल दिवसविश्व जल दिवस पर विशेषजल तिजोरियांजल संरक्षण
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