बांग्लादेश में इन दिनों राजनीतिक सरगर्मियां कुछ ज्यादा ही दिख रही हैं। दोनों प्रमुख पार्टियों में तलवारें खिंची हैं। सत्तारूढ़ अवामी लीग और विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी बहुत वक्त बाद आमने—सामने दिखाई दे रही हैं। जबकि शेख हसीना की सरकार रोहिंग्या घुसपैठियों की समस्या से बुरी तरह ग्रस्त देश को उबारने की चुनौती से जूझ रही है। बांग्लादेश जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए समय परीक्षा का है।
प्रधानमंत्री शेख हसीना गत 12 वर्ष से सत्ता में हैं। इस बीच राजनीतिक स्थिति कमोबेश शांतिपूर्ण ही कही जा सकती है। कोई बड़ा विवाद नहीं उठा है। यही वजह रही कि बांग्लादेश में कुछ आर्थिक तरक्की भी देखी गई। लेकिन आज हसीना सरकार के सामने चुनौतियां बढ़ती दिख रही हैं।
विपक्ष, विशेषरूप से पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी बीएनपी मोर्चा खोल चुकी है। राजधानी ढाका में पिछले दिनों जबरदस्त विरोध करके जिया ने एक तरह से यह दिखाने की कोशिश की है कि वे हाशिए पर न मानी जाएं। बीएनपी सरकार विरोधी प्रदर्शनों में सरकार का इस्तीफा मांग रही है। उसकी एक मांग और है कि संसद को भंग किया जाए।
पिछले सप्ताह बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अगुआई में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने ढाका के केन्द्र में सरकार के इस्तीफे की मांग लेकर ही प्रदर्शन किया था। इस बीच बीएनपी के मुख्यालय पर छापा मार गया था। इतना ही नहीं, सरकार विरोधी आवाजों पर लगाम कसने की कड़ी कार्रवाई भी की गई। पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा जिसमें एक व्यक्ति मारा गया।
आर्थिक दृष्टि से बांग्लादेश को देखें तो आंकड़े बताते हैं वहां प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 2,500 अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंची है। इस वजह से भी बीएनपी के हसीना सरकार पर लगाए जा रहे आरोपों में खास धार नहीं दिखती। इस बीच गरीबी रेखा से पार होने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की सख्या भी बढ़ी है। वजह कपड़ा उद्योग का बेहतर प्रदर्शन बताई जा रही है।
ढाका में उठापटक देख एमनेस्टी इंटरनेशनल और कुछ अन्य गैर सरकारी गुटों ने सरकार को घेर लिया। उस पर इंसान की जान को मोल न देने का आरोप लगाया जा रहा है। इसके पीछे पुलिस की सख्ती से मरे आदमी का उदाहरण दिया जा रहा है। उसकी मृत्यु की कड़ी भर्त्सना की गई। बीएनपी कुछ समय से शेख हसीना सरकार पर चुनावी धांधलियों के आरोप भी उछालती आ रही है।
आर्थिक दृष्टि से बांग्लादेश को देखें तो आंकड़े बताते हैं वहां प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 2,500 अमेरिकी डॉलर तक जा पहुंची है। इस वजह से भी बीएनपी के हसीना सरकार पर लगाए जा रहे आरोपों में खास धार नहीं दिखती। इस बीच गरीबी रेखा से पार होने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की सख्या भी बढ़ी है। वजह कपड़ा उद्योग का बेहतर प्रदर्शन बताई जा रही है। सब जानते हैं, चीन के बाद बांग्लादेश ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक देश है। स्वास्थ्य के आंकड़े बताते हैं कि वहां शिशु मृत्यु दर में करीब 90 प्रतिशत की घटोतरी हुई है। लेकिन वैश्विक मंदी का असर यहां भी महंगाई बढ़ा रहा है।
यूक्रेन युद्ध की वजह से आर्थिक मंदी और ज्यादा प्रभावित कर रही है। बांग्लादेश जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह चपेट में आई हैं। बांग्लादेश में कोराना महामारी ने देखते ही देखते दस लाख से ज्यादा नागरिकों को बेरोजगार कर दिया है। चपत कपड़ा उद्योग को भी लगी क्योंकि आर्थिक मंदी की वजह से विदेशों से मांग में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। अमेरिका, यूरोप तथा दूसरे देशों में उपभोक्ताओं ने अपने खर्चे कम कर दिए हैं।
देखा जाए तो श्रीलंका के बाद, बांग्लादेश में संकट का असर भारत पर पड़ सकता है। अगर किसी पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता होगी तो कुछ असर पड़ना स्वाभाविक भी है। वहां वर्तमान राजनीतिक उथल-पुथल पहले से कमजोर चल रही अर्थव्यवस्था पर और बुरा असर डाल सकती है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बांग्लादेश की डावांडोल स्थिति का राजनीतिक फायदा उठाने की गरज से ही बीएनपी ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के लिए यह वक्त चुना होगा। उपरोक्त सभी बिन्दुओं को आंकते हुए कट्टर इस्लामवादी खालिदा जिया ने विकास की इच्छा रखने वाली हसीना सरकार को घेरने का मन बनाया होगा। आखिर खालिदा को भी तो अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखना है वरना तो लोग भूले ही जा रहे थे कि बीएनपी नाम की भी कोई राजनीतिक पार्टी है और कि कभी खालिदा जिया नाम की महिला देश की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं।
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